देशभर में सबसे ज्यादा MP में आए पराली जलाने के मामले, किसानों पर 25 लाख रुपये का जुर्मान; 50 FIR दर्ज

मध्य प्रदेश में अप्रैल के पहले 15 दिनों में गेहूं के पराली जलाने के 15,830 मामले दर्ज किए गए, जो देश में सबसे ज्यादा हैं. राज्य सरकार ने 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और 50 से अधिक एफआईआर दर्ज की हैं. किसानों का कहना है कि मशीनों की कमी और बुवाई में देरी के कारण पराली जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

पराली जलाने के मामले बढ़े. Image Credit: tv9

मध्य प्रदेश में अप्रैल के पहले 15 दिनों के दौरान देश में सबसे ज्यादा गेहूं के पराली जलाने के मामले दर्ज किए हैं. इसके बाद राज्य सरकार ने कड़ी कार्रवाई की है. सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है और 50 से अधिक FIR दर्ज की हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, 1 अप्रैल से 18 अप्रैल तक मध्य प्रदेश में 15,830 से ज्यादा गेहूं के पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए, जबकि पंजाब में 14 मामले, हरियाणा में 47 मामले और उत्तर प्रदेश में 3,607 मामले दर्ज हुए.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य की जिला प्रशासन ने 1981 के वायु (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम की धारा 19(5) के तहत कृषि अवशेष जलाने पर प्रतिबंध लगाने के आदेश जारी किए हैं और कार्रवाई शुरू की है. कृषि और किसान कल्याण विभाग ने किसानों पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है और 50 से अधिक एफआईआर दर्ज की हैं. एक अधिकारी के मुताबिक, अगर कोई नियमों का उल्लंघन करता है तो 2 एकड़ से कम जमीन वाले छोटे भूमिधारकों को 2,500 रुपये प्रति घटना, 2 से 5 एकड़ ज़मीन वाले किसानों को 5,000 रुपये प्रति घटना और 5 एकड़ से अधिक जमीन वाले भूमिधारकों को 15,000 रुपये प्रति घटना का जुर्माना देना होगा.

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किसानों ने लगाया ये आरोप

राज्य प्रशासन के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों ने इसे बीजेपी-शासित राज्य सरकार द्वारा लागू की गई खराब नीति की सजा बताया है. किसान नेता राहुल राज ने कहा है कि फसल अवशेष जलाने का मुख्य कारण मशीनों की कमी और फसल बोने में देर होना है. उर्वरकों की कमी के कारण गेहूं की बुवाई में काफी देर हो जाती है और फिर किसानों को मूंग और अन्य तीसरी फसल की बुवाई के लिए बहुत कम समय मिलता है. किसानों के पास अब केवल एक विकल्प बचता है, यानी खेतों को साफ करने के लिए पराली जलाना. लेकिन अब उन्हें दंडित किया जा रहा है और प्रतिबंधात्मक आदेशों के उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं.

क्या कहती है NGT की रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में इस साल जनवरी में एक रिपोर्ट सौंपी गई थी, जिसमें कहा गया कि मध्य प्रदेश में 2023-24 में खेती के लिए उपलब्ध पावर 3.01 किलोवॉट प्रति हेक्टेयर (Kw/Ha) था. वहीं, पंजाब में यह 4.00 किलोवॉट प्रति हेक्टेयर से अधिक है, और राष्ट्रीय औसत 2.75 किलोवॉट प्रति हेक्टेयर है. इसका मतलब है कि मध्य प्रदेश में खेती की यांत्रिकीकरण का स्तर पंजाब की तुलना में कम है. मध्य प्रदेश में अब तक किसानों को 31,284 क्रॉप रिजीड्यू मैनेजमेंट (CRM) मशीनें दी गई हैं, और 2017 से 7,007 CHC मशीनों के साथ क्रॉप रिजीड्यू मैनेजमेंट सेंटर (CHC) को मजबूत किया गया है. राज्य में 23,000 से अधिक ग्राम पंचायतें हैं, लेकिन केवल 4,000 पंचायतों में ही CHC हैं.

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