Saudi-Pak Defense Pact: भारत के लिए खतरे की घंटी, या सऊदी अरब का ‘बैलेंसिंग एक्ट’, क्या हैं गहरे मायने?
Saudi-Pak Defence Pact ने पश्चिम और दक्षिण एशिया के डिफेंस डायनेमिक्स और राजनीतिक पटल पर नई हलचल पैदा की है. सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए इस रणनीतिक डिफेंस समझौते को भारत ने सावधानी से लिया है. सवाल यह उठता है कि क्या यह भारत की सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है या रियाद का बैलेंसिंग एक्ट? जानिए इस समझौते के मायने, भारत-सऊदी रिश्तों का भविष्य और दक्षिण एशिया की शक्ति-संतुलन पर असर.
पाकिस्तान और सऊदी अरब ने बुधवार को दशकों पुराने रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाते हुए Strategic Mutual Defence Agreement पर दस्तखत कर दिए. इसके तहत अगर किसी एक देश पर हमला होता है तो उसे दोनों पर हमला माना जाएगा. यह समझौता पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की रियाद यात्रा के दौरान अल-यमामा पैलेस में हुआ, जहां क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने उनका स्वागत किया.
संयुक्त बयान में क्या कहा?
दोनों देशों की तरफ से जारी साझा बयान में कहा गया कि यह करार “भाईचारे, इस्लामिक एकजुटता और साझा रणनीतिक हितों” पर आधारित है और इसका मकसद डिटरेंस बढ़ाना और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करना है.
क्या हैं भारत के लिए मायने?
इस डिफेंस पैक्ट ने भारत के लिए नई रणनीतिक चुनौती खड़ी कर दी है. एक तरफ भारत और सऊदी अरब के रिश्ते पिछले दो दशकों में ऊर्जा, व्यापार और निवेश के मोर्चे पर गहराए हैं. दूसरी तरफ रियाद का पाकिस्तान से सुरक्षा गठजोड़ भारत-पाक तनाव की स्थिति में सऊदी अरब को अनजाने में संघर्ष में खींच सकता है. ब्लूमबर्ग ने चेतावनी दी है कि यह करार दक्षिण एशिया के शक्ति-संतुलन की स्थिति को और जटिल बना सकता है. ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में मई 2025 में भारत-पाक के बीच चार दिन तक चली जंग की मिसाल दी है.
भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने इस मामले में आधिकारिक प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हमें इस समझौते की जानकारी हैं. इसकी वजह से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा व क्षेत्रीय स्थिरता पर क्या असर होगा उसे हम ध्यान से परखेंगे.” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अपनी “कॉम्प्रिहेंसिव नेशनल सिक्योरिटी” को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है.
भारत-सऊदी के रिश्ते
पाक-सऊदी समझौते के बावजूद, भारत और सऊदी अरब के बीच रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे हैं. सऊदी अरब भारत की ऊर्जा सुरक्षा में अहम भूमिका निभाता है. अरब भारत की भारत की कुल ऊर्जा जरूरतों का 18% सप्लाई करता है. इसके अलावा भारत और सऊदी अरब के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहा है.
द्विपक्षीय व्यापार
FY25 में दोनों देशों का व्यापार 41.88 अरब डॉलर तक पहुंच गया. भारत ने 11.76 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट किया, जिसमें चावल, पेट्रोलियम उत्पाद और मोटर वाहन अहम रहे. इसके अलावा सऊदी अरब ने भारत में 100 अरब डॉलर से ज्यादा निवेश का वादा किया है. PIF ने रिलायंस जियो, रिलायंस रिटेल, फूड कंपनियों और ग्रीन एनर्जी में पैसा लगाया है. इसके अलावा सऊदी अरब में 26 लाख भारतीय रहते हैं, जो वहां सबसे बड़ी प्रवासी कम्युनिटी हैं.
भारत-सऊदी अरब डिफेंस कोऑपरेशन
भारत और सऊदी अरब के रिश्ते काराबोर तक सीमित नहीं हैं. बल्कि दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग भी बढ़ रहा है. 2021 और 2023 में दोनों देशों ने संयुक्त नौसेना अभ्यास किए. इसके अलावा 2023 में पहली बार दोनों देशों की आर्मी ने जॉइंट एक्सरसाइज की थी. 2024 में भारत ने सऊदी को 22.5 करोड़ डॉलर के गोला-बारूद की सप्लाई दी थी. वहीं, इसी वर्ष सऊदी अरब ने Aero India 2025 में भी भाग लिया.
सऊदी का बैलेंसिंग एक्ट
ज्यादातर इंडिपेंडेंट डिफेंस एक्सपर्ट मानते हैं कि रियाद फिलहाल भारत और पाकिस्तान के बीच अपनी स्थिति को संतुलित बनाए रखने पर जोर दे रहा है. एक तरफ सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ धार्मिक और सुरक्षा-आधारित रिश्ते बढ़ा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ भारत के साथ आर्थिक, ऊर्जा और टेक्नोलॉजी साझेदारी को बढ़ा रहा है.
भारत की ज्यादा जरूरत
सऊदी अरब के लिए पाकिस्तान एक सिक्योरिटी फेंसिंग की तरह है, जबकि भारत उसके इकोनॉमिक डिविडेंड्स का सबसे बड़ा स्रोत है. ऐसे में इस डील को भारत के खिलाफ मानने के बजाय सऊदी अरब की अपनी जरूरतों से जुड़ा हुआ ज्यादा माना जा सकता है. क्योंकि, सऊदी अरब के लिए एक तरफ इजराइल और दूसरी तरफ ईरान हमेशा एक खतरे की तरह मौजूद रहते हैं.
क्या होगी भारत की रणनीतिक?
दक्षिण एशिया और खाड़ी की जटिल भू-राजनीति में यह नया करार भारत के लिए डिप्लोमैटिक टेस्ट जरूर है. क्योंकि, सऊदी एक तरफ पाकिस्तान से रणनीतिक सुरक्षा चाहता है. वहीं, दूसरी तरफ भारत से आर्थिक मजबूती पाना चाहता है. भारत को भी इन दोनों समीकरणों के बीच संतुलन साधते हुए कूटनीतिक प्रैग्मेटिज्म के आधार पर आगे बढ़ना होगा.
पैनिक रिएक्शन नहीं पैनी नजर
भारत इस समझौते पर पैनिक रिएक्शन देने के बजाय पैनी नजर रखेगा. इसके साथ ही रियाद के साथ आर्थिक और ऊर्जा संबंधों को और गहरा करने पर जोर दिया जाएगा. भारत पहले से ही खाड़ी देशों के साथ FTA और निवेश करार पर बातचीत कर रहा है. अब इसमें और तेजी लाई जा सकती है. फिलहाल, भारत की रणनीति साफ है कि ना टकराव, ना ढील, बल्कि सोच-समझकर संतुलित डिप्लोमैसी.