जगदीप धनखड़: किसान पुत्र से उपराष्ट्रपति तक के सफर में साहस और संघर्ष बने हमसफर…

जगदीप धनखड़ देश के पहले उपराष्ट्रपति हैं, जिन्होंने बिना किसी चुनावी कारण के अपने पद से इस्तीफा दिया है. एक साधारण किसान परिवार से भारत के शीर्ष संवैधानिक पद तक पहुंचने का उनका सफर साहस और संघर्ष की गाथाओं से भरा है. जानते हैं उनके इस सफर के अब तक के पड़ावों के बारे में...

जगदीप धनखड़ Image Credit: https://vicepresidentofindia.nic.in

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई, 2025 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(क) के तहत इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे एक पत्र में उन्होंने कहा कि वे तत्काल प्रभाव से डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक अपनी सेहत को ध्यान में रखते हुए पद छोड़ रहे हैं. मौजूदा दौर के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक धनखड़ का इस्तीफा पक्ष-विपक्ष दोनों के लिए चौंकाने वाला है. बहरहाल, इस इस्तीफे को उनके एक लंबे और विविधता भरे सार्वजनिक जीवन का प्रतीकात्मक पूर्णविराम माना जा रहा है.

रेत के धोरों से राजपथ तक

18 मई, 1951 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के किठाना गांव में जन्मे जगदीप धनखड़ खुद को हमेशा “किसान पुत्र” कहते रहे हैं. उनकी शुरुआती पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने विज्ञान में स्नातक की डिग्री और फिर राजस्थान विश्वविद्यालय से LLB की पढ़ाई पूरी की. कानून की पढ़ाई के बाद 1979 में उन्होंने वकालत शुरू की और जल्द ही राजस्थान हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में एक प्रतिष्ठित वकील के रूप में स्थापित हो गए. उन्होंने कई अहम संवैधानिक और अंतरराज्यीय मामलों में पैरवी की.

न्यायपालिका से विधायिका की ओर

धनखड़ ने राजनीति में पहला कदम 1989 में रखा. वे जनता दल के टिकट पर झुंझुनूं से लोकसभा सांसद चुने गए. 1990 में उन्हें केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद वे कुछ समय के लिए कांग्रेस में भी रहे और अंततः 2003 में भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए. अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर काम किया. इस दौरान उन्होंने केंद्र और राज्य में अलग-अलग भूमिकाएं निभाईं.

संघर्षशील गवर्नर रहे

2019 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया. राज्यपाल के तौर पर उनका कार्यकाल लगातार सुर्खियों में रहा. विशेष रूप से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनके मतभेद और टकरावों की वजह से वे अक्सर चर्चा में रहते थे. वे लगातार राज्य सरकार की कार्यप्रणाली, विधायी प्रक्रियाओं और प्रशासनिक पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाते रहे. इसके अलावा, सोशल मीडिया और प्रेस के जरिये भी वे अपनी राय व्यक्त करते रहे. वहीं, राज्य सरकार की ओर से धनखड़ पर तटस्थता के बजाय राजनीतिक झुकाव रखने का आरोप लगाया जाता रहा.

कड़क राज्यसभा अध्यक्ष

2022 में भाजपा ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया और उन्होंने 528 वोटों के बहुमत से शानदार जीत हासिल की. उपराष्ट्रपति के रूप में वे राज्यसभा के सभापति भी बने. इस भूमिका में कई बार विपक्षी सांसदों से उनकी तीखी नोंक-झोंक भी हुई. इसके अलावा, उन्होंने कई सांसदों को सत्र से निलंबित भी किया. 2023 और 2024 में संसद के कई सत्रों के दौरान उन्होंने विपक्ष के हंगामों पर सख्ती से प्रतिक्रिया दी. 2024 में विपक्ष ने उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश भी की. विपक्ष ने उनकी कार्यशैली को “एक्टिविस्ट चेयरमैन” की संज्ञा दी.

न्यायपालिका बनाम विधायिका

धनखड़ ने कई बार न्यायपालिका के फैसलों की मुखरता से आलोचना की, जिसे लेकर उन्हें तमाम दलों से मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिलीं. उनका कहना था कि सर्वोच्च न्यायालय के कुछ फैसले संसद की संप्रभुता को चुनौती देते हैं, जिसे वे स्वीकार नहीं कर सकते. उन्होंने कई बार “लोकतंत्र बनाम न्यायपालिका” की बहस को तेज किया. हालांकि, उनके समर्थकों का मानना है कि वे हमेशा संविधान की रक्षा और लोकतांत्रिक संस्थाओं के अधिकारों के मुखर पक्षधर रहे हैं. उन्होंने बार-बार भारतीय संस्कृति, भाषा और संविधान की मूल भावना पर जोर दिया.

बेबाकी के लिए रहेंगे याद

जगदीप धनखड़ का पूरा सार्वजनिक जीवन सिद्धांतों की स्पष्टता, न्यायिक ज्ञान और राजनीतिक मुखरता से परिपूर्ण रहा है. वे कभी पारंपरिक नेता नहीं रहे, बल्कि संविधान और विधायी प्रक्रियाओं के सक्रिय व्याख्याता रहे. यही कारण है कि उनका उपराष्ट्रपति कार्यकाल एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा, जो पद की गरिमा को बनाए रखते हुए बेबाकी से अपनी बात कहता था. उनका इस्तीफा निश्चित रूप से भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक खाली स्थान छोड़ गया है. अब निगाहें इस पर होंगी कि नया उपराष्ट्रपति कौन होगा और क्या वह धनखड़ की शैली को अपनाएगा या नए नजरिये के साथ काम करेगा.