डिजिटल गोल्ड कंपनियों ने खटखटाया सेबी का दरवाजा, रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में शामिल करने की लगाई गुहार

Digital Gold कंपनियां अब नियमों के दायरे में आना चाहती हैं. IBJA ने सेबी को पत्र लिखकर डिजिटल गोल्ड प्लेटफॉर्म्स को रेगुलेट करने की मांग की है. सेबी की चेतावनी के बाद निवेशक सुरक्षा और वॉल्ट पारदर्शिता पर बहस तेज हो गई है.

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इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन (IBJA) ने सेबी को पत्र लिखकर डिजिटल गोल्ड प्लेटफॉर्म्स को नियामकीय दायरे में लाने की मांग की है. एसोसिएशन का कहना है कि इससे ग्राहकों में बढ़ते डर और इस आशंका को दूर किया जा सकेगा कि कहीं उन्हें गुमराह तो नहीं किया जा रहा.

यह पहल तब आई है, जब पिछले सप्ताह सेबी ने कहा था कि डिजिटल गोल्ड न तो सिक्योरिटी है और न ही कमोडिटी डेरिवेटिव, इसलिए यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. इसके साथ ही सेबी ने निवेशकों को चेताया था कि डिजिटल गोल्ड में वह सुरक्षा उपलब्ध नहीं है, जो गोल्ड ETFs, इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसिप्ट्स या एक्सचेंज-ट्रेडेड डेरिवेटिव्स में मिलती है.

डिजिटल गोल्ड कंपनियों की रेगुलेशन में रुचि

ET की एक रिपोर्ट के मुताबिक IBJA के नेशनल सेक्रेटरी सुरेंद्र मेहता का दावा है कि तमाम डिजिटल गोल्ड कंपनियां सेबी या किसी अन्य उपयुक्त रेगुलेटर के तहत आने को तैयार हैं. इसके साथ ही बताया कि कई डिजिटल गोल्ड प्रोडक्ट्स BIS और NABL मान्यता प्राप्त रिफाइनर्स से बैक्ड हैं, जिससे इन प्लेटफॉर्म्स की विश्वसनीयता बढ़ती है.

सरकारी स्पष्टता की जरूरत

रिपोर्ट में बताया गया है कि तमाम डिजिटल गोल्ड प्लेटफॉर्म सरकार से डिजिटल गोल्ड पर स्पष्टता चाहते हैं. खासतौर पर एक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाने की मांग की जा रही है. इसके लिए इन प्लेटफॉर्म्स के मैनेजमेंट से जुड़े लोगों ने सेबी और सरकार को सुझाव दिया है कि डिजिटल गोल्ड के लिए एक मजबूत सर्विलांस सिस्टम बनाया जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्लेटफॉर्म्स के जरिए खरीदा गया गोल्ड वॉल्ट में सुरक्षित रखा जा रहा है और बिना उपभोक्ता की अनुमति के उसे लिक्विडेट न किया जा सके.

युवाओं में तेजी से बढ़ रही मांग

डिजिटल गोल्ड युवा निवेशकों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि इसमें तत्काल लिक्विडिटी मिलती है और लॉकर का झंझट नहीं रहता. फेस्टिव सीजन में इसकी मांग और बढ़ जाती है. SafeGold के मुताबिक इस साल धनतेरस पर उसके प्लेटफॉर्म पर 1,950 करोड़ रुपये के लेनदेन हुए, जो पिछले साल के 800 करोड़ से कहीं ज्यादा हैं.

नियामकीय ढांचा क्यों जरूरी

विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल गोल्ड तेजी से बढ़ता सेगमेंट है, लेकिन इसमें रेगुलेशन की कमी से निवेशक सुरक्षा को बड़ा खतरा है. मार्केट साइज बढ़ने के साथ गवर्नेंस, वॉल्ट सुरक्षा और KYC मानकों की निगरानी बेहद जरूरी होती जा रही है.