नहीं है ITR या सैलरी स्लिप? फिर भी मिल सकता है होम लोन, जानें कैसे पूरा होगा आपका अपने घर का सपना?

भारत में होम लोन लेना अब और आसान हो गया है. ITR या सैलरी स्लिप न होने पर भी वैकल्पिक क्रेडिट मॉडल के जरिए हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां लोन दे रही हैं. कैश फ्लो, UPI ट्रांजैक्शन और फील्ड वेरिफिकेशन जैसे नए तरीकों से अनौपचारिक आय वर्ग को तेजी से होम लोन मिल रहा है. जानें कैसे मिलता है लोन.

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कौशल सिंह। भारत के सामाजिक ढांचे में तेजी से बदलाव हो रहा है. संयुक्त परिवारों की जगह अब न्यूक्लियर परिवार तेजी से बढ़ रहे हैं और इसके साथ ही घर खरीदने की इच्छा भी पहले से कई गुना बढ़ चुकी है. यह ट्रेंड केवल दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु जैसे महानगरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी आवास की मांग में अभूतपूर्व उछाल देखा गया है. सरकार ने इस बदलाव को समझते हुए कई नीतिगत प्रोत्साहन और आवास योजनाएं शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य अधिक से अधिक परिवारों को औपचारिक हाउसिंग फाइनेंस प्रणाली से जोड़ना है. लेकिन इस बढ़ती मांग के बीच एक सबसे बड़ी समस्या बरकरार है. लाखों ऐसे लोग जिनकी वास्तविक आय तो स्थिर है, लेकिन उनके पास आय का कोई औपचारिक दस्तावेज नहीं है.

अनौपचारिक आय वर्ग: एक बड़ा लेकिन अनदेखा ग्राहक आधार

राष्ट्रीय सांख्यिकी के अनुमान बताते हैं कि भारत के कुल कार्यबल का 85% से अधिक हिस्सा आज भी अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है. इस विशाल वर्ग में छोटे दुकानदार, सब्जी विक्रेता, दर्जी, प्लम्बर, कारीगर, ऑटो चालक, माइक्रो उद्यमी और दैनिक मजदूरी से अपनी आजीविका चलाने वाले अनगिनत कार्यकर्ता शामिल हैं. इन लोगों की आय वास्तविक होती है, कई बार लगातार भी होती है, लेकिन बैंकिंग सिस्टम में उनकी आय का पर्याप्त और स्वीकार्य प्रमाण मौजूद नहीं रहता. यही वजह है कि ये लाखों लोग औपचारिक होम लोन प्रणाली से वर्षों से दूर रहे हैं, जबकि उनकी आर्थिक गतिविधि उन्हें EMI चुकाने में सक्षम बनाती है.

पारंपरिक बैंकिंग मॉडल क्यों नहीं करता मदद?

बैंकों और बड़ी वित्तीय संस्थाओं की क्रेडिट मूल्यांकन प्रणाली दस्तावेज आधारित मॉडल पर चलती है. आयकर रिटर्न, सैलरी स्लिप, बैंक स्टेटमेंट और संगठित वेतन ही क्रेडिटवर्थिनेस का मूल आधार माना जाता है. लेकिन अनौपचारिक क्षेत्र में आय का स्वरूप बिल्कुल अलग होता है. काफी हद तक नकद आधारित, मौसमी उतार चढ़ाव वाला और कई बार परिवार के सदस्यों की सामूहिक आय पर आधारित. ऐसी स्थिति में पारंपरिक बैंक इन ग्राहकों की वास्तविक भुगतान क्षमता को पकड़ नहीं पाते और लोन देने से इनकार कर देते हैं. इसका मतलब यह नहीं कि ग्राहक लोन चुकाने में असमर्थ है, बल्कि यह कि पुरानी क्रेडिट प्रणालियां उनकी आर्थिक क्षमता को सही ढंग से माप ही नहीं पातीं.

