41% रेवेन्यू जंप, 68% CAGR ग्रोथ, ₹20000 करोड़ की ऑर्डर बुक; होले-होले ये कंपनी बनी देश की नौसेना ताकत, क्या आपके पास हैं शेयर?

कोलकाता का Garden Reach Shipbuilders अब वैसा शिपयार्ड नहीं रहा जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता था. यहां एक चुपचाप चल रहा बदलाव भारत की नौसैनिक क्षमता को नई दिशा दे रहा है. पुराने डॉक के पीछे एक ऐसा इंजन बन रहा है, जो आने वाले सालों में देश की रक्षा कहानी बदल सकता है.

Shipbuilding सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है . Image Credit: money9live

कोलकाता के पुराने डॉक क्षेत्र से गुजरने वाले किसी भी शख्स की नजर शायद अब भी बड़े क्रेनों, अधबने जहाजों और स्टील प्लेट्स की आवाजाही पर टिक जाए. बाहरी रूप से सब कुछ वैसा ही दिखता है जैसा दशकों से था. लेकिन इसी पुराने ढांचे के भीतर एक ऐसा बदलाव चल रहा है जो भारत की समुद्री शक्ति की दिशा बदल सकता है. Garden Reach Shipbuilders & Engineers Limited (GRSE) अब वह ट्रेडिशनल सरकारी जहाज यार्ड नहीं रह गया, जिसकी छवि कभी धीमी प्रक्रियाओं और लंबे प्रोजेक्ट सर्कल से जुड़ी थी. आज GRSE को एक इंडस्ट्रियल शिप-फैक्टरी के रूप में देखा जा रहा है, जो भारत के भविष्य के युद्धपोतों का निर्माण कर रही है.

जहां कभी सिर्फ जहाज बनते थे, अब सिस्टम तैयार हो रही है

कभी GRSE को एक साधारण डॉकयार्ड मान कर चलने वाली धारणा अब पुरानी पड़ चुकी है. लंबे समय तक कंपनियां धीमें और पुराने तरीके से जहाज बनाती रही हैं. ये कंपनियां लेबर बेस्ड स्किल और प्रोजेक्ट-वार डिजाइन पर निर्भर रही हैं.

समय के साथ नौसेना ने जहाजों की जरूरत बढ़ाई. वैश्विक प्रतिस्पर्धा तेज हुई और भारत ने आत्मनिर्भरता को नीति के रूप में अपनाया. तब GRSE को यह समझ आया कि पारंपरिक ढांचे में बने रहना अब संभव नहीं है. जरूरत थी अपने तरीके को बदलने की, सोच को बदलने की और जहाज निर्माण का औद्योगिकीकरण करने की.

क्या है बदलाव का प्लान?

GRSE ने वही किया जो दुनिया के अग्रणी शिपयार्ड दशकों पहले कर चुके थे. उसने जहाज निर्माण को एक मॉड्यूलर प्रक्रिया में बदला. अब कंपनी किसी जहाज को पूरा एक ढांचे में नहीं बनाती, बल्कि उसे छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित करती है, जैसे- हुल सेक्शन, सुपरस्टक्चर ब्लॉक, मिसाइल और रडार मॉड्यूल, इंजन सेक्शन आदि.

इन हिस्सों को अलग-अलग तैयार किया जाता है, फिर जोड़ा जाता है. इस बदलाव ने निर्माण समय घटा दिया, लागत नियंत्रित की और डिजाइन को दोहराने योग्य बनाया.

जहां पहले भारत में जहाज निर्माण एक तरह का “हुनरमंद कारीगरी” वाला काम माना जाता था, वहीं अब GRSE इसे एक सिस्टम आधारित निर्माण प्रक्रिया में बदल चुका है.

कैसी है माली हालत?

GRSE के वित्तीय परिणाम इस बदलाव की पुष्टि करते हैं. FY25 में कंपनी की बिक्री रेवेन्यू 3,593 करोड़ रुपये से बढ़कर 5,076 करोड़ रुपये हो गया, यानी करीब 41% की वृद्धि. शुद्ध लाभ भी 51% से अधिक बढ़ा. FY26 की दूसरी तिमाही में कंपनी ने 45% ज्यादा रेवेन्यू और 57% ज्यादा शुद्ध लाभ दर्ज किया.

