भारत की ईवी क्रांति पर संकट, सरकारी बेड़े में हाइब्रिड को लेकर उठे सवाल; टाटा-महिंद्रा ने किया विरोध

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को लेकर उठाए जा रहे कदमों के बीच अब हाइब्रिड वाहनों को सरकारी बेड़े में शामिल करने के प्रस्ताव ने विवाद खड़ा कर दिया है. टाटा मोटर्स, महिंद्रा, हुंडई और किआ जैसी कंपनियों ने इस कदम का विरोध किया है, उनका मानना है कि इससे EV अपनाने की गति धीमी होगी.

महिंद्रा इलेक्ट्रिक कार Image Credit: Mahindra

Hybrid vs EV: भारत के प्रमुख वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने सरकारी एजेंसियों के बेड़े में हाइब्रिड वाहनों को शामिल करने के प्रस्ताव का विरोध किया है. कंपनियों का कहना है कि यह कदम इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाने की गति को धीमा करेगा और ग्रीन ट्रांसपोर्टेशन के लक्ष्यों को प्रभावित करेगा.

क्या है मामला

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने 2 मई को एक परामर्श जारी कर हाइब्रिड वाहनों को “स्वच्छ वाहन” की श्रेणी में रखने की सिफारिश की थी. इसके तहत दिल्ली-एनसीआर में सरकारी एजेंसियों को हाइब्रिड वाहन खरीदने की अनुमति दी जा सकती थी. हालांकि, टाटा, महिंद्रा, MG मोटर, हुंडई और किआ जैसी कंपनियों ने इसका विरोध करते हुए भारी उद्योग मंत्रालय को पत्र लिखा है.

ईवी कंपनियों की चिंताएं

हाइब्रिड वाहन अभी भी फॉसिल फ्यूल पर निर्भर हैं. इनमें पेट्रोल/डीजल इंजन होता है, जबकि ईवी शून्य उत्सर्जन वाले होते हैं. कंपनियों का कहना है कि हाइब्रिड वाहनों को प्रोत्साहन देने से वायु प्रदूषण को कम करने के लक्ष्य प्रभावित हो सकते हैं और EV इन्वेस्टमेंट पर भी असर पड़ेगा. भारत सरकार की मौजूदा नीतियां (जैसे PLI स्कीम) केवल इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा देती हैं. ऐसे में हाइब्रिड टेक्नोलॉजी को समर्थन देना नीति में भ्रम पैदा कर सकता है.

सरकारी बेड़े में EV की कम हिस्सेदारी

सरकारी बेड़े में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी अभी भी बहुत कम है. 2022 के आंकड़ों के अनुसार, सरकारी एजेंसियों के 8.47 लाख वाहनों में से केवल 5,384 (0.6 फीसदी) ही ईवी थे. EV सेगमेंट तेजी से विस्तार कर रहा है और कंपनियां इस उभरते बाजार में प्रवेश की कोशिश कर रही हैं.

क्या कहती हैं कंपनियां

महिंद्रा ने भारी उद्योग मंत्रालय को 15 मई को लिखे पत्र में कहा कि हमारा अनुरोध है कि सरकार की नीति केवल ईवी पर केंद्रित रहे. वहीं टाटा मोटर्स ने कहा कि हाइब्रिड को बढ़ावा देने से ईवी में निवेश प्रभावित होगा और वैश्विक निवेशकों को गलत संदेश जाएगा. हुंडई और किआ ने भी इसी तरह की आपत्तियां दर्ज कराई हैं.

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हाइब्रिड समर्थक कौन

टोयोटा और मारुति सुज़ुकी जैसी कंपनियां हाइब्रिड वाहनों को EV की ओर बढ़ने का एक समाधान मानती हैं. उनका तर्क है कि भारत में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते हाइब्रिड टेक्नोलॉजी एक व्यावहारिक विकल्प हो सकती है.