मजबूत GDP भी न रोक पाई गिरावट, रुपया पहली बार 89.76 पर लड़खड़ाया; जानें क्या रही वजहें

मजबूत GDP ग्रोथ के बावजूद भारतीय रुपये ने दिसंबर की शुरुआत ऐतिहासिक कमजोरी के साथ की. बाजार में उतार-चढ़ाव, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और वैश्विक दबावों ने मिलकर माहौल और भारी बना दिया है. निवेशकों की निगाह अब अगले कुछ दिनों की चाल पर है कि क्या मुद्रा को कोई सहारा मिल पाएगा.

रिकॉर्ड लो तक फिसला रुपया Image Credit: Money9 Live

Indian rupee record low: भारत की तेज GDP ग्रोथ भी रुपये को सहारा नहीं दे सकी. 1 दिसंबर को भारतीय मुद्रा पहली बार 89.76 प्रति डॉलर के स्तर तक फिसल गई, जो इसका अब तक का सबसे कमजोर स्तर है. देश की Q2 GDP ग्रोथ का आंकड़ा जब 8.2 फीसदी है , उस वक्त भी यह गिरावट आना चौंकाती है. GDP ग्रोथ के आंकड़े ने शेयर बाजार और बॉन्ड यील्ड को तो नई ऊंचाई पर पहुंचाया, लेकिन रुपये को संभाल नहीं पाया.

क्या है रुपये की कमजोरी की वजह?

जुलाई–सितंबर तिमाही के लिए 8.2 फीसदी की साल-दर-साल GDP ग्रोथ ने घरेलू बाजार को मजबूती दी. स्टॉक मार्केट रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा और 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड यील्ड 6.553% तक बढ़ गई. इसके बावजूद रुपये पर इसका लगभग कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा. मुद्रा बाजार में दबाव इतना ज्यादा रहा कि रुपये ने पिछले दो हफ्तों का रिकॉर्ड पार करते हुए नया निचला स्तर छू लिया.

रुपये की कमजोरी की एक बड़ी वजह FPI की बिकवाली है. बीते शुक्रवार को विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयरों में लगभग 400 मिलियन डॉलर की बिक्री की, जिसके बाद सालभर का कुल आउटफ्लो 16 बिलियन डॉलर से भी अधिक हो गया. लगातार हो रहे इन आउटफ्लो से रुपये पर भारी दबाव बना हुआ है.

NDF मार्केट और फॉरवर्ड बुक का असर

ट्रेडर्स के अनुसार, नॉन-डिलीवेरेबल फॉरवर्ड्स (NDF) बाजार में बड़े पोजिशन मैच्योर होने का भी रुपये पर असर पड़ा. बाजार बंद होने के बाद जारी आंकड़ों से पता चला कि अक्टूबर में RBI की फॉरवर्ड बुक 63 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई थी, जो यह संकेत देती है कि केंद्रीय बैंक को मुद्रा को संभालने के लिए लगातार हस्तक्षेप करना पड़ा है.

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अमेरिकी टैरिफ और बढ़ता व्यापार घाटा भी बने कारण

पिछले महीने भारतीय और अमेरिकी अधिकारियों की टिप्पणियों से उम्मीद जगी थी कि भारत के निर्यात पर लगे 50 फीसदी तक के अमेरिकी टैरिफ जल्द कम होंगे. लेकिन ठोस समझौता न होने से बाजार में मायूसी छाई और इसका असर रुपये पर भी दिखा. यही नहीं, अक्टूबर में भारत का व्यापार घाटा अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया, जिसने मुद्रा को और कमजोर किया.

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