मैसूर सैंडल सोप सरकारी है या प्राइवेट, जानें कौन है मालिक, कैसे निशाना पर आ गई तमन्ना भाटिया

मैसूर सैंडल सोप ने तमन्ना भाटिया को ब्रांड एम्बेसडर बनाया है, जिस पर कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में विरोध हो रहा है. लोग इस फैसले को कन्नड़ विरोधी मान रहे हैं. यह साबुन 100 फीसदी शुद्ध चंदन तेल से बनता है और दक्षिण भारत में इसकी गहरी पहचान है. निर्माता कंपनी KSDL अब देशभर में विस्तार कर रही है.

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Mysore Sandal Soap: दक्षिण भारत की लोकप्रिय ब्रांड मैसूर सैंडल सोप ने अभिनेत्री तमन्ना भाटिया को अपना नया ब्रांड एम्बेसडर बनाया है. इसकी जानकारी कंपनी ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दी. लेकिन कंपनी के इस फैसले के बाद अब विवाद खड़ा हो गया है. कई कन्नड़ फिल्म कलाकारों और सोशल मीडिया यूजर्स ने इस कदम की आलोचना करते हुए सवाल उठाया है कि जब कन्नड़ इंडस्ट्री में भी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियां मौजूद हैं, तो बाहर की एक्ट्रेस को ब्रांड का चेहरा क्यों बनाया गया?

दक्षिण भारत का फेमस ब्रांड

मैसूर सैंडल सोप दक्षिण भारत में वर्षों से एक भरोसेमंद नाम है. इसकी कुल बिक्री का लगभग 81 फीसदी हिस्सा दक्षिणी राज्यों से आता है. इसमें आंध्र प्रदेश सबसे बड़ा कंज्यूमर राज्य है, इसके बाद तमिलनाडु और फिर कर्नाटक का नंबर आता है. इस ब्रांड से उपभोक्ताओं का गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव है, जिससे यह अब भी दक्षिण भारत में बेहद प्रासंगिक बना हुआ है.

कौन है मालिक

इसका साबुन को कर्नाटक सरकार की कंपनी कर्नाटका सोप्स एंड डिटर्जेंट्स लिमिटेड (KSDL) बनाती है. कंपनी इस ब्रांड को पूरे देश में फैलाने की योजना पर काम कर रही है. कंपनी की रणनीति है कि वह 480 नए डिस्ट्रीब्यूटर देशभर में जोड़े और इस साबुन की पहुंच जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों तक बढ़ाए.

KSDL का रिकॉर्ड कारोबार

KSDL केवल मैसूर सैंडल सोप ही नहीं, बल्कि क्लीनिंग प्रोडक्ट्स और अगरबत्तियां भी बनाती है. हालांकि, सबसे अधिक लोकप्रियता मैसूर सैंडल सोप को ही मिली है. मार्च 2024 के अंत तक कंपनी ने 1,500 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड कारोबार किया, जो पिछले 40 वर्षों में उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है.

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100 फीसदी शुद्ध चंदन तेल से बना साबुन

मैसूर सैंडल सोप को खास बनाता है इसका 100 फीसदी शुद्ध सैंडलवुड ऑयल. यह दुनिया का ऐसा एकमात्र साबुन है जिसमें किसी भी तरह की सिंथेटिक सुगंध नहीं होती. इसकी प्राकृतिक चंदन खुशबू लंबे समय तक बनी रहती है और यह त्वचा के लिए भी बेहद सही माना जाता है. यह भारतीय परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है और भारत का पहला Geographical Indication (GI) टैग प्राप्त करने वाला साबुन है.