NSE Co-location Case: CBI की क्लोजर रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकारा, आरोपियों की आपराधिक मंशा साबित नहीं
NSE Co-location scam मामला अब बेनतीजा बंद कर दिया गया है. इस मामले में CBI की तरफ से पेश की गई क्लोजर रिपोर्ट को स्पेशल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. CBI की जांच में इस मामले में शामिल आरोपियों की आपराधिक मंशा साबित नहीं हो पाई.

बहुचर्चित NSE को-लोकेशन स्कैम से जुड़े मामले में एक स्पेशल कोर्ट ने CBI की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट प्रक्रिया में जरूर गड़बड़ियां हुईं. लेकिन, मामले में शामिल आरोपियों के क्रिमिनल इंटेंट को साबित करने लायक पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं. यह मामला मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त संजय पांडे की कंपनी ISec Services और दो स्टॉक ब्रोकरों, SMC Global Securities Ltd और Shaastra Securities Trading Pvt Ltd से जुड़ा था.
क्या था मामला
NSE ने ब्रोकर्स को को-लोकेशन सुविधा दी थी, जिसके तहत वे एक्सचेंज के डाटा सेंटर में अपने सर्वर लगाकर तेज डाटा फीड और ट्रेडिंग एक्सेस ले सकते थे. आरोप था कि इस सुविधा का दुरुपयोग कर कुछ ब्रोकर्स ने अनुचित लाभ कमाया. इसी दौरान ISec Services पर आरोप लगा कि उसने ‘हाई-रिस्क’ ब्रोकर्स का ऑडिट कागजी तौर पर किया, जिससे अनियमितताएं छिपाई गईं.
CBI की जांच में क्या निकला
CBI ने कहा कि ISec और ब्रोकरों ने SEBI के सर्कुलर का उल्लंघन किया था. लेकिन, जांच के बाद यह साबित नहीं हो पाया कि इसका इस्तेमाल बाजार में मैनिपुलेशन जैसे- सर्कुलर ट्रेडिंग या पंप-एंड-डंप के लिए हुआ है. रिपोर्ट में साफ कहा गया कि NSE या SEBI अधिकारियों की सीधी संलिप्तता नहीं थी. न ही इस ऑडिट लापरवाही से किसी निवेशक को प्रत्यक्ष नुकसान साबित हुआ.
SEBI और NSE पर सवाल
CBI ने अपनी रिपोर्ट में माना कि NSE के पास उस समय ऑडिट रिपोर्ट की ऑथेंटिसिटी चेक करने का मजबूत मैकेनिज्म नहीं था. इसके साथ ही SEBI भी अपने नियमों के अनुपालन की सख्त निगरानी करने में नाकाम रहा. स्पेशल कोर्ट के जज गगनदीप सिंह ने कहा कि SEBI का दायित्व सिर्फ कागजी आदेश जारी करना नहीं है, बल्कि उन्हें जमीनी स्तर पर सख्ती से लागू करना होगा.
जांच में क्या अड़चनें आईं
2013 से 2015 की अवधि में ब्रोकर्स को कॉल रिकॉर्ड सुरक्षित रखने का कानूनी नियम लागू नहीं था. SMC Global के पुराने रिकॉर्ड ट्रेस करना संभव नहीं हो पाया. Shaastra एक प्रोप्राइटरी ट्रेडिंग फर्म थी, इसलिए उसके पास क्लाइंट कॉल लॉग्स रखने की बाध्यता ही नहीं थी. इन सभी वजहों से इस मामले में किसी भी आरोपी पर कोई अपराध साबित नहीं हो पाया. CBI ने नतीजा यह निकाला कि ISec की तरफ से की गई ऑडिट में खामियां थीं, लेकिन उसे धोखाधड़ी या जालसाजी का अपराध नहीं माना जा सकता. पर्याप्त सबूतों के अभाव में कोर्ट ने CBI की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया, जिससे यह केस फिलहाल खत्म हो गया है.
IPO की एक और अड़चन दूर
NSE देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज ऑपरेट करती है. कंपनी लंबे समय से SEBI के नियमों के तहत IPO लाने की तैयारी कर रही है. लेकिन, को-लोकेशन मामला भी NSE के IPO की राह में अड़चन बना हुआ था. अब माना जा रहा है कि जल्द ही NSE अपने IPO को लॉन्च कर पाएगी.
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