चीन पर नरम सरकार! नीति आयोग ने FDI नियमों में ढील देने की करी सिफारिश

भारत में विदेशी निवेश में गिरावट ने नीति निर्माताओं की चिंता बढ़ा दी है. एक बड़े आर्थिक मोड़ की तैयारी चल रही है. सूत्रों के हवाले से जो खबर सामने आई है, वह भारत-चीन रिश्तों के समीकरण को बदल सकती है. जानिए सरकार की अगली चाल क्या हो सकती है.

विदेशी निवेशक Image Credit: wenjin chen/DigitalVision Vectors/Getty Images

भारत में विदेशी निवेश (FDI) पिछले कुछ सालों में बुरी तरह से गिरा है. जहां 2020-21 में देश को 43.9 अरब डॉलर का शुद्ध एफडीआई मिला था, वहीं 2023-24 में यह घटकर सिर्फ 353 मिलियन डॉलर पर अटक गया. इस भारी गिरावट के पीछे एक बड़ी वजह चीन से आने वाले निवेशों पर सख्त सरकारी नियम माने जा रहे हैं. अब NITI Aayog चाहता है कि इन नियमों में कुछ ढील दी जाए, ताकि ठंडे पड़े निवेश बाजार में फिर से जान डाली जा सके.

क्या है मौजूदा नियम?

भारत सरकार ने अप्रैल 2020 में फैसला लिया था कि जो भी देश भारत की सीमा से जुड़ते हैं, उनके निवेशकों को हर सौदे के लिए गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से सुरक्षा मंजूरी लेनी होगी. यह नियम खासतौर पर चीन को प्रभावित करता है. अमेरिका, यूरोप या जापान जैसे देशों के निवेशक जहां आसानी से मैन्युफैक्चरिंग, फार्मा जैसे क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं, वहीं चीनी कंपनियों के लिए हर सौदे की जांच जरूरी हो गई थी.

NITI आयोग ने क्या की सिफारिश?

रॉयटर्स ने सरकारी सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट किया है कि NITI Aayog ने सिफारिश की है कि चीनी कंपनियों को 24 फीसदी तक हिस्सेदारी वाले निवेश के लिए अब मंजूरी लेने की जरूरत न हो. आयोग का मानना है कि मौजूदा नियमों के कारण कई बड़े इंवेस्टमेंट डील अधर में लटक गए हैं. उदाहरण के लिए, चीन की इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी BYD का भारत में एक अरब डॉलर का निवेश प्लान 2023 में मंजूरी न मिलने के कारण रुक गया था.

सूत्रों के मुताबिक, वाणिज्य मंत्रालय का उद्योग विभाग इस ढील के पक्ष में है, जबकि गृह, वित्त और विदेश मंत्रालय अभी इस प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं. अंतिम फैसला प्रधानमंत्री कार्यालय और राजनीतिक नेतृत्व को लेना है जिसमें कुछ महीने लग सकते हैं.

भारत-चीन रिश्तों में नरमी का असर

2020 के बाद से भारत और चीन के रिश्तों में काफी तनाव रहा है, लेकिन हाल के महीनों में हालात कुछ बेहतर हुए हैं. पिछले अक्टूबर से सीमाई तनाव में कमी आई है, दोनों देशों के बीच फ्लाइट्स शुरू करने की योजना है और इस हफ्ते विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पांच साल बाद चीन की यात्रा की है. ऐसे में निवेश के नियमों में नरमी को दोनों देशों के बीच भरोसे की बहाली के संकेत के रूप में भी देखा जा सकता है.

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FDI अप्रूवल बोर्ड में भी सुधार की सिफारिश

NITI Aayog ने यह भी सुझाव दिया है कि विदेशी निवेश प्रस्तावों को मंजूरी देने वाले बोर्ड के ढांचे में बदलाव किया जाए, ताकि निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज और पारदर्शी हो सके.

इस पूरी कवायद का मकसद यही है कि भारत में निवेश का माहौल बेहतर बने और वैश्विक निवेशकों को भारत में अपनी पूंजी लगाने में आसानी हो.