Microsoft Office को इन देशों ने किया बैन, प्राइवेसी से जुड़ा है मामला
यूरोप के कई देश अब माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. इन देशों का यह कदम उनके की संप्रभुता, साइबर सुरक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा संकेत माना जा रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं माइक्रोसॉफ्ट की जगह वे कौन से नए ऑप्शन की तरफ रुख कर रहे हैं और क्या बन रही है इसकी बड़ी वजह.
Microsoft Office Banned: दुनियाभर के स्कूल, ऑफिस और घरों में इस्तेमाल होने वाला Microsoft Office अब कुछ यूरोपीय देशों की सरकारों में बैन किया जा रहा है. इसका कारण केवल तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक और राजनीतिक भी है. दरअसल, जर्मनी और डेनमार्क जैसे देश अब माइक्रोसॉफ्ट के सॉफ्टवेयर को अपने सरकारी सिस्टम से हटाने लगे हैं. जर्मनी के उत्तरी राज्य श्लेस्विग-होल्स्टाइन (Schleswig-Holstein) ने Microsoft Teams और दूसरे माइक्रोसॉफ्ट प्रोडक्ट को अपने सरकारी इस्तेमाल से हटाने का फैसला किया है. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है इसकी बड़ी वजह और क्या है इनका नया ऑप्शन.
क्या है नया ऑप्शन?
कई यूरोपीय देशों में अब MS Word की जगह LibreOffice और Outlook की जगह Open-Xchange जैसे दूसरे ऑप्शन का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं, जर्मनी के डिजिटल मंत्री डिर्क श्रोएडटर का इसे लेकर कहना है कि हम Teams के साथ अब काम खत्म कर चुके हैं. उन्होंने बताया कि यूक्रेन युद्ध के बाद यह स्पष्ट हो गया कि देशों को न केवल एनर्जी के मामले में, बल्कि तकनीक के लेवल पर भी आत्मनिर्भर होना होगा. अब आने वाले महीनों में ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर पर काम करेंगे.
डेनमार्क भी अपनाएगा ओपन-सोर्स रास्ता
वहीं, डेनमार्क की सरकार ने भी Microsoft Office को धीरे-धीरे हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. राजधानी कोपेनहेगन जैसे बड़े शहरों में यह बदलाव पहले से शुरू हो चुका है. दरअसल, डेनमार्क की चिंता है कि अमेरिका के साथ फ्यूचर में राजनीतिक तनाव बढ़ने पर उनके पास जरूरी डेटा और टूल्स तक पहुंच सीमित हो सकती है. हाल ही में खबरें आई थीं कि एक समय Microsoft ने पॉलिटिकल प्रेशर में आकर एक इंटरनेशनल प्रॉसिक्यूटर की ईमेल सेवा को बंद कर दिया था. हालांकि, माइक्रोसॉफ्ट ने इसे बाद में इनकार किया था, लेकिन इस घटना ने यूरोप में चिंता बढ़ा दी थी.
लाइसेंस फीस भी एक बड़ा कारण
इसके अलावा इन देशों को सिर्फ डेटा सुरक्षा ही नहीं, लागत भी एक महत्वपूर्ण कारण है. कोपेनहेगन जैसे शहरों में Microsoft सॉफ्टवेयर की कीमत पिछले पांच सालों में 72 फीसदी तक बढ़ चुकी है. इसके चलते सरकारों को लगता है कि फ्री और ओपन-सोर्स ऑप्शन अपनाकर बजट को भी बेहतर ढंग से कम किया जा सकता है.
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