ईरान ने कहां छुपा दिया यूरेनियम? क्यों 400 KG का अब तक नहीं मिला सबूत, क्या बेकार गया बस्टर बम अटैक

अमेरिका के हमले के बाद ईरान के 60 फीसदी शुद्धता वाले एनरिज्ड यूरेनियम की मौजूदगी पर सवाल खड़े हो गए हैं. क्या हमले से पहले ही यह सेंसिटिव परमाणु मटेरियल गुप्त स्थान पर पहुंचा दी गई थी? इस रहस्य से ईरान के परमाणु भविष्य की दिशा तय हो सकती है. इसको लेकर कई दावे और रिपोर्ट्स सामने आए हैं. विस्तार में जानें पूरा मसला.

कहां गया ईरान का एनरिज्ड यूरेनियम? Image Credit: @Money9live

Where is Iran’s Enriched Uranium: ईरान के परमाणु कार्यक्रम का भविष्य इस सवाल पर टिका हुआ है कि इस वक्त उसके एनरिच्ड यूरेनियम का पूरा भंडार तबाह हुआ या फिर वह अमेरिकी हमले में बच गए. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हाल ही में अमेरिका ने रातों-रात एक सैन्य हमला किया, जिसमें ईरान की तीन प्रमुख परमाणु साइट्स को निशाना बनाया गया. हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि ईरान की प्रमुख यूरेनियम साइट्स “पूरी तरह से नष्ट कर दी गई हैं.”

इन हमलों में अमेरिका ने B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स से 30,000 पाउंड वजनी बंकर-बस्टर बम का इस्तेमाल किया गया. लेकिन ट्रंप के दावे के बावजूद अमेरिका से ही यह बातें उठ रही हैं कि शायद ईरान का यूरेनियम भंडार सुरक्षित है, अगर ये दावे सही हैं तो यह सवाल उठता है कि 400 किलोग्राम एनरिच्ड यूरेनियम ईरान ने कैसे बचा लिया और उसे कहां छुपा कर रखा है..

लेकिन सवाल यूरेनियम के ठिकाने का

हालांकि, इस हमले और राष्ट्रपति ट्रंप के दावे के बाद भी सबसे बड़ा सवाल यही बना हुआ है कि ईरान के पास मौजूद लगभग 408 किलोग्राम यूरेनियम, जो 60 फीसदी शुद्धता तक एनरिच्ड है (हथियार-योग्य स्तर के करीब), वह अब कहां है? सामने आए इस सवाल के पीछे एक बड़ा कारण है. दरअसल अमेरिकी हमले के बाद ईरान ने इस बात की पुष्टि तो की है कि उसके कुछ साइट्स पर अमेरिका ने एयरस्ट्राइक किया लेकिन उसने यूएस के यूरेनियम को लेकर किए गए दावों पर चुप्पी साधी है. दरअसल ईरानी अधिकारियों ने अब तक इस हमले से हुई तबाही का कोई विस्तृत ब्यौरा पब्लिक नहीं किया है.

एक बयान ने बदली सभी दावों की दिशा

BBC ने एक ईरानी अधिकारी के हवाले से बताया कि “इस सेंसिटिव मटेरियल को पहले ही वहां से हटा लिया गया था.” ईरानी अधिकारी के इस बयान ने वैश्विक स्तर पर हलचल शुरू कर दी है. हालांकि पश्चिमी विशेषज्ञों में इस बात को लेकर मतभेद साफ है. Financial Times ने पूर्व अमेरिकी परमाणु नेगोशिएटर रिचर्ड नेफ्यू के हवाले से लिखा, “सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि वो मटेरियल अब कहां है.

