क्या हैं स्टेबलकॉइन, जिसका मार्केट कैप पहुंचा रिकॉर्ड 21 लाख करोड़ के पार, अब अमेरिका बनाएगा कानून

क्रिप्टो करेंसी Stablecoins ने एक नई उपलब्धि हासिल की है, जिसकी कुल वैल्यू यानी मार्केट कैप 251.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जो साल की शुरुआत से अब तक 22 फीसदी की बढ़ोतरी है. क्या है स्टेबलकॉइन जो अपनी कीमत को स्थिर बनाए रखने की कोशिश करती है- यहां जानें.

क्या होता है स्टेबलकॉइन Image Credit: Money9live/Canva

What are Stablecoins: क्रिप्टो करेंसी स्टेबलकॉइन ने बुधवार को एक नई उपलब्धि हासिल की है. क्रिप्टो एक्सचेंज CoinDesk के अनुसार बाजार में इनकी कुल वैल्यू 251.7 बिलियन डॉलर यानी करीब 21 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई. यानी साल की शुरुआत से अब तक इसमें 22 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है. इस तेजी की एक बड़ी वजह अमेरिका की सीनेट द्वारा पारित किया गया नया बिल है. यह कानून क्रिप्टो इंडस्ट्री को औपचारिक रूप से मान्यता देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.

स्टेबलकॉइन आखिर है क्या?

सीधे शब्दों में कहें तो स्टेबलकॉइन वो डिजिटल करेंसी होती है जो अपनी कीमत को स्थिर बनाए रखने की कोशिश करती है. आमतौर पर इनका मूल्य अमेरिकी डॉलर की करेंसी के बराबर रखा जाता है यानी 1 स्टेबलकॉइन 1 डॉलर के बराबर होता है. इससे इनका इस्तेमाल ट्रेडर्स के लिए आसान हो जाता है, जो क्रिप्टो टोकन के बीच पैसे ट्रांसफर करना चाहते हैं. Tether, USD Coin और Dai कुछ स्टेबलकॉइन्स हैं.

इनका मकसद होता है बिटकॉइन जैसी बाकी क्रिप्टोकरेंसी की तेजी से बदलती कीमतों की समस्या से छुटकारा दिलाना, क्योंकि बाकी क्रिप्टो में काफी उतार-चढ़ाव होता है इसीलिए स्टेबलकॉइन को आम लेन-देन और डिजिटल फाइनेंशियल सर्विस में ज्यादा उपयोगी माना जा रहा है. अब तो इनसे शॉपिंग तक की जा सकती है.

स्टेबलकॉइन की वैल्यू स्थिर होती है?

इस क्रिप्टो के नाम में स्टेबल शब्द जरूर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसकी कीमत हमेशा ही स्थिर रहेगी. जब ये स्टेबलकॉइन सेकेंडरी मार्केट में ट्रेड होते हैं, तब इनकी कीमत में हलचल होती है. अगर इन्हें सपोर्ट करने वाला रिजर्व सिस्टम मजबूत नहीं हो, तो अचानक रिडेम्पशन की स्थिति में संकट आ सकता है.

कैसे काम करती है स्टेबलकॉइन

स्टेबलकॉइन का मूल उद्देश्य होता है एक निश्चित वैल्यू से जुड़कर बाजार में बैलेंस बनाए रखना. यह वैल्यू किसी फिएट करेंसी जैसे अमेरिकी डॉलर हो सकती है या सोना जैसी कोई संपत्ति. कुछ मामलों में ये शॉर्ट टर्म सरकारी बॉन्ड्स से भी जुड़े होते हैं. हर महीने इनके रिजर्व की जानकारी सार्वजनिक की जाती है ताकि पारदर्शिता बनी रहे.

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अमेरिकी बिल से क्या बदलेगा?

अगर यह बिल कानून बनता है, तो स्टेबलकॉइन जारी करने वाली कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास हर वो जरूरी चीजें हो जैसे डॉलर और ट्रेजरी बिल्स का बैकअप. इसके अलावा, उन्हें हर महीने अपनी रिजर्व जानकारी सार्वजनिक करनी होगी. यह पारदर्शिता क्रिप्टो को ज्यादा भरोसेमंद बना सकती है.

अगर यह नया कानून लागू हो गया तो स्टेबलकॉइन का मार्केट और भी तेजी से बढ़ेगा. यह ना केवल निवेशकों के लिए अच्छा होगा, बल्कि डिजिटल पेमेंट और लेन-देन को भी नया रूप देगा.