Atomic energy Bill: इन विदेशी कंपनियों के लिए खुलेगा रास्ता, RIL-TATA बनेंगे पावरफुल, यूं बदलेगा न्यूक्लियर पावर बाजार
भारत के परमाणु ऊर्जा सेक्टर में जल्द ही बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं. सरकार द्वारा प्रस्तावित नए विधेयक में ऐसे प्रावधान शामिल किए जा रहे हैं, जो देश की ऊर्जा नीति की दिशा बदल सकते हैं. इन बदलावों का असर केवल घरेलू ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिल सकता है. पूरी तस्वीर अभी सामने आना बाकी है.
तमिलनाडु के कुडंकुलम से लेकर गुजरात और आंध्र प्रदेश तक फैले न्यूक्लियर एनर्जी सिस्टम अब भारत की ऊर्जा क्रांति के गवाह बन सकते हैं. केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में ‘एटॉमिक एनर्जी बिल 2025’ पेश करने की तैयारी में है, जिसका मकसद सिर्फ कानून बदलना नहीं बल्कि परमाणु ऊर्जा के दरवाजे निजी कंपनियों के लिए खोलना भी है. सरकार 2047 तक देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता को 100 गीगावॉट (GW) तक पहुंचाना चाहती है और इसके लिए अब उसे निजी और विदेशी निवेश की जरूरत महसूस हो रही है.
इस बिल में दो ऐसे बड़े बदलाव प्रस्तावित हैं, जो भारत के पूरे न्यूक्लियर सेक्टर की तस्वीर बदल सकते हैं. अव्वल, टैरिफ का नया ढांचा और दूजा, दुर्घटनाओं की स्थिति में लायबिलिटी यानी जिम्मेदारी का नया मॉडल.
- टैरिफ फ्रेमवर्क में बड़ा बदलाव
फिलहाल भारत में न्यूक्लियर एनर्जी सिस्टम के लिए टैरिफ तय करने में परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की प्रमुख भूमिका होती है. जबकि देश की बाकी बिजली परियोजनाओं के टैरिफ केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) तय करता है. नए बिल में व्यावसायिक परमाणु संयंत्रों को भी CERC के दायरे में लाया जा सकता है.
इंडस्ट्री का कहना है कि इससे टैरिफ तय करने की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी और इसमें प्रतिस्पर्धात्मक बोली (competitive bidding) का रास्ता भी खुलेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ती है, तो सरकार के सीधे नियंत्रण की जगह एक स्वतंत्र नियामक ढांचा काम करेगा, जिससे बिजली की कीमतों को लेकर स्थिरता और पारदर्शिता आएगी. इसका सीधा फायदा अंततः उपभोक्ताओं को मिल सकता है.
- लायबिलिटी- प्राइवेट प्लेयर के लिए राहत की बात
अब तक लागू न्यूक्लियर लायबिलिटी एक्ट 2010 (CLNDA) के तहत अगर किसी परमाणु दुर्घटना की स्थिति बनती है, तो ऑपरेटर की ‘नो-फॉल्ट’ जिम्मेदारी ₹1,500 करोड़ तक सीमित है. इससे ज्यादा नुकसान की भरपाई सरकार करती है. लेकिन यही प्रावधान विदेशी और निजी कंपनियों के लिए अब तक एक बड़ी बाधा बना रहा है. साथ ही विदेशी कंपनियों के लिए एक बड़ी चिंता यह थी कि उन्हें असीमित कानूनी जोखिम का सामना करना पड़ सकता है.
एटॉमिक एनर्जी बिल 2025 इस समस्या का समाधान करने का दावा कर सकता है. इसमें एक “न्यूक्लियर लायबिलिटी फंड” बनाने का प्रस्ताव लाया जा सकता है, जो ₹15,000 करोड़ तक के दावों के लिए एक अतिरिक्त सुरक्षा कवच के तौर पर काम करेगा. साथ ही, सप्लायर कंपनियों पर लगने वाली असीमित जिम्मेदारी को हटाने का भी प्रस्ताव है.
यानी अब अगर कोई विदेशी कंपनी भारत में न्यूक्लियर तकनीक या उपकरण सप्लाई करती है, तो उसे अनंत कानूनी जोखिम का डर नहीं रहेगा. यही बदलाव भारत को विदेशी निवेशकों के लिए ज्यादा ‘सेफ और फाइनेंशियली वायबल’ बना सकता है.
विदेशी कंपनियों की एंट्री के खुल सकते हैं रास्ते
जैसे ही निजी क्षेत्र के लिए रास्ता खुलेगा, वैसे ही दुनिया की दिग्गज परमाणु ऊर्जा कंपनियों की नजर भारत पर टिक सकती है. Westinghouse Electric (अमेरिका), GE-Hitachi (अमेरिका-जापान), Electricité de France – EDF (फ्रांस) और Rosatom (रूस) जैसी कंपनियां पहले भी भारतीय न्यूक्लियर सेक्टर में दिलचस्पी दिखा चुकी हैं.
नए कानून के बाद इन कंपनियों को भारत में टेक्नोलॉजी साझेदारी, रिएक्टर निर्माण और ऑपरेशन के लिए कानूनी रूप से कहीं अधिक स्पष्टता और सुरक्षा मिलेगी. माना जा रहा है कि ये कंपनियां भारत में अकेले काम करने के बजाय भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर प्रोजेक्ट्स पर काम करेंगी.
भारतीय कंपनियों को कैसे होगा फायदा?
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर विदेशी कंपनियां भारत में आती हैं, तो उन्हें जमीन, इन्फ्रास्ट्रक्चर, लोकल मैन्युफैक्चरिंग और लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए भारतीय पार्टनर की जरूरत होगी. ऐसे में रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा पावर, अडानी पावर और वेदांता लिमिटेड जैसी बड़ी लिस्टेड कंपनियों के लिए बड़े मौके बन सकते हैं.
ये कंपनियां जॉइंट वेंचर, EPC कॉन्ट्रैक्ट, फ्यूल सप्लाई, ट्रांसमिशन और टेक्निकल सपोर्ट जैसी भूमिकाएं निभा सकती हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर करीब 26 अरब डॉलर के निवेश पर विचार कर रहा है. इसका मतलब यह होगा कि न्यूक्लियर सेक्टर अब केवल सरकारी क्षेत्र तक सीमित नहीं रह जाएगा, बल्कि कॉरपोरेट इंडिया का एक बड़ा हिस्सा बन सकता है.
संभावित प्रभाव और चुनौतियां
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बिल भारत को स्वच्छ और स्थायी ऊर्जा की दिशा में एक बड़ी छलांग दिला सकता है. परमाणु ऊर्जा कार्बन उत्सर्जन के मामले में काफी कम होती है और कोयले पर निर्भरता घटाने में मदद कर सकती है. इससे बिजली उत्पादन में विविधता आएगी और लॉन्ग टर्म में एनर्जी सिक्योरिटी मजबूत हो सकती है.
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हालांकि, इसके साथ जोखिम भी जुड़े हैं. परमाणु सुरक्षा, रेडियोधर्मी कचरे का प्रबंधन, उच्च लागत और पर्यावरणीय जोखिम जैसे मुद्दे हमेशा सवाल खड़े करते रहे हैं. इसलिए विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि निजी क्षेत्र के आने के बावजूद सुरक्षा मानकों और निगरानी व्यवस्था में किसी भी तरह की ढील नहीं दी जानी चाहिए. कुल मिलाकर, ‘एटॉमिक एनर्जी बिल 2025’ भारत के लिए एक बड़ा और निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है.