एयरप्लेन में कितने देर के लिए होती है ऑक्सीजन, हर पैसेंजर के खाते में इतने मिनट

अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि जब फ्लाइट इतनी ऊंचाई पर उड़ती है, जहां वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, तो हम उस स्थिति में सामान्य रूप से सांस कैसे ले पाते हैं? तो आइए जानते हैं, इसके पीछे की वजह क्या है और कैसे इतनी ऊंचाई पर भी हमें पर्याप्त ऑक्सीजन मिल पाती है.

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How Long Do You Get Oxygen In A Flight: हजारों फीट ऊपर आसमान में उड़ती फ्लाइट में जब हम खिड़की से झांकते हैं, तो नीचे सिर्फ बादल और नीला आसमान नजर आता है, न कोई पेड़-पौधे, न जमीन और न ही सांस लेने लायक पर्याप्त ऑक्सीजन. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब हमारी फ्लाइट हाई एटिट्यूड पर होती है, तो उस वक्त भी हम कैसे सामान्यतौर पर भी सांस ले रहे होते हैं, न कोई तकलीफ, न कोई घुटन. ऐसा कैसे मुमकिन है? इतनी ऊंचाई पर, जहां ऑक्सीजन का नामो-निशान नहीं होता, वहां हमारी सांसें कैसे चलती हैं? और अगर किसी कारण फ्लाइट में ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाए, तो हमारे पास कितने मिनट का वक्त होता है? हर पैसेंजर को कितनी देर के लिए ऑक्सीजन मिलती है? आइए जानते हैं इसके पीछे की साइंस के बारे में.

ऊंचाई बढ़ी, ऑक्सीजन घटी

सामान्यत: जमीन पर हवा में ऑक्सीजन का स्तर करीब 21 फीसदी होता है, लेकिन 30,000–40,000 फीट की ऊंचाई पर यह इतनी कम हो जाती है कि बिना सहायता के सांस लेना नामुमकिन है. यहां तक कि एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पर्वतारोही भी ऑक्सीजन सिलेंडर का इस्तेमाल करते हैं. फिर विमानों में यह व्यवस्था कैसे काम करती है?

अचानक प्रेशर गिरे तो क्या होगा?

दरअसल, विमान के केबिन को एक सीलबंद कंटेनर की तरह डिजाइन किया जाता है. जैसे-जैसे विमान ऊपर जाता है, इसके अंदर का दबाव और ऑक्सीजन लेवल कंट्रोल में रखा जाता है. यह सिस्टम लगभग 6,000–8,000 फीट की ऊंचाई तक सामान्य वातावरण बनाए रखता है, जहां यात्री आराम से सांस ले सकते हैं. लेकिन कभी-कभी तकनीकी वजहों से केबिन का प्रेशर गिर सकता है. ऐसे में, फ्लाइट के ऊपर लगे ऑक्सीजन मास्क अचानक गिरते हैं. खास बात ये है कि फ्लाइट में हर सीट के ऊपर लगे ऑक्सीजन मास्क में ऑक्सीजन के लिए कोई सिलेंडर नहीं लगा होता है, बल्कि मास्क के पीछे एक खास केमिकल पैक होता है. मास्क खींचते ही एक केमिकल रिएक्शन शुरू होता है और उससे ऑक्सीजन बनती है.

कितनी देर तक मिलती है ऑक्सीजन?

विमानों में प्रत्येक यात्री के लिए 12–15 मिनट तक ऊपर लगे मास्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए व्यवस्था होती है, जो केबिन में दबाव कम होने की स्थिति में काम आती है. इतने समय में पायलट फ्लाइट को नीचे लाकर फिर से सामान्य वातावरण में पहुंचा देता है. हाई एल्टिट्यूड पर इस ऑक्सीजन की आपूर्ति की टाइमिंग अधिकतम 20 से 22 मिनट तक होती है. इतने समय के अंदर पायलट को फ्लाइट को ऑक्सीजन जोन में लाना होता है.

ऑक्सीजन न मिलने पर हाइपोक्सिया का खतरा

बिना ऑक्सीजन के करीब 30,000 फीट पर 5 से 10 सेकंड में ही चक्कर आने लगते हैं. 2 से 3 मिनट में व्यक्ति बेहोश हो सकता है. यह स्थिति हाइपोक्सिया कहलाती है, जिसमें दिमाग और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है.

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