इतिहास, भूगोल और आपसी निर्भरता से बंधे हैं भारत-बांग्लादेश; फिर पड़ोसी मुल्क में क्यों धधक रही इंडिया विरोधी आग?
शेख हसीना के आलोचक भारत और हसीना को हमेशा एक ही मानते रहे हैं. उनका मानना था कि उन्हें नई दिल्ली से मजबूत राजनीतिक समर्थन मिला हुआ है. यह धारणा 2019 के विवादित चुनावों और 2024 की शुरुआत में हुए चुनावों के बाद और भी पक्की हो गई.
भारत के पूर्वी सीमा से लगा पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश शोर और कोलाहाल के बीच, धीमी सांस के साथ राजनीतिक अस्थिरता के खत्म होने का इंतजार कर रहा है. भीड़ और शोर के बीच से निकले एक जुमले में लगातार इंडिया का जिक्र हो रहा है. जुमला है- ‘हसीना इज इंडिया एंड इंडिया इज हसीना‘, यानी हसीना भारत हैं और भारत हसीना है. यह जुमला बांग्लादेश के छात्र संगठनों और विपक्षी ग्रुप्स के बीच लंबे समय से चल रहा है, जो इस विश्वास को दिखाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और नई दिल्ली को अलग नहीं किया जा सकता. शेख हसीना के आलोचक भारत और हसीना को हमेशा एक ही मानते रहे हैं. उनका मानना था कि उन्हें नई दिल्ली से मजबूत राजनीतिक समर्थन मिला हुआ है. यह धारणा 2019 के विवादित चुनावों और 2024 की शुरुआत में हुए चुनावों के बाद और भी पक्की हो गई. असल में हसीना की जीत की स्पीच में भारत का खास जिक्र किया गया था.
उन्होंने कहा था, ‘भारत बांग्लादेश का बहुत अच्छा दोस्त है. उन्होंने 1971 और 1975 में हमारा साथ दिया. उन्होंने मुझे, मेरी बहन और मेरे परिवार के दूसरे सदस्यों को पनाह दी.’ हसीना ने अपने निर्वासन के समय का ज़िक्र करते हुए यह बात कही थी, जब उनके पिता ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान और परिवार के दूसरे सदस्यों की हत्या के बाद वह छह साल तक भारत में रही थीं.
भारत के प्रति दुश्मनी
बांग्लादेश के छात्र संगठनों और विपक्षी ग्रुप्स ने भारत के प्रति अपनी दुश्मनी कभी भी छिपाने की कोशिश नहीं की है, चाहे वह 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हों या फिर देश में चल रही भारत विरोधी प्रदर्शनों की मौजूदा लहर को और हवा देना हो.
अवामी लीग के विरोधी और कट्टरपंथी इस्लामी समूहों ने लगातार हसीना की पार्टी को हिंदू समर्थक, भारत समर्थक पार्टी के तौर पर दिखाया है. कई लोगों का मानना है कि सत्ता में अपने 15 साल के दौरान, हसीना ने भारत को वह सब दिया जो वह अपने पड़ोस में सबसे ज्यादा चाहता है. भारत की सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष दोनों ने उन्हें एक करीबी दोस्त के तौर पर देखा है.
हालांकि, बांग्लादेश में हसीना के खिलाफ बढ़ते गुस्से के साथ-साथ भारत के प्रति भी नाराजगी बढ़ गई है. ढाका स्थित सेंटर फॉर अल्टरनेटिव्स के मार्च 2025 के एक हालिया सर्वे में पाया गया कि 75 फीसदी से अधिक बांग्लादेशी बीजिंग के साथ संबंधों को पॉजिटिव नजर से देखते हैं, जबकि दिल्ली के लिए यह आंकड़ा सिर्फ 11 फीसदी था, जो पिछले साल के विद्रोह के बाद बदलते माहौल का एक साफ संकेत है.
दबंग पड़ोसी है दिल्ली?
