मुस्लिम महिला अगर गैर-मुस्लिम से करती है शादी तो क्या मिलेगी बाप दादा की जायदाद?
वसीयत के नियमों में कई बातें ध्यान देना जरूरी है क्योंकि मामला संपत्ति का है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, कोई मुस्लिम अपनी पूरी संपत्ति को वसीयत में नहीं डाल सकता. इसको लेकर नियम है. संपत्ति का एक तिहाई हिस्से को ही वसीयत में शामिल किया जा सकता है बाकी को नहीं.

Rules for Will in India: वसीयत को लेकर कई लोगों में कंप्यूजन रहता है लेकिन जहां ऐसे नियम कायदे ना समझ आ रहे हो तो उन्हें समझना जरूरी हो जाता है. वसीयत को लेकर एक सावल भी मन में आ सकता है कि अगर कोई मुस्लिम महिला किसी गैर-मुस्लिम से शादी करती है और दोनों अपनी-अपनी धार्मिक पहचान भी शादी के बाद बनाए रखते हैं तो वसीयत (will) से जुड़े नियम क्या होंगे? संपत्ति पर हक होगा नहीं होगा. चलिए समझते हैं.
क्या कहता है नियम?
भारत में मुस्लिमों के लिए वसीयत और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में उनके अपने पर्सनल कानून लागू होते हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, कोई भी मुसलमान अपनी पूरी संपत्ति की वसीयत नहीं कर सकता. वह सिर्फ एक-तिहाई हिस्सा ही वसीयत के जरिए किसी को दे सकता है. बाकी दो-तिहाई हिस्सा मुस्लिम उत्तराधिकार नियमों के अनुसार वारिसों में बंटता है.
इसके अलावा, वसीयत के जरिए किसी ऐसे व्यक्ति को हिस्सा नहीं दिया जा सकता जो पहले से कानूनी वारिस हो, क्योंकि उन्हें बचा हुआ दो तिहाई हिस्सा मिलना ही है. हां, अगर वसीयत करने वाले की मृत्यु के बाद उसके वारिस सहमति दें, तो 1/3 से ज्यादा हिस्सा भी वसीयत में किसी को दिया जा सकता है.
ये नियम पुरुषों और महिलाओं दोनों पर बराबर लागू होते हैं. अगर आप सुन्नी हैं, तो यह नियम आपके लिए हैं. शिया मुस्लिमों के लिए भी नियम लगभग यही हैं, बस कुछ छोटे अंतर होते हैं, जैसे कि वारिस की सहमति कब दी जाए.
क्या मुस्लिम महिला को मिल सकती है अपने बाप-दादा की संपत्ति?
जवाब है हां. एक मुस्लिम अपनी एक तिहाई संपत्ति इस दुनिया में किसी को भी दे सकता है. तो अगर उस मुस्लिम महिला के पिता उसका नाम अपनी वसीयत में डालते हैं तो उसे संपत्ति का अधिकार रहेगा.
अगर वो महिला अपना कानूनन धर्म परिवर्तन करा ले तो और उसके पिता की वसीयत में उसका नाम हो तो भी उसका संपत्ति पर अधिकार रहेगा. फिर भले ही वो गैर मुस्लिम हो,
अब अगर गैर मुस्लिम से शादी हो तो क्या है नियम?
मुस्लिम महिला की गैर मुस्लिम से शादी हो जाए तो उसके बाद उसे अपनी वसीयत बनाने का अधिकार है?
अगर मुस्लिम महिला की शादी किसी गैर-मुस्लिम पुरुष से हुई है और वह शादी स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत रजिस्टर्ड की गई है यानी इस्लामिक तरीके से नहीं, बल्कि कानूनन तरीके से, तो फिर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू नहीं होता.
इस स्थिति में वसीयत और उत्तराधिकार से जुड़े नियम इंडियन सक्सेशन एक्ट, 1925 के तहत आते हैं.
इसका मतलब यह है कि ऐसी महिला अपनी पूरी संपत्ति की वसीयत कर सकती है, जैसे किसी हिंदू या ईसाई या पारसी नागरिक को अधिकार होता है. उसे अपने वारिसों की सहमति लेने की जरूरत नहीं होती और उसका गैर-मुस्लिम पति भी अपने पूरे संपत्ति की वसीयत कर सकता है. शादी से उसके अधिकारों में कोई बदलाव नहीं होता.
यह भी पढ़ें: शादी के बाद वसीयत हो जाती है कैंसल? हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबके लिए अलग-अलग नियम
उत्तराखंड और गोवा अपवाद
लेकिन ध्यान रखें, कुछ राज्यों जैसे उत्तराखंड और गोवा में उत्तराधिकार के लिए अलग कानून हो सकते हैं. अगर आप ऐसे किसी राज्य में रहते हैं, तो आपको स्थानीय नियम अलग होते हैं.
इसलिए सही सलाह यही है कि आप एक अनुभवी वकील की मदद से ही वसीयत तैयार करवाएं, ताकि वो कानूनी रूप से मजबूत और आपकी परिस्थितियों के अनुसार बनी हो.
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