अब बिजली भी WiFi जैसी… तार-प्लग-सॉकेट से आजादी! पंखे, मिक्सी होंगे Air-Powered; होगा वायरलेस का दौर!

Porsche (पोर्शे) अपनी Cayenne EV के लिए वायरलेस चार्जिंग मैट अगले साल लॉन्च करने जा रही है. इसके अलावा फ्रांस के पेरिस के पास 1.5 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई गई है जो चलते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करती है. स्वीडन के गोथेनबर्ग शहर ने टैक्सियों के लिए वायरलेस चार्जिंग स्टेशन का सफल प्रयोग किया और अब उसे स्थायी बना दिया है.

अब बिजली भी WiFi जैसी Image Credit: AI

Wifi Electricity: इवोल्यूशन और इनोवेशन ने दुनिया के उन सभी असंभव कामों को संभव और आसान बना दिया है, जिनसे इंसान अपनी प्रोडक्टिविटी को कई गुना बढ़ा सकता है. कभी हमने सोचा भी नहीं था कि हम मीलों दूर बैठे मोबाइल फोन से बात कर पाएंगे. फिर इंटरनेट आया और दुनिया बिना तारों के चलने लगी. अब वही कहानी बिजली के साथ दोहराई जा रही है. सोचिए… एक ऐसा कमरा जहां कोई तार नहीं, कोई सॉकेट नहीं, फिर भी सब कुछ चल रहा हो- पंखा, लाइट, फोन, गाड़ियां. चौंकिए मत, यह कोई साइंस फिक्शन नहीं, बल्कि अब हकीकत बन चुका है. इसे संभव किया है पोर्शे ने. यह सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि पोर्शे की उस कल्पना और जिद का रिजल्ट है, जो असंभव को संभव बनाने की दिशा में लगातार काम करती है.

अगले साल करने जा रही है लॉन्च

फिलहाल ये तकनीक सिर्फ आपकी EV कार को चार्ज कर सकती है. दरअसल, Porsche (पोर्शे) अपनी Cayenne EV के लिए वायरलेस चार्जिंग मैट अगले साल लॉन्च करने जा रही है. इसके अलावा फ्रांस के पेरिस के पास 1.5 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई गई है जो चलते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करती है. स्वीडन के गोथेनबर्ग शहर ने टैक्सियों के लिए वायरलेस चार्जिंग स्टेशन का सफल प्रयोग किया और अब उसे स्थायी बना दिया है. वायरलेस चार्जिंग कारों और बसों के लिए तो रोमांचक है ही, लेकिन असली जादू तब दिखता है जब पूरा कमरा बिना तारों के चलने लगे. इस तकनीक को कहते हैं वायरलेस पावर ट्रांसफर, यानी बिना तारों के बिजली देना.

यह तकनीक कैसे आगे बढ़ी?

साल 2017 में डिज्नी रिसर्च की टीम ने एक खास कमरा बनाया. दीवारों पर मेटल लगाई, बीच में कॉपर का एक पोल लगाया, और पूरा कमरा एक चुंबकीय क्षेत्र से भर गया. इस कमरे में बल्ब, पंखा और फोन बिना किसी तार के चलने लगे सीधे हवा से बिजली लेकर. साल 2021 में टोक्यो विश्वविद्यालय की एक टीम ने और प्रैक्टिकल रूम बनाया. इसमें धातु की पैनलें और इलेक्ट्रॉनिक हिस्से दीवारों के अंदर छिपाए गए थे. इससे रोजमर्रा के equipment जैसे लैंप और फैन आराम से चलते रहे, और यह कमरा सुरक्षा के सभी नियमों के भीतर था. आज घरों में इसका एक छोटा उदाहरण दिखता है स्मार्ट लॉक, जो दीवार के दूसरी तरफ लगे वायरलेस पावर सिस्टम से लगातार एनर्जी लेते रहते हैं.

बिजली हवा में कैसे चलती है?

वायरलेस बिजली दो तरीकों से होती है-

कम दूरी पर

जैसे मोबाइल की वायरलेस चार्जिंग. एक कॉइल तेजी से बदलता हुआ चुंबकीय क्षेत्र बनाती है, और दूसरी कॉइल उसे पकड़कर बिजली में बदल देती है.
ज्यादा दूरी पर

जब दूरी कुछ सेंटीमीटर से आगे बढ़ जाती है, तो या तो दोनों कॉइल्स को एक ही फ्रिक्वेंसी पर ट्यून किया जाता है और अगर दूरी बहुत ज्यादा हो किलोमीटर तक तो बिजली को माइक्रोवेव या लेजर जैसी तरंगों में बदलकर हवा में भेजा जाता है और रिसीवर इसे फिर बिजली में बदलता है.

हमारे लिए इसका क्या मतलब होगा?

International Energy Agency कहती है कि साल 2030 तक दुनिया में 25 अरब से ज्यादा कनेक्टेड डिवाइस होंगे. इतने उपकरणों को लगातार चार्ज करने के लिए वायरलेस बिजली बहुत काम आएगी. वहीं इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, और इसी वजह से इस तकनीक पर निवेश भी बढ़ रहा है. वायरलेस पावर ट्रांसफर सिर्फ सुविधा नहीं है. यह उन जगहों के लिए भी उपयोगी है जहां तारें खतरा बन सकती हैं. जैसे-

फायदे क्या होंगे?

अभी क्या चुनौतियां हैं?

यह तकनीक अभी भी कुछ अहम चुनौतियों से गुजर रही है. सबसे बड़ी दिक्कत इसकी उंची लागत और जटिल सेटअप है, जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर इस्तेमाल तुरंत आसान नहीं है. दूसरा मुद्दा reduced efficiency है. बिजली का कुछ हिस्सा हवा में ही नष्ट हो जाता है, जिससे ऊर्जा का नुकसान बढ़ता है. इसी कारण हीट भी ज्यादा बनती है, जो पावर लेवल को सीमित कर देती है और अतिरिक्त कूलिंग की जरूरत पैदा करती है. साथ ही, कंपनियों के अलग-अलग स्टैंडर्ड इसे Universal technology बनने से रोकते हैं. सबसे महत्वपूर्ण चुनौती सुरक्षा है. यह सुनिश्चित करना कि EMF, लेजर या RF तरंगें इंसानों, मेडिकल इम्प्लांट्स या sensitive devices को नुकसान न पहुंचाएं.

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