सरकारी कंपनियों का बाजार से बाहर निकलना हुआ आसान, सेबी ने बदले डीलिस्टिंग नियम
सेबी ने सरकारी कंपनियों के डिलिस्टिंग नियम आसान किए हैं. अब 90% या उससे ज्यादा सरकारी हिस्सेदारी वाली PSUs बिना दो-तिहाई मंजूरी के डिलिस्ट हो सकती हैं. इसके साथ ही नए नियमों के तहत कंपनियों के बोर्ड को फ्लोर प्राइस तय करने में छूट दी गई है.
सरकारी कंपनियों का शेयर बाजार से बाहर निकलना अब आसान हो गया है. बाजार नियामक सेबी ने उन सरकारी कंपनियों के लिए डिलिस्टिंग के नियमों में बदलाव किया है, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90% या इससे अधिक है. सेबी के इस फैसले का मकसद सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs) को बाजार से बाहर निकलने की प्रक्रिया को सरल और तेज बनाना है.
दो-तिहाई मंजूरी की शर्त हटाई गई
अब डिलिस्टिंग के लिए पहले जैसी दो-तिहाई सार्वजनिक शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. इससे कंपनियों के लिए जरूरत पड़ने पर डिलिस्टिंग करना आसानी होगा। इसके अलावा फ्लोर प्राइस तय करने में भी छूट दी गई है. डिलिस्टिंग अब तय कीमत पर की जा सकती है, जो कि फ्लोर प्राइस से कम से कम 15% अधिक होगी, चाहे उस शेयर की ट्रेडिंग कितनी भी हो.
किन कंपनियों को मिलेगा फायदा?
सेबी ने इस संबंध में जारी नोटिफिकेशन में कहा है कि यह नियम उन सरकारी कंपनियों पर लागू होगा, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90% या इससे अधिक है. हालांकि इसमें बैंक, एनबीएफसी और इंश्योरेंस सेक्टर की कंपनियां शामिल नहीं होंगी. इन अहम सेक्टर की कंपनियों को मौजूदा नियमों का ही पालन करना होगा. यह नियम मोटे तौर पर ऐसी कंपनियों के लिए है, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा है. इसके अलावा जिन कंपनियों के कामकाज का आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर सीधे तौर पर खास असर नहीं है.
फ्लोर प्राइस के लिए तीन विकल्प
नए नियमों के तहत सेबी ने डिलिस्टिंग के लिए न्यूनतम कीमत यानी फ्लोर प्राइस तय करने के लिए तीन विकल्प दिए हैं. इनमें से सबसे अधिक कीमत को चुना जाएगा. इन तीन विकल्पों मे पहला विकल्प 52 वीक वॉल्यूम वेटेड एवरेज प्राइस का है. दूसरा, पिछले 26 वीक में शेयर का हाई या फिर तीसरा विकल्प दो इंडिपेंडेंट वैल्यूएशन एनालिस्ट्स की तरफ से तय की गई कीमत. सेबी का मानना है कि इससे डिलिस्टिंग की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रहेगी.
पुरानी व्यवस्था से क्या फर्क आया
पहले डिलिस्टिंग तभी संभव थी, जब प्रमोटर की हिस्सेदारी 90% तक पहुंचती थी. इसके अलावा फ्लोर प्राइस तय करने में 60 दिनों का औसत भाव और पिछले 26 हफ्तों का उच्चतम भाव शामिल होता था. अब इसमें अधिक लचीलापन दिया गया है, जिससे प्रक्रिया तेज और आसान होगी.
निवेशकों के हितों की होगी सुरक्षा
नई व्यवस्था में डिलिस्टिंग के बाद भी निवेशकों के हितों की रक्षा की व्यवस्था की गई है. यदि डिलिस्टिंग के एक साल के भीतर कुछ शेयरधारकों ने अपने शेयर नहीं बेचे, तो उनका बकाया पैसा स्टॉक एक्सचेंज के एक विशेष खाते में जमा रहेगा. यह राशि 7 साल तक निवेशकों के क्लेम के लिए सुरक्षित रहेगी.