अभी तक जो जानकारी सामने आई है, उससे हमें इसकी सही स्थिति का अंदाजा नहीं है. हम भरोसे से नहीं कह सकते कि यूरेनियम मटेरियल असल में कहां है.” नेफ्यू ने चेताया कि अगर ईरान का एनरिच्ड यूरेनियम अभी भी सुरक्षित है, तो यह मान लेना गलत होगा कि अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लंबे समय तक के लिए रोका है. उन्होंने कहा, “अगर आप कहें कि इस हमले ने कार्यक्रम को कुछ महीनों से ज्यादा पीछे धकेला है, तो आप गलत साबित हो सकते हैं.”

हमले से पहले खाली हो गया था साइट?

अब सबसे बड़े सवाल की ओर रुख करते हैं. वह ये है कि क्या अमेरिका की ओर से तबाह किए गए साइट्स में एक, Fordo को ईरान ने पहले ही खाली कर दिया है. Associated Press की रिपोर्ट के मुताबिक, Qom (ईरान का एक शहर) के पास स्थित ईरान के अंडरग्राउंड साइट Fordo को अमेरिका ने निशाना बनाया. सैटेलाइट तस्वीरों में दिख रहा है कि पहाड़ी इलाकों में गड्ढे और पहले के मुकाबले कई बदलाव नजर आ रहे हैं, जिससे अंदाजा लगाया गया है कि बंकर बस्टर बम ने यहां नुकसान पहुंचाया है.

लेकिन चीन के सैन्य विश्लेषकों ने इस हमले के प्रभाव पर सवाल उठाए हैं. Li Zixin, जो China Institute of International Studies से जुड़े हैं, ने चीन के सरकारी अखबार Global Times से कहा, “Fordo की गहराई लगभग 100 मीटर है. ऐसे में इसे पूरी तरह नष्ट करना एक या दो बमों से संभव नहीं है, भले ही वो बंकर बस्टर क्यों न हो.”

इससे इतर चीन के एक दूसरे जानकार ने भी अमेरिका के एयरस्ट्राइक और उससे होने वाले नुकसान को लेकर सवाल उठाया है. चीन के Zhang Junshe नामक विशेषज्ञ ने कहा कि अमेरिका ने जो 30,000 पाउंड का GBU-57 बम इस्तेमाल किया, वह आमतौर पर 65 मीटर तक की गहराई में घुस सकता है. उन्होंने माना कि इस तरह की गहराई पर हमले के लिए दो बमों का लगातार इस्तेमाल जरूरी हो सकता है, लेकिन इस तकनीक को कभी सार्वजनिक रूप से आजमाया नहीं गया है.

इजरायल ने Fordo पर क्यों किया दोबारा हमला?

अगर हम चीन के ग्लोबल टाइम्स अखबार की खबर और दूसरे जानकार की बात के आधार पर समझने की कोशिश करें एक बात साफ है. ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, ईरान के Fordo की गहराई तकरीबन 100 मीटर है. वहीं चीन के दूसरे जानकार की मानें तो जिस GBU-57 बम का इस्तेमाल अमेरिका ने Fordo पर किया उसका असर केवल 65 मीटर तक की गहराई में ही हो सकता है. इन जानकारियों के आधार पर समझा जा सकता है कि अमेरिका के हमले का असर Fordo साइट से काफी दूर था.

शायद यहीं वजह है कि सोमवार को Fordo साइट पर इजरायल ने दोबारा हमला कर दिया है. एचटी ने अपनी एक रिपोर्ट में Qom प्रोविंस के एक स्पोक्सपर्सन के हवाले से लिखा, अमेरिका ने इजरायल के साथ मिलकर ईरान की फोर्डो न्यूक्लियर साइट पर बड़ा हमला किया. इस हमले में 75 सटीक निशाने वाले हथियार और बंकर तोड़ने वाले बमों का इस्तेमाल किया गया. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि इस हमले से जमीन के नीचे “भारी तबाही” मचाई गई है.

क्या वाकई ईरान कर रहा परमाणु बम बनाने की तैयारी?

