भारत ने बनाया जीनोम एडिटेड धान, कम पानी के साथ ज्यादा पैदावार, किसानों की बढ़ेगी कमाई

देश में पहली बार दो ऐसी धान की किस्में तैयार की गई हैं जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती हैं. इनके नाम हैं कमला-DRR धान-100 और पुसा DST राइस 1. ये दोनों किस्में खास तकनीक से तैयार की गई हैं, जिसे जीनोम एडिटिंग कहते हैं.

भारत में तैयार हुई जीनोम एडिटेड धान की दो नई किस्में Image Credit: social media

Genome Edited Rice India: भारत में खेती करने वाले किसानों के लिए एक अच्छी खबर है. अब धान की खेती के लिए पहले जैसी भारी सिंचाई की जरूरत नहीं होगी यानी उन इलाकों में भी धान बोया जा सकेगा जहां पानी की कमी रहती है. दरअसल, देश में पहली बार दो ऐसी धान की किस्में तैयार की गई हैं जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती हैं. इनके नाम हैं कमला-DRR धान-100 और पुसा DST राइस 1. ये दोनों किस्में खास तकनीक से तैयार की गई हैं, जिसे जीनोम एडिटिंग कहते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि इन दोनों किस्मों की क्या है खासियत और साथ ही यह मार्केट में कब तक आएगा.

क्या है जीनोम एडिटिंग ?

अब आप सोच रहे होंगे कि ये जीनोम एडिटिंग क्या बला है. अगर इसे आसान भाषा में समझें तो, इसमें पौधे के अपने ही जीन में थोड़ा-सा बदलाव किया जाता है ताकि वो पहले से बेहतर बन सके. इसमें कोई बाहर का जीन नहीं डाला जाता, जैसा कि जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसलों में होता है. यही वजह है कि इसे अधिक सुरक्षित और नेचुरल तरीका माना जाता है.

किस तरह तैयार हुईं ये धान की किस्में?

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने साल 2018 में इस पर काम शुरू किया था. उन्होंने दो पहले से मौजूद किस्में सांबा मसूरी (BPT5204) और MTU1010 को चुना. फिर उनमें कुछ खास जीन जोड़े गए ताकि वे कम समय में तैयार हो सके, ज्यादा उत्पादन दें और खराब मौसम में भी टिके रहें. यही है जीनोम एडिटेड धान.

क्या है कमला (DRR Dhan-100) कि खासियत?

  • दावा है कि यह पारंपरिक सांबा मसूरी से करीब 19 फीसदी ज्यादा धान देगी.
  • इसे नार्मल धान के फसलों के पकने के मुकाबले इसे तैयार होने में 15 से 20 दिन कम लगेगा.
  • इसका स्वाद और चावल की क्वालिटी एकदम वैसी ही है जैसी लोग पहले खाते आए हैं.
  • इसमे कम पानी लगता है और इससे खेतों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसें भी कम होती हैं.

पुसा DST राइस 1 किन इलाकों के लिए बेस्ट है?

MTU1010 के मुकाबले ये किस्म 9 फीसदी से 30 फीसदी तक ज्यादा पैदावार देती है.
यह खारी और खराब मिट्टी में भी अच्छा उगती है.
खासकर तटीय इलाकों में बहुत असरदार साबित हो सकती है.

किसान को क्या होगा फायदा?

ज्यादा पैदावार: अगर ये बीज 5 मिलियन हेक्टेयर में बोए जाएं तो 4.5 मिलियन टन ज्यादा धान पैदा हो सकता है.

पानी की बचत: कमला किस्म जल्दी पकती है, जिससे तीन बार पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती. इससे करीब 7,500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बचेगा.

पर्यावरण की मदद: ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी 20% तक कम होगा. इससे पर्यावरण को भी राहत मिलेगी.

खराब मौसम में भी टिकेंगी: सूखा, खारी मिट्टी और जलवायु बदलाव जैसी समस्याओं से ये किस्में लड़ने में सक्षम हैं.

कहां-कहां उगाई जाएगी ये धान?

इन किस्मों की खेती शुरू में उन राज्यों में की जाएगी जहां धान की खेती पहले से होती है, जैसे –आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल. साथ ही, सूखा प्रभावित इलाकों में भी अब धान उगाने की राह खुल जाएगी.

कब आएगा किसानों के हाथ ?

फिलहाल तो ये बीज सीधे बाजार में नहीं आया है. इन्हें तैयार होने में करीब 4-5 साल का वक्त लगेगा. क्योंकि इन्हें पहले ब्रीडर बीज, फिर फाउंडेशन और फिर सर्टिफाइड बीज बनाकर ही किसानों तक पहुंचाया जाएगा. सरकार का कहना है कि ये प्रक्रिया तेज की जा रही है. शुरुआत में बीज सरकारी संस्थाओं के जरिए मिलेगा.

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