क्या है ब्लडी कॉरिडोर, जो युनूस सरकार का बनेगा काल; अब तो सीधे बांग्लादेशी सेना ने खोल दिया मोर्चा
बांग्लादेश में सत्ता संघर्ष गहराता जा रहा है. नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर सेना ने 'ब्लडी कॉरिडोर' योजना के जरिए संप्रभुता से खिलवाड़ का आरोप लगाया है. यह कॉरिडोर म्यांमार के रखाइन राज्य तक मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए प्रस्तावित था, जिसे सेना ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया.
Bloody Corridor: बांग्लादेश की राजनीति इन दिनों तेज उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है.नोबेल पुरस्कार विजेता और अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस द्वारा दिए गए इस्तीफे की पेशकश ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है.इस घटनाक्रम की मुख्य वजह बना है ‘ब्लडी कॉरिडोर’, जिसकी घोषणा बांग्लादेश के विदेश सलाहकार ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तावित किया था. बांग्लादेश की सेना इस कॉरिडोर को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मान रही है, जिससे सेना और अंतरिम सरकार के बीच टकराव खुलकर सामने आ गया है.
सेना और सरकार में खुला टकराव
बांग्लादेश आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमान ने मोहम्मद यूनुस को तीन सख्त संदेश दिए हैं जिसमें दिसंबर तक चुनाव कराना, सेना के काम में हस्तक्षेप करना और म्यांमार के साथ ब्लडी कॉरिडोर को तुरंत बंद किया जाना शामिल है. सेना प्रमुख का यह बयान सीधे-सीधे यूनुस की नीतियों पर हमला माना जा रहा है.
क्या है ब्लडी कॉरिडोर?
दरअसल, यह कॉरिडोर बांग्लादेश के चटगांव से म्यांमार के रखाइन राज्य तक प्रस्तावित एक मानवीय सहायता गलियारा है, जिसका उद्देश्य गृहयुद्ध और भूकंप से प्रभावित म्यांमार वासियों तक राहत पहुंचाना है. लेकिन सेना का मानना है कि इससे देश की संप्रभुता और आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है.
सेना ने जताई गहरी आपत्ति
सेना को नाराज करने वाला यह बयान यूनुस सरकार के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन का था, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र के रखाइन कॉरिडोर प्रस्ताव पर बिना सेना की सलाह के सहमति जताई. इसके बाद सेना ने इस कॉरिडोर को बांग्लादेश को म्यांमार के गृहयुद्ध में घसीटने की कोशिश बताया और इसे “रेड लाइन” करार दिया.
अमेरिका की भूमिका पर उठे सवाल
बांग्लादेश का कहना है कि यूनुस सरकार इस योजना को अमेरिका के दबाव में आगे बढ़ा रही है, ताकि वह क्षेत्रीय रणनीतिक लाभ ले सके. अमेरिकी राजनयिकों ने हाल ही में सेना प्रमुख से मुलाकात की, लेकिन वे उन्हें मनाने में असफल रहे.
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यूनुस की मुश्किलें बढ़ीं
छात्र संगठनों और विपक्षी दलों के प्रदर्शन के बीच यूनुस सरकार पर लगातार चुनाव टालने और सत्ता में बने रहने के आरोप लगते रहे हैं. सेना के खुले विरोध और जन दबाव के चलते अब मोहम्मद यूनुस खुद को “बंधक जैसा” महसूस कर रहे हैं. अगस्त 2024 में सत्ता में आए यूनुस से जनता को बड़ी उम्मीदें थीं. लेकिन नौ महीने के भीतर लोकतंत्र, सुरक्षा और कूटनीति से जुड़े मुद्दों ने उनकी सरकार की नींव हिला दी है.