Crypto Kidnapping: जबरन छीने गए बिटकॉइन कैसे ट्रैक करती है पुलिस, वापस मिलने की कितनी संभावना?

क्रिप्टोकरेंसी का डिसेंट्रालाइज्ड नेचर इसे फ्यूचर करेंसी बनाता है. लेकिन, इसी खासियत की वजह से बहुत लोग क्रिप्टो किडनैपिंग का शिकार हो रहे हैं. जानते हैं कि पुलिस इस तरह के मामलों से कैसे निपटती है और पीड़ित को उसकी क्रिप्टो करेंसी वापस मिलने की कितना संभावना रहती है?

क्रिप्टोकरेंसी फ्रॉड Image Credit: FREEPIK

Crypto Kidnapping के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इस तरह के मामलों में उन लोगों को खासतौर पर निशाना बनाया जाता है, जिनके पास बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी मौजूद होती हैं. अपराधी ऐसे लोगों को किडनैप करते हैं और फिरौती के तौर पर बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो करेंसी लेते हैं. अपराधियों के लिए इस तरह से बचकर निकलना बेहद आसान हो जाता है. लेकिन, ऐसे अपराधियों को पकड़ना नामुमकिन नहीं है. पुलिस और दूसरी कानूनी प्रवर्तन एजेंसी इन लोगों को ट्रैक कर सकती हैं.

क्रिप्टो किडनैपिंग से कैसे निपटती है पुलिस?

क्रिप्टो किडनैपिंग का मामला पुलिस के लिए किसी भी किडनैपिंग के मामले की तरह है. पुलिस इस मामले में आरोपियों के खिलाफ BNS यानी भारतीय न्याय संहिता के तहत मुकदमा दर्ज करती है. BNS में धारा 137, 139, and 140 में किडनैपिंग को डिफाइन करते हुए सजा का प्रावधान किया गया है. भारत में इस तरह के मामलों में 7 वर्ष से आजीवन कारावास तक की सजा मिल सकती है. क्रिप्टो किडनैपिंग के मामलों में एक तरफ जहां किडनैपिंग का मुकदमा दर्ज किया जाता है. वहीं, दूसरी तरफ लूट और साइबर अपराध का भी मुकदमा दर्ज किया जाता है.

क्या बिटकॉइन को ट्रैक कर सकती है पुलिस?

क्रिप्टो किडनैपिंग के मामले पुलिस के लिए काफी पेचीदा होते हैं. खासतौर पर फिरौती के तौर पर आरोपियों को दी गई क्रिप्टोकरेंसी को ट्रैक करना बेहद मुश्किल होता है. पारंपरिक वित्तीय प्रणालियों के विपरीत, क्रिप्टो लेनदेन किसी देश की सीमा के पार किए जा सकते हैं. अक्सर ये तत्काल नियामकीय जांच की पहुंच से परे होते हैं. लेकिन, भारत में पुलिस अपनी साइबर यूनिट्स की मदद से इस तरह के अवैध लेनदेन को ट्रैक करने के लिए एडवांस्ड ब्लॉकचेन एनालिसिस टूल्स का इस्तेमाल करती है.

क्रिप्टो करेंसी कैसे की जाती है ट्रैक?

पुलिस और दूसरी लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसीज क्रिप्टो करेंसी को ट्रैक करने के लिए चेनैलिसिस, एलिप्टिक और सिफरट्रेस जैसे फोरेंसिक टूल्स का इस्तेमाल करती है. पब्लिक ब्लॉकचेन में क्रिप्टोकरेंसी के फ्लो का पता लगाना संभव है. खासतौर पर एक्सचेंज पर होने वाले ट्राजैक्शन से क्लस्टर वॉलेट एड्रेस पता चलता है, जो एक्सचेंज को डार्कनेट मार्केटप्लेस से जोड़ते हैं. तमाम जटिलताओं के बावजूद खासतौर पर बिटकॉइन या कोई भी ट्रेसेबल क्रिप्टोकरेंसी को काफी दूर तक ट्रैक किया जा सकता है.

क्या रिकवरी संभव है?

बिटकॉइन जैसी करेंसी में फिरौति दिए जाने के बाद भले ही इन्हें ट्रैक किया जा सकता है. लेकिन, इन्हें रिकवर करना बेहद मुश्किल होता है. इसके अलावा रिकवरी कई फैक्टर पर निर्भर करती है. इसमें सबसे अहम है, ऐसे किसी मामले की रिपोर्टिं की टाइमिंग. पुलिस और लाॅ एन्फोर्समेंट एजेंसी के लिए ऐसे क्राइम में इनवॉल्व क्रिप्टो एसेट को फ्रीज करना उतना ही आसान होता है, जितनी जल्दी इसकी जानकारी उन्हें मिल जाती है. भारत में पुलिस तमाम एक्सचेंज के साथ मिलकर तुरंत ही इस तरह के मामलों में फिरौती की रकम को फ्रीज कर सकती है.

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