क्यों होता है टॉयलेट में धमाका, ये गलती पड़ती है भारी; ऐसे रहें सेफ
टॉयलेट में धमाका मीथेन गैस की वजह से होता है. यह गैस सीवर सिस्टम और सेप्टिक टैंक में बनती है. जब गंदे पानी में मौजूद जैविक पदार्थ (जैसे मल-मूत्र) सड़ते हैं, तो बैक्टीरिया इसे डिस्पोज करते हैं. इस प्रक्रिया में मीथेन गैस बनती है. ऐसा ही हादसा नोएडा में हुआ, जहां टॉयलेट में जमा गैस ने विस्फोट कर दिया. ऐसे में आइए विस्तार से जानते है कि आखिर ऐसा क्यों होता है.
Toilet Blast: हाल ही में ग्रेटर नोएडा के सेक्टर-36 में एक घर के टॉयलेट में धमाका हुआ. इस हादसे में 16 साल का एक लड़का गंभीर रूप से झुलस गया. वह टॉयलेट का दरवाजा खोलते ही हादसे का शिकार हो गया. यह धमाका सीवर में जमा मीथेन गैस की वजह से हुआ. लड़के को तुरंत जेम्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी हालत अब स्थिर है. लोगों का कहना है कि इलाके का सीवर सिस्टम खराब है. सीवर में वेंट पाइप न होने की वजह से गैस जमा होती है, इससे ऐसे हादसे हो रहे हैं.
टॉयलेट में क्यों होता है धमाका?
टॉयलेट में धमाका मीथेन गैस की वजह से होता है. यह गैस सीवर सिस्टम और सेप्टिक टैंक में बनती है. जब गंदे पानी में मौजूद जैविक पदार्थ (जैसे मल-मूत्र) सड़ते हैं, तो बैक्टीरिया इसे डिस्पोज करते हैं. इस प्रक्रिया में मीथेन गैस बनती है. यह गैस ज्वलनशील होती है, यानी यह आसानी से आग पकड़ सकती है. अगर सीवर सिस्टम में वेंट पाइप नहीं होता, तो यह गैस बाहर नहीं निकल पाती और टॉयलेट या सीवर में जमा हो जाती है.
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धमाका कैसे होता है?
जब मीथेन गैस की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तो किसी छोटी-सी चिंगारी से भी धमाका हो सकता है. यह चिंगारी बिजली के तारों में खराबी, सिगरेट की आग, या किसी अन्य स्रोत से आ सकती है. जैसे ही गैस आग के संपर्क में आती है, वह तेजी से जलती है और दबाव बढ़ने से धमाका हो जाता है. ऐसा ही हादसा नोएडा में हुआ, जहां टॉयलेट में जमा गैस ने विस्फोट कर दिया.
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इन बातों का रखें ध्यान
ऐसे हादसों से बचने के लिए सीवर सिस्टम को ठीक रखना जरूरी है. वेंट पाइप लगवाएं, ताकि गैस बाहर निकल सके. समय-समय पर सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करवाएं. बिजली के तारों की जांच करें और टॉयलेट में सिगरेट या माचिस जैसी चीजों का इस्तेमाल न करें. अगर सीवर से बदबू आ रही हो, तो तुरंत प्रशासन को सूचित करें. यह हादसा हमें सिखाता है कि छोटी-सी लापरवाही बड़ा खतरा बन सकती है.
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