देश में 18 फीसदी कम हुआ चीनी का उत्पादन, इस वजह से प्रोडक्शन में आई गिरावट
फसल सीजन 2024-25 में देश का चीनी उत्पादन 18 फीसदी घटकर 2.549 करोड़ टन रह गया है. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की गई. ISMA के अनुसार, इस बार 35 लाख टन चीनी एथेनॉल निर्माण में जाएगी. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है.

sugar production: इस साल देश में चीनी उत्पादन में भारी गिरावट आई है. 2024-25 की मौजूदा सीजन में अब तक 2.549 करोड़ टन ही चीनी का उत्पादन हो पाया है, जो पिछले साल की तुलना में 18 फीसदी कम है. खास बात यह है कि उत्पादन में गिरावट की मुख्य वजह उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रमुख राज्यों में चीनी प्रोडक्शन कम होना है. ऐसे में एक्सपर्ट का कहना है कि आने वाले दिनों में चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी भी हो सकती है.
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी उत्पादन में गिरावट की जानकारी इंडियन शुगर बायो-एनर्जी एंड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) ने दी है. इंडियन शुगर बायो-एनर्जी एंड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा सीजन (अक्टूबर से सितंबर) में 15 अप्रैल तक महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन घटकर 80.7 लाख टन रह गया है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 109.4 लाख टन था.
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उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन
वहीं, देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में भी इस बार गिरावट आई है. उत्तर प्रदेश में मौजूदा सीजन के दौरान चीनी का उत्पादन घटकर 91.1 लाख टन रह गया, जबकि पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा 101.8 लाख टन था. वहीं, कर्नाटक में भी चीनी उत्पादन 50.6 लाख टन से घटकर 40.4 लाख टन पर आ गया है.
केवल 38 मिलों में गन्ने की पेराई
इस सीजन में 534 चीनी मिलों में से केवल 38 मिलों में ही गन्ने पेराई का काम चल रहा है, जबकि बाकी सभी मिलें बंद हो चुकी हैं. ISMA के अनुसार, इस साल करीब 35 लाख टन चीनी का इस्तेमाल एथेनॉल बनाने में किया जाएगा, जबकि पिछले साल यह मात्रा 21.5 लाख टन थी.
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देश में बढ़ा गेहूं का स्टॉक
वहीं, कल खबर सामने आई थी कि भारत के सरकारी गोदामों में गेहूं का भंडार 57 फीसदी से बढ़कर पिछले तीन वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. इससे घरेलू बाजार में आपूर्ति को लेकर जो चिंता थी, वह अब काफी हद तक कम हो गई है. इसी कमी के चलते साल की शुरुआत में गेहूं की कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थीं. विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक ओपनिंग स्टॉक होने से सरकार को आने वाले महीनों में कीमतों को नियंत्रित करने में आसानी होगी.
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