कई बांग्लादेशी, भारत पर आरोप लगाते हैं कि वह सत्तावादी होती जा रहीं हसीना का साथ दे रहा है. वे दिल्ली को एक दबंग पड़ोसी मानते हैं. हालात और खराब तब हुए जब हसीना की अवामी लीग भारत विरोधी विरोध प्रदर्शनों के दौरान ज्यादातर चुप रही. इससे जमीन पर कोई राजनीतिक ताकत बची नहीं, जो इस कहानी का मुकाबला कर सके या लोगों के गुस्से को शांत कर सके.
छात्र नेता और इंकलाब मंच के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद बांग्लादेश में फिर से अशांति फैल गई. 18 दिसंबर को गोली लगने के एक हफ्ते बाद उस्मान हादी की हुई मौत की खबर से लाखों समर्थक सड़कों पर उतर आए. फिर विरोध प्रदर्शन जल्दी ही हिंसक हो गए, जिसमें आगजनी हुई, इमारतों में आग लगा दी गई और मीडिया हाउस को निशाना बनाया गया.
एंटी-हसीना इंकलाब मंच से भारत का जिक्र
जब एंटी-हसीना इंकलाब मंच ने हादी की मौत की घोषणा की, तो उसने साफ तौर पर भारत का जिक्र किया, जिससे यह पता चलता है कि भारत विरोधी भावना उसकी राजनीतिक पहचान के लिए कितनी जरूरी थी. हादी बांग्लादेश की लगभग हर राजनीतिक विफलता को, आर्थिक ठहराव से लेकर अवामी लीग के बने रहने तक, उस चीज का लक्षण बताता था जिसे वह ‘भारतीय वर्चस्व’ कहता था.
इंकलाब मंच ने उनकी मौत की घोषणा करते हुए एक फेसबुक पोस्ट में लिखा,’ भारतीय वर्चस्व के खिलाफ संघर्ष में अल्लाह ने महान क्रांतिकारी उस्मान हादी को शहीद के रूप में स्वीकार किया है.’
हादी, छात्र विरोध समूह इंकलाब मंच का एक नेता था और वह भारत और शेख हसीना दोनों का खुलकर आलोचक था. दावा किया गया कि हादी के शूटर शायद भारत भाग गए थे. इसने आग में घी डालने का भरपूर काम किया. भारत विरोधी विरोध प्रदर्शनों की लहर हादी की हत्या पर हुए प्रदर्शनों के साथ मिल गई, जिससे दोनों पड़ोसियों के बीच संकट और गहरा गया. अशांति के दौरान, दीपू चंद्र दास नाम के एक हिंदू व्यक्ति को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला, इस घटना ने तनाव को और बढ़ा दिया.
भारत ने क्या कहा?
विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने दो हिंदू पुरुषों की हत्या की निंदा की और ‘समावेशीट चुनाव कराने की भारत की मांग को दोहराया, जिससे यह संकेत मिलता है कि भारत फरवरी 2026 के चुनाव में किसी भी राजनीतिक पार्टी को भाग लेने से रोकने का विरोध करता है. उन्होंने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के एक पैटर्न का भी जिक्र किया.
इतिहास, भूगोल और आपसी निर्भरता
भारत और बांग्लादेश इतिहास, भूगोल और आपसी निर्भरता से बंधे हुए हैं. भारत ने 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी में अहम भूमिका निभाई. युद्ध के दौरान सैन्य सहायता दी और लाखों शरणार्थियों को शरण भी दी. कई बांग्लादेशियों के लिए, वह पल आज भी दोनों देशों के संबंधों को परिभाषित करता है और देश के जन्म में भारत की भूमिका के लिए कृतज्ञता बनी हुई है.
फिर भी शुरू से ही नजदीकी ने शक पैदा किया. एक कहानी बन गई कि भारत ने बांग्लादेश की आजादी का समर्थन मुख्य रूप से अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने, पाकिस्तान को कमजोर करने और बांटने के लिए किया था. यह सोच इस्लामी और राष्ट्रवादी बयानबाजी में बनी हुई है, जिसमें अंसार अल इस्लाम जैसे समूह शामिल हैं, जो बांग्लादेश की आजादी को दक्षिण एशिया में मुस्लिम शक्ति को कमजोर करने की भारतीय साजिश के रूप में देखते हैं.
