पूर्व सेबी प्रमुख माधबी बुच को क्लीन चिट, लोकपाल ने माना आरोप निराधार, नहीं होगी कोई जांच
पूर्व सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच को हिंडनबर्ग से जुडे़ मामले में बड़ी राहत मिली है. बुच को लोकपाल की तरफ से क्लीन चिट दी गई है. इसके साथ ही कहा गया है कि बुच के खिलाफ की गई शिकायतों में कोई दम नहीं है, लिहाजा उनके खिलाफ जांच का कोई मामला ही नहीं बनता है.

भारतीय शेयर बाजार के नियामक निकाय सेबी की पूर्व प्रमुख माधबी पुरी बुच को बड़ी राहत मिली है. एंटी-करप्शन लोकपाल ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ी शिकायतों का निपटारा कर दिया है. लोकपाल ने उनके खिलाफ मिली शिकायतों का निस्तारण करते हुए किया है कि शिकायतें किसी ठोस सबूत के बजाय पूर्वाग्रह और अटकलों पर आधारित हैं. इसके साथ ही लोकपाल ने कहा कि चुंकि बुच के खिलाफ लगाए गए आरोपों में किसी तरह का दम नहीं है, ऐसे में उनके खिलाफ आगे कोई जांच किए जाने का भी औचित्य नहीं है.
लोकपाल ने क्या कहा?
लोकपाल ने अपने आदेश में कहा, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि शिकायत में लगाए गए आरोप कयासों और पूर्वानुमानों पर आधारित हैं. आरोपों के पक्ष में कोई सत्यापन योग्य सामग्री नहीं हैं. लिहाजा, प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 के भाग तीन के तहत वर्णित अपराधों का कोई मामला नहीं बनता है, जिनकी जांच के लिए निर्देश दिया जाए. ऐसे में इन शिकायतों का निपटारा किया जाता है. इसके साथ ही आदेश में कहा गया है कि शिकायतकर्ताओं ने आरोपों को स्पष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन आरोपों के विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलाता है कि वे अपुष्ट, अप्रमाणित और तुच्छ हैं. इसके साथ ही आदेश में आगे कहा गया है कि चूंकि यह एक लोक सेवक के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार का मामला है, लिहाजा, हमें संबंधित लोक सेवक की दलील पर सावधानी और सतर्कता से विचार करना होगा.

बुच के खिलाफ लगे ये पांच बड़े आरोप
लोकपाल ने बुच के खिलाफ लगाए गए तमाम आरोपों का विश्लेषण किया. इनमें पांच सबसे बड़े आरोपों में से एक आरोप यह था कि बुच और उनके पति धवल बुच ने एक ऐसे फंड में बड़ा निवेश किया, जिसका संबंध अडानी समूह से है. इसके अलावा महिंद्रा एंड महिंद्रा, ब्लैकस्टोन को कंसल्टेंसी के नाम पर फायदा पहुंचाना और Wockhardt से कंसल्टेंसी के बदले रेंटल इनकम लेने का आरोप लगाया गया. इसके अलावा 2017 से 2024 के बीच पांच वर्ष की अवधि में आईसीआईसीआई बैंक के ईएसओपी को बेचकर अनुचित लाभ कमाने का आरोप लगाया गया. लोकपाल ने 116 पन्ने के अपने आदेश में इन सभी आरोपों को बेबुनियाद पाया.
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