नया दौर: वैकल्पिक क्रेडिट मूल्यांकन मॉडल

पिछले कुछ वर्षों में NBFC-HFC सेक्टर ने इस चुनौती को अवसर में बदलने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. इन संस्थाओं ने समझा कि आय को केवल दस्तावेजों से ही नहीं, बल्कि वास्तविक आर्थिक गतिविधि और व्यवहारिक क्षमता से भी मापा जा सकता है. इसी सोच से जन्म हुआ वैकल्पिक क्रेडिट मूल्यांकन मॉडल का, जिसने अनौपचारिक आय वर्ग के लिए होम लोन प्राप्त करना आसान कर दिया है. इस मॉडल में उधारकर्ता के आर्थिक व्यवहार, दैनिक लेनदेन, कैश फ्लो और व्यवसाय की स्थिरता को आधार बनाकर उसकी क्रेडिट प्रोफाइल तैयार की जाती है.

कैश फ्लो आधारित मूल्यांकन: नई प्रणाली की मूल नींव

इस मॉडल में आयकर रिटर्न या सैलरी स्लिप नहीं, बल्कि वास्तविक कैश फ्लो सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ग्राहक के व्यापार का औसत दैनिक या साप्ताहिक लेनदेन देखा जाता है. उसकी खरीद बिक्री का चक्र, परिवार की सामूहिक आय, नियमित घरेलू खर्च और बचत की प्रवृत्ति को बारीकी से समझा जाता है. यदि कारोबार मौसमी है, तो मौसम आधारित आय के उतार चढ़ाव को भी ध्यान में रखा जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में फील्ड विजिट अत्यंत अहम होती है, जहां वित्तीय संस्थाएं ग्राहक के घर, दुकान और कार्यस्थल का भौतिक निरीक्षण करती हैं और आसपास के लोगों से उसकी आर्थिक प्रतिष्ठा का अनुमान लगाती हैं. यह ग्राउंड रिपोर्ट ग्राहक की वास्तविक क्षमता का सबसे विश्वसनीय आकलन बन जाती है.

प्रॉक्सी बैंकिंग और व्यवहार आधारित संकेत भी बनते हैं आधार

कई ग्राहकों के बैंक खाते में बड़े लेनदेन नहीं दिखते, लेकिन छोटे छोटे नियमित लेनदेन, जैसे UPI के जरिये रोज का व्यापार, छोटी रकम की जमा निकासी और बिलों का नियमित भुगतान उनके वित्तीय अनुशासन का मजबूत संकेत देते हैं. कई NBFC-HFC अब इन संकेतों को क्रेडिट मूल्यांकन का हिस्सा बना रही हैं. समय पर किराया चुकाना, स्थानीय समुदाय में प्रतिष्ठा, दुकान के ग्राहकों की संख्या, खरीदारी का पैटर्न और व्यवसाय की विश्वसनीयता. ये सभी व्यवहारिक संकेत वित्तीय संस्थाओं को बताते हैं कि उधारकर्ता EMI की जिम्मेदारी निभाने में सक्षम है या नहीं.

डिजिटलीकरण ने आसान किया लोन देने का पूरा ढांचा

आधार आधारित e-KYC, CKYC, UPI ट्रांजैक्शन पैटर्न, डिजिटल भू अभिलेख और सरकारी आवास योजनाओं के डेटा ने होम लोन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, तेज और सुरक्षित बना दिया है. आज आय का औपचारिक प्रमाण न होने के बावजूद ग्राहक की पहचान, जोखिम और आर्थिक स्थिरता को डिजिटल साधनों के जरिये भरोसेमंद तरीके से आंका जा सकता है. यह बदलाव उन लाखों लोगों के लिए वरदान बना है, जो पहले दस्तावेजों की कमी के कारण लोन प्रक्रिया से बाहर रह जाते थे.

सामाजिक और आर्थिक बदलाव का नया चरण

अनौपचारिक आय वाले वर्ग को होम लोन उपलब्ध कराना केवल वित्तीय लेनदेन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बदलाव का आधार बन रहा है. इससे परिवारों को आवास सुरक्षा मिलती है, माइक्रो उद्यमों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, महिलाओं के नाम संपत्ति रजिस्ट्रेशन बढ़ते हैं और देश की वित्तीय समावेशन नीति को वास्तविक गति मिलती है. यह वर्ग जब घर हासिल करता है, तो उसका सामाजिक दर्जा भी मजबूत होता है और इसका दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव व्यापक होता है.

(लेखकSAVE हाउसिंग फाइनेंस के सीईओ हैं. प्रकाशित विचार उनके निजी हैं.)