अगर लोन के बदले जबरन बीमा पॉलिसी दे रहा बैंक तो जान लें 12 साल पुरानी कहानी, अपने ही बैंक के खिलाफ कोर्ट गये थे अफसर

“नो पॉलिसी, नो लोन” प्रैक्टिस में बैंक ग्राहकों को लोन देने से पहले बीमा पॉलिसी खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं. Punjab & Sind Bank केस में अधिकारियों ने इस अनैतिक बिक्री को उजागर किया. अगर आपके साथ ऐसा हो तो करें ये काम.

नो पॉलिसी, नो लोन Image Credit: canva

अगर आप किसी बैंक या NBFC से कोई लोन लेना चाहते हैं और बैंक या फाइनेंस कंपनी के अफसर या एजेंट आपको जबरन कोई बीमा पॉलिसी बेचने की कोशिश कर रहे हैं तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. लोन के बदले बीमा पॉलिसी खरीदने जैसा कोई नियम नहीं है. साल 2013 में Punjab & Sind Bank का ऑल इंडिया पंजाब एंड सिंध बैंक ऑफिसर्स यूनियन जबरन बीमा पॉलिसी बेचने के लिए मजबूर किए जाने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया था. आइये पूरा किस्सा जानते हैं और यह भी समझते हैं कि इससे कैसे बचा जा सकता है.

जब अपने बैंक के खिलाफ कोर्ट गये अफसर

moneylife.com के मुताबिक, 2013 में, All India Punjab & Sind Bank Officers Union ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की. पिटीशन में बताया गया कि लोन के साथ इंश्योरेंस पॉलिसी बिना ग्राहकों की सहमति से उन्हें बांधी जा रही थी. उन्होंने कहा कि अधिकारियों पर बिक्री लक्ष्य पूरा करने का दबाव था, जिससे उनका फिड्यूशियरी रोल प्रभावित हुआ. इस पर मिलने वाला इंसेंटिव बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, IRDAI नियम और RBI सर्कुलर का उल्लंघन कर रहे थे.

पिटीशन में केवल आरोप नहीं लगाए गए, बल्कि सबूत भी पेश किए गए. यूनियन ने आंतरिक मेमो, इंसेंटिव रिकॉर्ड और ग्राहकों की शिकायतें भी दाखिल की. यह दिखाया गया कि Aviva (बीमा कंपनी) और बैंक का एग्रीमेंट एक ऐसी संरचना बना रहा था जहां बिक्री का दबाव सेवा नैतिकता पर भारी पड़ रहा था.

क्या एक्शन हुआ

RBI ने कोर्ट को बताया कि बैंक के कर्मचारियों को नियमों के उल्लंघन में कमीशन और विदेश की यात्रा मुहैया कराई गई.

बैंक और Aviva का एग्रीमेंट समाप्त हो गया. यूनियन ने 2005–2012 के बीच 25 करोड़ रुपए के इंसेंटिव की रिकवरी मांगी. बैंक बोर्ड ने Resolution पारित किया लेकिन कोर्ट ने रिकॉर्ड नहीं किया कि रिकवरी हुई या नहीं.

अगर आपके साथ ऐसे हो कहां करें शिकायत

इरडा ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे ग्राहकों को कोई भी बीमा उत्पाद जबरदस्ती न बेचें. अगर वे ऐसा करते हैं, तो ग्राहक बैंक, बैंकिंग लोकपाल और बीमा नियामक को भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.