परमाणु बम बनाने को लेकर ईरान लगातार दावा करता रहा है कि उसकी तैयारी शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है. लेकिन इस संघर्ष की शुरुआत इजरायल की ओर किए गए प्रीएम्प्टिव हमलों (यानी किसी तरह के खतरे के आने से पहले जवाबी कार्रवाई) से हुई, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई. हालांकि अमेरिका की खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, ईरान ने अब तक परमाणु हथियार बनाने का अंतिम निर्णय नहीं लिया है. फिर भी, राष्ट्रपति ट्रंप और इजरायली अधिकारी मानते हैं कि अगर मौका मिला, तो ईरान तेजी से परमाणु बम बना सकता है.

“ईरान के पास पर्याप्त यूरेनियम”

Financial Times ने Sima Shine, जो पहले इजरायल की खुफिया एजेंसी Mossad में ईरान डेस्क प्रमुख थीं, के हवाले से कहा, “ईरान के पास पहले से ही पर्याप्त एनरिच्ड यूरेनियम मौजूद है और उन्होंने कुछ आधुनिक सेंट्रीफ्यूज भी अलग जगहों पर सुरक्षित रखे हैं. वे भविष्य में कभी भी परमाणु हथियार बनाने की दिशा में बढ़ सकते हैं. चाहे अमेरिका जो भी कहे, यह कार्यक्रम पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ है.” ईरान के शीर्ष नेता अयातुल्ला खामेनेई के सलाहकार अली शामखानी ने भी X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “अगर परमाणु साइट्स नष्ट भी हो जाएं, तो भी खेल खत्म नहीं होता. हमारे पास एनरिच्ड यूरेनियम, अपनी स्वदेशी जानकारी और राजनीतिक इच्छाशक्ति मौजूद हैं.”

IAEA ने खड़े किए हाथ लेकिन इजरायल अपनी बात पर टिका

हमले से पहले ही ईरान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग को सीमित कर दिया था. अब हालात और बिगड़ गए हैं. IAEA ने पुष्टि की है कि Fordo, Natanz और Isfahan साइट्स पर अमेरिकी हमलों के बाद वहां निरीक्षण करने वाले काम बंद कर दिए गए हैं. इससे इतर, इजरायली अधिकारियों का मानना है कि ये हमले सिर्फ शुरुआत हैं. वे चाहते हैं कि अगर ईरान के साथ भविष्य में फिर से कोई बातचीत शुरू होती है, तो उसमें शर्त रखी जाए कि 60 फीसदी एनरिच्ड यूरेनियम देश से बाहर भेजा जाए.

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यूरेनियम की शिफ्टिंग को लेकर इजरायल और अमेरिका का टेक?

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि खुफिया जानकारी जुटाने में अभी कुछ दिन लग सकते हैं. उन्होंने कहा, “मुझे यकीन नहीं है कि ईरान ने वो यूरेनियम कहीं और भेजा है. क्योंकि इजरायल के पास इतना मजबूत सर्विलांस सिस्टम है कि अगर कोई ट्रक उस मटेरियल को लेकर चला हो, तो उन्होंने उसे जरूर देखा होगा और कार्रवाई की होगी.” हालांकि इजरायल का इस हमले को लेकर अलग ही रुख है. दो इजरायली अधिकारियों ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया है कि अमेरिका के हमले से पहले ईरान ने फोर्डो परमाणु प्लांट से बड़ी मात्रा में यूरेनियम और दूसरे अहम उपकरणों को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया था. वहीं, अमेरिका के वाइस प्रेसिडेंट जेडी वेंस का कहना है कि ईरान के पास अभी भी बड़े स्तर पर एनरिज्ड यूरेनियम का कंट्रोल है.

परमाणु हथियार से कितना दूर है ईरान?

IAEA की पिछली रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के पास 8,400 किलोग्राम यूरेनियम है, जिसमें से 408 किलोग्राम 60 फीसदी तक एनरिच्ड है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ईरान चाहे, तो इस मटेरियल का इस्तेमाल कई परमाणु बम बनाने के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए हथियारों में बदलने की प्रक्रिया में कई महीने या उससे अधिक का समय लग सकता है.

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