भारत विरोधी भावना की गहरी हैं जड़ें
भारत विरोधी भावना की जड़ें गहरी हैं. पूर्वी पाकिस्तान में कुछ चैंबर और वर्ग जो पाकिस्तान और अयूब खान के प्रति सहानुभूति रखते थे. वे आजादी के बाद भी प्रभावशाली बने रहे. उनके वंशज, जिनमें जमात-ए-इस्लामी भी शामिल है, पक्के तौर पर पाकिस्तान समर्थक और भारत विरोधी हैं. ऐतिहासिक रूप से उनके पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई का विरोध किया और आजादी समर्थक छात्रों, बुद्धिजीवियों और हिंदू समुदायों के खिलाफ अत्याचार किए. लंबे समय से चली आ रही शिकायत को जियाउर रहमान द्वारा जमात पर से प्रतिबंध हटाने के बाद फिर से सामने आई और यह आज भी BNP के लिए सिरदर्द बनी हुई है.
आजादी के शुरुआती साल में भी भारत विरोधी भावना सामने आई थी. पहला बड़ा मुद्दा 1976 में आया, जब गंगा नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए, जो ऊपरी पड़ोसी के रूप में भारत के प्रभुत्व के बारे में चिंताओं को दर्शाता है. सैन्य शासक जियाउर रहमान के तहत, ‘बांग्लादेशी राष्ट्रवाद’ को बढ़ावा देने का मकसद देश को भारत की सांस्कृतिक परिधि से अलग करना था, जो दिल्ली के प्रभाव को कम करने का एक राज्य-स्तरीय प्रयास था.
भूगोल ने इस असहज निर्भरता को और मजबूत किया है. दोनों देश 4,000 किलोमीटर से अधिक की सीमा, गहरे जुड़े बाजार और व्यापक लोगों के बीच संबंध साझा करते हैं. 2021-22 में द्विपक्षीय व्यापार 15 अरब डॉलर से अधिक हो गया, जो दिखाता है कि उनकी अर्थव्यवस्थाएं कितनी करीब से जुड़ी हुई हैं.
पानी एक खास तौर पर संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है. भारत और बांग्लादेश 54 नदियां साझा करते हैं, जिनमें से लगभग सभी बंगाल की खाड़ी में पहुंचने से पहले भारत से बांग्लादेश में बहती हैं. जबकि गंगा के लिए एक संधि है, लेकिन अन्य नदियों के लिए कोई समझौता नहीं है. यह एक लंबे समय से चली आ रही शिकायत है जो जनता के गुस्से को हवा देती रहती है.
भारत-बांग्लादेश के लिए आगे क्या?
बांग्लादेश के नजरिए से समाधान आसान लगता है और वह है कि शेख हसीना को वापस भेज दो. लेकिन भारत के ऐसा करने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि वह अपने पुराने सहयोगियों के प्रति वफादारी को बहुत अहमियत देता है. समय भी मायने रखता है. बांग्लादेश में अगले साल फरवरी में चुनाव होने की उम्मीद है और भारत अपने सहयोगी, अवामी लीग की वापसी चाहेगा, जिसका संकेत तब मिला जब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि नई दिल्ली ‘स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी’ चुनावों का समर्थन करता है.
हसीना को भी यही उम्मीद है. उन्होंने कहा, ‘भारत दशकों से बांग्लादेश का सबसे पक्का दोस्त और साझेदार रहा है. हमारे देशों के बीच संबंध गहरे और बुनियादी हैं. वे किसी भी अस्थायी सरकार से ज्यादा समय तक चलेंगे. मुझे विश्वास है कि एक बार जब वैध शासन बहाल हो जाएगा, तो बांग्लादेश उस समझदारी भरी साझेदारी पर लौट आएगा जिसे हमने 15 साल में बनाया है.’ लेकिन फिलहाल का सच है को यही है कि दोनों मुल्कों के बीच राजनीतिक दरार अब खाई में तब्दील होने की तरफ बढ़ती हुई नजर आ रही है. क्या गहरी होती राजनीतिक दरार भरोसे और साथ के जरिए भर पाएगी. यह फिलहाल अनिश्चित लग रहा है.