सवालों के घेरे में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इस दिग्गज की खरीद ली 7.25 करोड़ की किताबें
Union Bank of India पर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं. बैंक ने लाखों की किताबें खरीदने में करोड़ों रुपये उड़ा दिए हैं. ये किताब पूर्व चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर कृष्णमूर्ति वी सुब्रमणियन की हैं जिन्हें दो दिन पहले IMF से अचानक हटा दिया गया है.

Union Bank of India Case: सरकारी बैंक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया इस समय विवादों में है. विवाद की वजह है 7 करोड़ की 2 लाख किताबें. दरअसल यूनियन बैंक ने लगभग 2 लाख किताबों की खरीद पर 7.25 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इस किताब का नाम है India@100: एनविजनिंग टुमॉरोज इकोनॉमिक पॉवरहाउस (India@100: Envisioning Tomorrow’s Economic Powerhouse). इसके लेखक कृष्णमूर्ति वी सुब्रमणियन हैं जो पहले भारत सरकार के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर रह चुके हैं और जिन्हें IMF भारत की ओर से नियुक्त किया गया था, लेकिन उनके कार्यकाल को 4 मई 2025 को समय से पहले ही समाप्त कर दिया. ये जानकारी ईटी की रिपोर्ट में सामने आई है, मनी9लाइव स्वतंत्र रुप से इसकी पुष्टि नहीं करता है.
बैंक ने क्यों खरीदी करोड़ों की किताबें
बैंक ने 1,89,450 पेपरबैक कॉपी 100 रुपये प्रति किताब की दर से और 10,422 हार्डकवर कॉपी 597 रुपये प्रति किताब की दर से खरीदी हैं. यह कुल खर्च 7.25 करोड़ रुपये बैठता है. ये किताबें बैंक के अलग-अलग जोनल और रीजनल ऑफिस के जरिए स्कूलों, कॉलेजों, लाइब्रेरीज और ग्राहकों को देने के लिए खरीदी गई थी, ताकि बैंक की 100वीं सालगिरह के मौके पर आर्थिक जानकारी को बढ़ावा दिया जा सके.
इसलिए बैंक पर सवाल उठ रहा है कि क्या इतनी बड़ी मात्रा में किताबें खरीदना वाकई जरूरी था? और क्या यह खर्च सही था इसकी वजह से बैंक पर पारदर्शिता को लेकर सवाल उठने लगे हैं. ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि सुब्रमणियन ने IMF में रहते हुए इस किताब को बढ़ावा देने में अपने पद का गलत इस्तेमाल किया यही वजह है कि यूनियन बैंक अब इस विवाद में घिर गया है.
अब आगे क्या?
इस मामले में बैंक के एक जनरल मैनेजर को सस्पेंड भी कर दिया गया है और ये मुद्दा हाल ही की बोर्ड मीटिंग में भी उठा है. AIBEA यानी ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉयज असोसिएशन ने इस पूरे खर्च को फिजूलखर्ची बताया है और इस पर जांच की मांग की है. यूनियन ने सितंबर 2024 की स्ट्राइक नोटिस के बाद हुई बातचीत में यह मुद्दा उठाया था और फिर इसे 21 दिसंबर 2024 को साइन हुए MoU में “मुद्दा नंबर 14” के तौर पर दर्ज किया था. यूनियन अब भी मांग कर रहा है कि इस खर्च की पूरी तरह से समीक्षा हो और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए.
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