FD या बॉन्ड्स, 10 लाख पर 5 साल बाद कहां मिलेगा सबसे अधिक रिटर्न; जानें- किसमें सुरक्षित रहेगा आपका पैसा
भारतीयों में फिक्स्ड डिपॉजिट लंबे समय से सबसे भरोसेमंद बचत का जरिया रहा है. बैंक में पैसा जमा करो, तय ब्याज पाओ और समय पूरा होने पर रकम निकाल लो. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. सुरक्षित होने के बावजूद FD आज कम रिटर्न देने वाला ऑप्शन बन गया है. ऐसे में बॉन्ड्स, जो पहले कम चर्चा में रहते थे, अब बेहतर और स्मार्ट ऑप्शन बनकर सामने आ रहे हैं. चलिए जानते हैं कैसे.
FD vs Bonds: भारतीय मध्यमवर्ग के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) लंबे समय से सबसे भरोसेमंद बचत का जरिया रहा है. बैंक में पैसा जमा करो, तय ब्याज पाओ और समय पूरा होने पर रकम निकाल लो. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. सुरक्षित होने के बावजूद FD आज कम रिटर्न देने वाला ऑप्शन बन गया है. ऐसे में बॉन्ड्स, जो पहले कम चर्चा में रहते थे, अब बेहतर और स्मार्ट ऑप्शन बनकर सामने आ रहे हैं. यही वजह है कि जो लोग कभी FD को निवेश का सबसे सही तरीका मानते थे, अब उनका झुकाव बॉन्ड्स की तरफ बढ़ रहा है.
क्यों फीके पड़ रहे हैं FD
भारतीयों के लिए FD हमेशा से पसंदीदा इन्वेस्टमेंट रहा है. यह कम जोखिम के साथ स्थिर रिटर्न देता है. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. उदाहरण के लिए, एसबीआई बैंक इस समय 2 साल से कम अवधि की FD पर 6.75 फीसदी का ब्याज दे रहा है. महंगाई अक्सर इस रिटर्न के बराबर या उससे ज्यादा होती है. इसका मतलब यह है कि FD में रखा पैसा असल में अपनी परचेजिंग पावर खो देता है. इसलिए अब FD लंबे समय तक बचत बढ़ाने का बेहतर तरीका नहीं है.
बॉन्ड बन रहे हैं भरोसेमंद विकल्प
बॉन्ड का मतलब है कि कोई व्यक्ति, सरकार या कंपनी किसी को एक निश्चित समय के लिए पैसे उधार देता है. बदले में उधार लेने वाला तय ब्याज दर पर ब्याज चुकाने और समय पूरा होने पर मूलधन लौटाने का वादा करता है. बॉन्ड एक फिक्स्ड इनकम वाला निवेश होता है, जो शेयर मार्केट से अलग है. जब आप बॉन्ड खरीदते हैं तो असल में किसी संस्था को पैसा उधार दे रहे होते हैं और वह संस्था आपको नियमित ब्याज के साथ मूल रकम लौटाती है. सरकार और AAA रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड्स बहुत सुरक्षित माने जाते हैं.
कितना मिलता है रिटर्न?
कई लोग सोचते हैं कि बॉन्ड FD से ज्यादा जोखिम भरे होते हैं. लेकिन ऐसा हमेशा नहीं है. सरकारी बॉन्ड और AAA रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड सुरक्षित माने जाते हैं और अक्सर FD से ज्यादा रिटर्न देते हैं. जिन निवेशकों में थोड़ी ज्यादा रिस्क लेने की क्षमता होती है, उनके लिए AAA से लेकर BBB- रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड भी अच्छे विकल्प हैं. ये 7 फीसदी से 14 फीसदी तक का सालाना रिटर्न दे सकते हैं. खास बात यह है कि बॉन्ड मार्केट को SEBI रेगुलेट करता है, जिससे पारदर्शिता बनी रहती है. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर बॉन्ड्स को NSE और BSE पर बेच भी सकते हैं, यानी FD की तरह पैसा लंबे समय तक फंसा नहीं रहता.
FD बनाम बॉन्ड्स: रिटर्न का फर्क
मान लीजिए आपने SBI बैंक में 10 लाख रुपये की FD पांच साल के लिए कराई है. एसबीआई की वेबसाइट के मुताबिक 6.05 फीसदी ब्याज दर पर पांच साल बाद यह रकम करीब 13.40 लाख रुपये हो जाएगी. वहीं अगर यही रकम किसी कॉरपोरेट बॉन्ड पोर्टफोलियो में लगाई जाए जो औसतन 10 फीसदी का सालाना रिटर्न देता है, तो 5 साल बाद रकम लगभग 16.38 लाख रुपये हो जाएगी. यानी बिना ज्यादा जोखिम उठाए करीब 3 लाख रुपये का अतिरिक्त फायदा.
क्यों बॉन्ड्स हैं नए FD
महंगाई और शेयर बाजार की अनिश्चितता के बीच बॉन्ड्स संतुलित ऑप्शन बनकर उभर रहे हैं. अब SEBI-रजिस्टर्ड ऑनलाइन बॉन्ड प्लेटफॉर्म जैसे Jiraaf की वजह से निवेश और भी आसान हो गया है. छोटे निवेशक भी आसानी से बॉन्ड्स में पैसा लगा सकते हैं. बस बॉन्ड की क्रेडिट रेटिंग और अवधि को समझना जरूरी है.
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