जिस दिन आता है बिहार का रिजल्ट, कैसी रहती है शेयर बाजार की चाल; पिछले 3 चुनावों के रिकॉर्ड करते हैं सरप्राइज
बिहार चुनाव नतीजों से शेयर बाजार में हलचल की आशंका बढ़ गई है. एग्जिट पोल में एनडीए की जीत के संकेत से बाजार में तेजी दिखी थी, लेकिन आज, 14 नवंबर के नतीजे तस्वीर बदल सकते हैं. पिछले तीन चुनाव बताते हैं कि राज्य चुनावों का असर शॉर्ट टर्म रहता है. 2015 में नतीजों से बाजार गिरा था, जबकि 2010 और 2020 में खास प्रभाव नहीं दिखा.
Share Market Election Impact: बिहार विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल आने के बाद शेयर बाजार में जबरदस्त तेजी दिखी थी, लेकिन असली परीक्षा 14 नवंबर को नतीजे आने के बाद होगी. निवेशकों के मन में अब यह सवाल है कि अगर नतीजे उम्मीद से अलग आते हैं, तो क्या शेयर बाजार में उतार चढ़ाव देखा जाएगा. पिछले तीन बिहार चुनावों का इतिहास बताता है कि राज्य चुनावों का असर सीमित और शार्ट टर्म के लिए होता है. फिर भी राजनीतिक अनिश्चितता बाजार में अस्थिरता ला सकती है. इसी सवाल का जवाब समझने के लिए पिछले चुनावों के आंकड़े मदद करते हैं.
2010 के चुनाव का नहीं हुआ असर
2010 में एनडीए ने नीतीश कुमार की अगुआई में बड़ी जीत दर्ज की थी. इसके बावजूद शेयर बाजार पर इसका खास असर नहीं देखा गया. उस समय निवेशकों का ध्यान ग्लोबल मंदी से रिकवरी और दिल्ली की आर्थिक नीतियों पर था. सेंसेक्स ने मामूली बढ़त दिखाई, लेकिन राज्य चुनाव बाजार की दिशा तय नहीं कर पाए. फोकस राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय इकोनॉमी पर ही रहा.
2015 के चुनाव ने बाजार को हिलाया
2015 में महागठबंधन ने एनडीए को हराया और इसका सीधा असर अगले दिन बाजार में दिखा. सेंसेक्स 391 अंक यानी करीब 1.5 प्रतिशत गिरा. निवेशकों में डर था कि सुधारों की रफ्तार धीमी पड़ सकती है. हालांकि यह गिरावट कुछ दिनों की थी और बाजार ने जल्द ही रिकवरी की. यह उदाहरण बताता है कि नतीजे उम्मीद के उलट हों तो बाजार में शॉर्ट टर्म दबाव बनता है.
2020 में क्या था माहौल
2020 के बिहार चुनाव कोविड महामारी के दौर में हुए. एनडीए की जीत तो हुई लेकिन बाजार की नजरें अमेरिका के चुनाव, वैक्सीन अपडेट और आर्थिक रिकवरी पर थीं. इसी वजह से बिहार चुनाव का प्रभाव लगभग न के बराबर रहा. सेंसेक्स और निफ्टी दोनों सपाट बने रहे और निवेशकों का फोकस कंपनियों के नतीजों पर था.
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राज्य चुनावों का सीमित असर
राज्य चुनाव तब तक बाजार को ज्यादा प्रभावित नहीं करते जब तक उनका असर केंद्र की नीतियों या राजनीतिक स्थिरता पर नहीं पड़ता. आम तौर पर निवेशक राष्ट्रीय नीतियों, सुधारों और ग्लोबल संकेतों को ज्यादा महत्व देते हैं. इसलिए राज्य स्तर के बदलाव शॉर्ट टर्म हलचल पैदा करते हैं लेकिन लंबी अवधि की दिशा नहीं बदलते.
क्यों बढ़ जाती है बाजार की बेचैनी
लोकसभा चुनाव बाजार के लिए ज्यादा अहम होते हैं. इसका कारण केंद्र की नीतियों, स्थिरता और सुधारों पर सीधा असर है. 2024 के आम चुनाव इसका ताजा उदाहरण हैं जब BJP को बहुमत न मिलने पर बाजार में चार साल की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई. अनिश्चितता का माहौल बाजार को हमेशा डरा देता है.
14 नवंबर पर टिकी निगाहें
अब सभी की नजरें 14 नवंबर के नतीजों पर होंगी. अगर नतीजे एग्जिट पोल से मेल खाते हैं तो बाजार सामान्य रह सकता है. लेकिन अगर नतीजे उम्मीद से हटकर होते हैं तो निवेशकों की प्रतिक्रिया तेज हो सकती है. पिछले आंकड़े बताते हैं कि राज्य चुनावों का असर सीमित रहता है, लेकिन अनिश्चितता बाजार में तात्कालिक हलचल जरूर ला सकती है.