FPO मॉडल में बड़ा बदलाव! सरकार 5 साल और देगी सहारा, नई स्कीम में आएंगे अहम सुधार

कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण नीति से संबंधित बड़ा अपडेट सामने आया है, जो आने वाले वर्षों में किसान समूहों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर डाल सकता है. सरकार इस पहल से जुड़े कई ढांचागत और वित्तीय मुद्दों को नए तरीके से सुधारने की योजना बना रही है. सभी की निगाहें अब औपचारिक घोषणा पर टिकी हैं.

किसानों को फायदा Image Credit: FREEPIK

किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें संगठित बाजार से जोड़ने के लिए बनाई गई FPO (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन) योजना अब एक नए चरण में प्रवेश कर रही है. सरकार ने साफ संकेत दिए हैं कि यह योजना 2026 के बाद भी जारी रहेगी और इसे अगले पांच वर्षों, यानी 2031 तक बढ़ाया जाएगा. पिछले कुछ वर्षों में सामने आई चुनौतियों, जैसे फंडिंग की कमी, अनुपालन का बोझ और कैपेसिटी बिल्डिंग ने यह साफ कर दिया है कि FPOs को मजबूत बनाने के लिए न सिर्फ समय, बल्कि नई रणनीतियों की भी जरूरत है. इन बदलावों और जरूरतों पर शुक्रवार को आयोजित CII FPO Summit में विस्तृत चर्चा हुई.

FPO योजना को 2026 से 2031 तक बढ़ाने की तैयारी

कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने बताया कि फरवरी 2020 में 10,000 FPO बनाने के टारगेट के साथ शुरू हुई योजना को बढ़ाना अब जरूरी हो गया है. उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में बड़ी संख्या में बने FPO अभी प्रारंभिक चरण में हैं और इन्हें निरंतर मार्गदर्शन और ‘हैंडहोल्डिंग’ की आवश्यकता है. सरकार इस विस्तार अवधि में इन संगठनों को सामुदायिक संस्थाओं और इम्प्लीमेंटिंग एजेंसियों से जोड़कर स्थिरता देने पर ध्यान देगी.

10000 FPO का टर्नओवर 9000 करोड़ के पार, पहुंच 52 लाख किसानों तक

देवेश चतुर्वेदी ने बताया कि 2020 में चित्रकूट से लॉन्च हुए 10,000 FPO अब 2024-25 में लगभग 9,000 करोड़ रुपये का सामूहिक वार्षिक कारोबार कर चुके हैं, जबकि कुछ रिपोर्टें अभी आनी बाकी हैं. उनका अनुमान है कि यह आंकड़ा 10,000 करोड़ रुपये तक जा सकता है. इन FPOs के माध्यम से देश के लगभग 52 लाख किसानों तक पहुंच बनाई गई है. अगर देशभर में पंजीकृत 40,000-50,000 अन्य FPOs को भी जोड़ें तो यह संख्या कहीं ज्यादा हो जाती है.

कृषि सचिव ने कहा कि FPOs के सामने सबसे बड़ी चुनौती कंपनियों एक्ट के तहत होने वाले अनुपालन (Compliance) की है.
कई FPO शुरुआती वर्षों में इन नियमों को समझने और पूरा करने में सक्षम नहीं होते. इसलिए मंत्रालय ने कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय से अनुरोध किया है कि 3–5 वर्षों तक FPOs पर लगने वाली पेनल्टी में राहत दी जाए. उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य सरकारें किफायती चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सचिवों की सूची तैयार करें, ताकि FPOs को पेशेवर मदद मिल सके.

वर्किंग कैपिटल की कमी, 30 लाख की सीमा अब पर्याप्त नहीं

देवेश चतुर्वेदी ने कहा कि अभी FPOs को दी जाने वाली 30 लाख रुपये की इक्विटी ग्रांट की सीमा, कई बड़े ऑपरेशनों के लिए बहुत कम है. अगर FPOs को फसल खरीद, प्रोसेसिंग या किसानों को अग्रिम भुगतान करना है तो यह राशि 50 लाख से 1 करोड़ रुपये के बीच होनी चाहिए. सरकार FPOs को क्रेडिट गारंटी और कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराने के लिए नए मॉडल पर भी विचार कर रही है.

कृषि सचिव ने कहा कि FPOs केले के रेशे, मिलेट्स, दालें और गुड़ जैसे स्थानीय उत्पादों को प्रोसेस करके बाजार में बेचने की बड़ी क्षमता रखते हैं. इससे किसानों को खुदरा कीमतों का फायदा मिलता है, जबकि अभी वे इनपुट खुदरा में खरीदते हैं और आउटपुट थोक में बेचने के लिए मजबूर होते हैं.

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FPO को घरेलू और वैश्विक बाजार से जोड़ने पर जोर

APEDA सचिव सुधांशु ने summit में बताया कि संस्था FPOs को गुणवत्ता सुधार, इंफ्रास्ट्रक्चर और मार्केट लिंकिंग के जरिए घरेलू और निर्यात बाज़ार से जोड़ रही है. उन्होंने बताया कि वाराणसी में सब्जियों की खेती 0 से बढ़कर 1,200 हेक्टेयर तक पहुंची है और पुणे के पुरींदर हाइट्स जैसे समूहों ने अंजीर उत्पादों के EU तक ऑर्डर हासिल किए हैं.

Summit में NABARD, SFAC, NAFED समेत कई संस्थानों के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे.