NSE का बड़ा फैसला, छोटी कंपनियों के लिए मेन बोर्ड की राह हुई मुश्किल, बदले नियम

NSE ने छोटी कंपनियों के मेन बोर्ड में जाने के लिए नियम कड़े कर दिए हैं. नेशनल स्‍टॉक एस्‍चेंज ने ये फैसला निवेशकों के हितों और बाजार की पारदर्शिता को ध्‍यान में रखकर लिया है. इस सिलसिले में एक सर्कुलर पर जारी किया गया है, तो क्‍या हैं नए नियम जानें पूरी डिटेल.

NSE और उत्तर प्रदेश सरकार. Image Credit: Getty Images

NSE tighten rules: छोटी कंपनियों के लिए अब मेन बोर्ड में जाने की राह और मुश्किल हो गई है. दरअसल नेशनल स्टॉक एक्सचेंज यानी NSE ने छोटी कंपनियों के लिए नियमों को और सख्त कर दिया है. ऐसे में छोटी कंपनियों को एनएसई के मेन बोर्ड में शामिल होने के लिए कड़े वित्तीय मानदंडों को पूरा करना होगा. यह घोषणा भारतीय बाजार नियामक ने र्चेंट बैंकरों और छोटे व्यवसायों के लिए प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) के नियमों को कड़ा करने के बाद की गई है.

NSE ने इस सिलसिले में गुरुवार को एक सर्कुलर जारी कर कहा कि एक्सचेंज ने एसएमई प्लेटफॉर्म से मेन बोर्ड में माइग्रेशन के लिए पात्रता मानदंडों को संशोधित किया है. नए नियमों के अनुसार, एसएमई प्लेटफॉर्म पर लिस्‍टेड कंपनियों को मेन बोर्ड में जाने के लिए कम से कम 100 करोड़ रुपये का औसत मार्केट कैपिटलाइजेशन और 10 करोड़ रुपये की पेड-अप इक्विटी कैपिटल की जरूरत होगी. इसके लिए मार्केट कैपिटलाइजेशन की गणना पिछले तीन महीनों के वीकली हाई और लो पर बंद कीमतों के औसत के आधार पर की जाएगी.

इन नियमों में भी हुए बदलाव

एनएसई के नए नियम के तहत कंपनियों को पिछले तीन में से दो वित्तीय वर्षों में ऑपरेशनल वर्क से सकारात्मक लाभ दिखाना होगा. पहले यह नियम पिछले तीन वर्षों में सकारात्मक EBITDA और आवेदन के वर्ष में टैक्स के बाद लाभ की शर्त पर आधारित था. इतना ही नहीं एनएसई ने सार्वजनिक शेयरधारकों की न्यूनतम संख्या को भी 1,000 से घटाकर 500 कर दिया है.

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नए नियमों में यह भी कहा गया है कि माइग्रेशन के समय प्रमोटर और प्रमोटर समूह को कंपनी में कम से कम 20% हिस्सेदारी रखनी होगी. साथ ही, लिस्टिंग की तारीख पर प्रमोटरों की हिस्सेदारी का कम से कम 50% माइग्रेशन के समय तक बरकरार रहना चाहिए. एनएसई ने छोटी कंपनियों पर ये सख्‍ती बाजार की पारदर्शिता और निवेशकों के हितों की रक्षा के तहत की है.

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