बंटवारे के 78 साल बाद ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान के इस यूनिवर्सिटी ने लिया संस्कृत पढ़ाने का फैसला!

पाकिस्तान में भी संस्कृत भाषा पढ़ाई जाएगी. पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) ने संस्कृत भाषा का कोर्स शुरू किया है. सबसे पहले यह पहल एक तीन महीने की वीकेंड वर्कशॉप से शुरू हुई थी, जिसमें छात्रों ने काफी दिलचस्पी दिखाई.

बंटवारे के 78 साल बाद ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान के इस यूनिवर्सिटी ने लिया संस्कृत पढ़ाने का फैसला!
देश के बंटवारे के 78 साल बाद पहली बार ऐसा हो रहा है, जब पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी संस्कृत भाषा पढ़ाई जाएगी. पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) ने संस्कृत भाषा का कोर्स शुरू किया है. सबसे पहले यह पहल एक तीन महीने की वीकेंड वर्कशॉप से शुरू हुई थी, जिसमें छात्रों ने काफी दिलचस्पी दिखाई. यह पहल ऐसे समय देखने को मिल रही है, जब दक्षिण एशिया में साझा विरासत और इतिहास को नए सिरे से देखने की कोशिशें तेज हो रही हैं.
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बंटवारे के 78 साल बाद ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान के इस यूनिवर्सिटी ने लिया संस्कृत पढ़ाने का फैसला!
जब पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) में संस्कृत की शुरुआत एक तीन महीने के वीकेंड वर्कशॉप के तौर पर हुई थी, तब किसी को अंदाजा नहीं था कि इसे इतना अच्छा रिस्पॉन्स मिलेगा. लेकिन छात्रों की दिलचस्पी इतनी ज्यादा रही कि इसे अब चार-क्रेडिट का पूरा यूनिवर्सिटी कोर्स बना दिया गया है. यही नहीं, यूनिवर्सिटी 2027 की स्प्रिंग तक इसे एक साल के फुल कोर्स के रूप में पेश करने की योजना भी बना रही है.
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ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि 78 साल बाद पाकिस्तान में ऐसा क्यों हो रहा है. इसका जवाब लाहौर यूनिवर्सिटी के गुरमानी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. अली उस्मान कासमी के बयान में छिपा है. उनके मुताबिक, पाकिस्तान के पास संस्कृत पांडुलिपियों का एक बेहद समृद्ध संग्रह है, लेकिन 1947 के बाद से इन पर स्थानीय पाकिस्तानी विद्वानों ने लगभग काम ही नहीं किया. उन्होंने बताया कि पंजाब यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में मौजूद संस्कृत के पाम-लीफ मैन्युस्क्रिप्ट्स को 1930 के दशक में विद्वान JCR Woolner ने कैटलॉग किया था. लेकिन आजादी के बाद से इन पर ज्यादातर विदेशी रिसर्चर्स ही काम करते रहे यानी 78 साल बाद यह एहसास गहरा हुआ कि अगर संस्कृत नहीं पढ़ाई गई, तो यह धरोहर पाकिस्तान के हाथ से निकलती जाएगी.
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LUMS के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शाहिद रशीद इस पहल को धर्म से अलग करके देखते हैं. उनका कहना है कि संस्कृत किसी एक धर्म की भाषा नहीं है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की साझा सांस्कृतिक भाषा है. वे बताते हैं कि प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनि का गांव इसी क्षेत्र में था और इंडस वैली सिविलाइजेशन के दौर में भी इस इलाके में व्यापक लेखन हुआ. डॉ. रशीद खुद अरबी और फारसी के बाद संस्कृत सीख चुके हैं. चूंकि पाकिस्तान में न शिक्षक थे और न किताबें, इसलिए उन्होंने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए कैम्ब्रिज की संस्कृत स्कॉलर Antonia Ruppel और ऑस्ट्रेलियन इंडोलॉजिस्ट McComas Taylor से पढ़ाई की. उनके मुताबिक, क्लासिकल संस्कृत व्याकरण सीखने में उन्हें करीब एक साल लगा और वे आज भी इसका अध्ययन कर रहे हैं.
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इस कोर्स में सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि ग्रंथों और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को भी जगह दी जा रही है. LUMS की योजना है कि महाभारत और भगवद गीता के श्लोक सिलेबस में शामिल हों. साथ ही ‘है कथा संग्राम की महाभारत सीरियल के मशहूर थीम सॉन्ग के उर्दू संस्करण को भी समझा जाए. यह दिखाता है कि इस पहल का मकसद टकराव नहीं, बल्कि संवाद है.
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डॉ. कासमी का मानना है कि अगर यूनिवर्सिटीज में संस्कृत पढ़ाई जाएगी, तो अगले 10–15 साल में पाकिस्तान में ही गीता और महाभारत के स्थानीय विद्वान तैयार हो सकते हैं और विदेशी रिसर्चर्स पर निर्भरता कम होगी. डॉ. शाहिद रशीद इसे और बड़े नजरिए से देखते हैं. उनका कहना है कि अगर भारत में ज्यादा हिंदू और सिख अरबी सीखें, और पाकिस्तान में अधिक मुसलमान संस्कृत पढ़ें, तो शायद दक्षिण एशिया के लिए यह एक नई, उम्मीद भरी शुरुआत हो सकती है, जहां भाषाएं दीवार नहीं, बल्कि पुल बनें.
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