PSB Merger: देश में केवल 4 सरकारी बैंक! सीधे चीन-अमेरिका को टक्कर, जानें मर्जर की इनसाइड स्टोरी
PSB Merger: वित्त मंत्री का मानना है कि भारत को कई बड़े और विश्वस्तरीय बैंकों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि पब्लिक सेक्टर के बैंकों (PSB) का विलय बड़ी बैंकिंग संस्थाओं के गठन के तरीकों में से एक है. पिछला बड़ा इंटीग्रेशन अगस्त 2019 में घोषित किया गया था, जब 27 पब्लिक सेक्टर के बैंकों को मिलाकर 12 सरकारी बैंक बनाए गए थे.
PSB Merger: भारत 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बनना चाहता है और इसका रास्ता डेवलपमेंट और फाइनेंशनियल इन्क्लूजन से होकर गुजरता है. इसे गति देने के लिए वैश्विक स्तर के बैंकों की जरूरत है, क्योंकि मौजूदा समय में दुनिया के टॉप 100 बैंकों की सूची में भारत के केवल दो ही बैंक शामिल हैं. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया 43वें और एचडीएफसी बैंक 73वें स्थान पर है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि सरकार ने भारत में बड़े बैंक बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और बैंकों के साथ बातचीत शुरू कर दी है. वित्त मंत्री का मानना है कि भारत को कई बड़े और विश्वस्तरीय बैंकों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि पब्लिक सेक्टर के बैंकों (PSB) का विलय बड़ी बैंकिंग संस्थाओं के गठन के तरीकों में से एक है.
बैंक क्रेडिट-जीडीपी रेश्यो
आज बैंकिंग सिस्टम का बकाया कर्ज लगभग 180 लाख करोड़ रुपये हैं, जबकि जमा राशि 200 लाख करोड़ रुपये है, जो वैश्विक संदर्भ में कम है. भारत का बैंक क्रेडिट-जीडीपी रेश्यो अपेक्षाकृत कम बना हुआ है, जो लॉन्ग टर्म क्रेडिट ग्रोथ की पर्याप्त गुंजाइश को दिखाता है. 17 अक्टूबर 2025 तक टोटल क्रेडिट ऑफ टेक 192.1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जबकि जमा राशि 238.8 लाख करोड़ रुपये थी.
चीन के बैंकों का दबदबा
टॉप चार वैश्विक बैंक चीन के हैं, जिसके शीर्ष 20 बैंकों में सात बैंक हैं. अगर भारत का जीडीपी 30 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाना है, जो वर्तमान स्तर से लगभग दस गुना अधिक है, तो बैंक फंडिंग को मौजूदा 56 फीसदी से बढ़ाकर जीडीपी का लगभग 130 फीसदी करना होगा.
बड़े बैंकों की क्यों बेहतर है स्थिति?
बड़े बैंक आमतौर पर बेहतर कैपिटलाइज्ड होते हैं, जिससे वे अपनी बैलेंस शीट या लाभ-हानि खातों को प्रभावित किए बिना किसी भी झटके को झेलने में सक्षम होते हैं. उनकी रिस्क और क्रेडिट क्षमता अधिक होगी. चूंकि उनके पास बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्थाएं होती हैं, इसलिए बड़े बैंक बड़े एसेट्स और देनदारियों वाले पोर्टफोलियो पर लागत वहन कर सकते हैं और इस प्रकार अधिक कॉस्ट एफिशिएंट बन सकते हैं. सरकारी बैंकों की कॉस्ट-इनकम रेश्यो अपेक्षाकृत अधिक है, जो लगभग 52 फीसदी और निजी बैंकों का 45.9 फीसदी है.
अगर यह कम हो जाता है, तो बचत का प्रॉफिट ग्राहकों को दिया जा सकता है. उदाहरण के लिए, वे ऐसे समय में बचत पर बचतकर्ताओं को हाई ब्याज दरें दे सकते हैं जब जमा राशि में धीमी वृद्धि हो रही है. विलय के जरिए बने बड़े ब्रान्च नेटवर्क बैंकों को दूर-दराज के क्षेत्रों में ग्राहकों तक पहुँचने में मदद कर सकते हैं. इससे उन्हें वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हुए अपने व्यवसाय को तेजी से बढ़ाने में मदद मिलती है. मर्जर से बैंकों को एक-दूसरे की बैंकिंग, आईटी और ज्योग्राफिकल स्ट्रेंथ और कॉम्प्लिमेंट्री का लाभ उठाने में मदद मिलती है. नेशनल प्रेजेंस उन्हें डायवर्सिफाइड रिस्क को कम करने में मदद करती है.
मर्जर का पिछला दौर कैसा रहा था?
पिछला बड़ा इंटीग्रेशन अगस्त 2019 में घोषित किया गया था, जब 27 पब्लिक सेक्टर के बैंकों को मिलाकर 12 सरकारी बैंक बनाए गए थे. इन मर्जर ने ऑपरेशनल एक्सपेंडिचर कम करके ऋणदाताओं को अधिक एफिशिएंट बनाने में मदद की है. वास्तव में पब्लिक सेक्टर के बैंकों की बाजार हिस्सेदारी बढ़ रही है. उदाहरण के लिए, जून तिमाही में पब्लिक सेक्टर के बैंकों की ग्रोथ, प्राइवेट सेक्टर के बैंकों की तुलना में तेजी से हुई और जमा वृद्धि का अंतर और कम हो गया.
SBI को कैसे फ्लेक्सिबल बना रही सरकार?
मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने पब्लिक सेक्टर के बैंकों के पूर्णकालिक निदेशकों के चयन के दिशानिर्देशों में बदलाव किया है, जो पहले के सभी मानदंडों को बदल देता है. नए दिशानिर्देशों के तहत, प्राइवेट सेक्टर के उम्मीदवार भारतीय स्टेट बैंक के चार प्रबंध निदेशक पदों में से किसी एक के लिए आवेदन कर सकते हैं. सरकार बड़े सरकारी बैंकों में प्राइवेट सेक्टर के लिए कम से कम एक कार्यकारी निदेशक का पद भी खोल रही है.
क्या केवल मर्जर ही बैंकों को बदल सकते हैं?
वित्त मंत्री ने कहा कि यह केवल विलय के बारे में नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हमें एक ऐसे माहौल की ज़रूरत है जहां बैंक काम कर सकें और आगे बढ़ सकें. इससे पता चलता है कि बैंकों को अधिक आसानी से काम करने में मदद करने के लिए कुछ नियामक बदलाव किए जा सकते हैं. ऐसे सुझाव आए हैं कि बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और ट्रांसफर) अधिनियम, जो पब्लिक सेक्टर के बैंकों को नियंत्रित करता है, को समाप्त कर दिया जाए और इन बैंकों को निजी क्षेत्र के बैंकों की तरह कंपनी अधिनियम के तहत लाया जाए. इससे सरकार पब्लिक सेक्टर के बैंकों में अपनी हिस्सेदारी कम कर सकेगी. हालांकि, सरकार अभी भी सबसे बड़ी मालिक होगी, लेकिन बैंक भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और केंद्रीय सतर्कता आयोग के दायरे में नहीं होंगे. साथ ही, अधिकांश निदेशक स्वतंत्र निदेशक होंगे.