सिर्फ संचालन ही नहीं, शेयर बाजार में भी कंपनी ने अपना प्रभाव दिखाया है. पब्लिक लिस्टिंग के तीन साल में GRSE का शेयर 68% CAGR की गति से बढ़ा और कंपनी ने लगभग 23% ROE हासिल किया. बाजार और परिचालन प्रदर्शन मिलकर यह साबित करते हैं कि GRSE का बदलाव सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है.

20,000 करोड़ से अधिक का ऑर्डर बुक

30 सितंबर 2025 तक GRSE के पास 20,206 करोड़ रुपये का ऑर्डर बुक था. इसमें 10 बड़े प्रोजेक्ट और 43 जहाज प्लेटफॉर्म शामिल हैं. इनमें फ्रिगेट, सर्वे वेसल, पनडुब्बी रोधी जहाज, तट सुरक्षा जहाज, महासागर शोध पोत और अगली पीढ़ी के पेट्रोल वेसल शामिल हैं.

और यह सिर्फ शुरुआत है. कंपनी लगभग 30,000 करोड़ रुपये के Next-Generation Corvette कार्यक्रम में सबसे कम बोलीदाता (L1) रही है. यदि इसे अनुबंध मिलता है, तो कंपनी का कुल निष्पादन परिदृश्य 75,000 करोड़ रुपये की सीमा पार कर सकता है.

यह ऑर्डर pipeline GRSE को कई वर्षों तक स्थिरता देती है. उसकी कमाई, योजना और क्षमता विस्तार को सुनिश्चित करती है.

GRSE अब ‘डिफेंस प्लेटफॉर्म’ निर्माता है

GRSE का बदलाव केवल इस बात में नहीं है कि वह जहाज जल्दी बना रही है. बदलाव यह है कि वह अब टेक्नोलॉजी रीढ़ बना रही है. कंपनी advanced ship design tools, automation, prefabricated systems integration और digital engineering को अपना रही है.

यही बदलाव उसे संभावित रूप से Unmanned Surface Vehicles (USVs) या समुद्री ड्रोन जैसे प्लेटफॉर्म विकसित करने में सक्षम बना रहा है. यदि यह कल्पना हकीकत में बदलती है, तो GRSE भारत का सिर्फ युद्धपोत निर्माता ही नहीं, बल्कि भविष्य के स्वायत्त समुद्री सिस्टम का जन्म स्थान बन सकता है.

कंपनी अपने डिजाइनों को विदेशों में लाइसेंस कर सकती है, उत्पादन मॉड्यूल एक्सपोर्ट कर सकती है या विदेशी असेंबली साझेदारियां बना सकती है. भारत के रक्षा उद्योग में यह दृष्टिकोण दुर्लभ है, और यही GRSE को विशिष्ट बनाता है.

लेकिन बड़ी छलांगें जोखिम भी लाती हैं

मॉड्यूलर जहाज निर्माण पूंजी-गहन और अनुशासित प्रक्रिया है. टेक्नोलॉजी निवेश, निरंतर गुणवत्ता, milestone-based भुगतान और सप्लाई चेन प्रबंधन में चूक का असर बड़ा हो सकता है. एक्सपोर्ट टारगेट भी जियोपॉलिटिकल जोखिम, भुगतान चक्र और तकनीकी बदलावों से प्रभावित हो सकते हैं. लेकिन यदि GRSE गति और अनुशासन बनाए रखती है तो इन चुनौतियों के बावजूद उसकी स्थिति मजबूत रह सकती है.

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कंपनी के शेयर शुक्रवार को बाजार में 3 फीसदी गिरावट के साथ 2470 रुपये पर बंद हुए. कंपनी का मार्केट कैप 28,300 करोड़ रुपये है. बीते एक साल में कंपनी के शेयरों ने 38 फीसदी का मुनाफा दिया है. वहीं, बीते पांच साल में कंपनी के शेयरों ने 1148 फीसदी का मुनाफा दिया है.

डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल स्टॉक्स की जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.