बासमती चावल, कपड़े और बिजली को तरसेगा पाकिस्तान, भारत का सिंधु नदी पर मेगा एक्शन

भारत और पाकिस्तान के बीच पानी को लेकर चल रही रस्साकशी एक नए मोड़ पर पहुंच गई है. हालिया सरकारी आंकड़ें इस ओर इशारा करते हैं कि अगर भारत ने अपने जल अधिकारों का पूरा इस्तेमाल किया, तो पड़ोसी मुल्क में हालात और भी बिगड़ सकते हैं. इससे कर्ज में डूबे पाकिस्तान मूल सुविधाओं के लिए भी तरसने लगेगा.

जल पर जंग Image Credit: Money9 Live

Indus Water Treaty: भारत और पाकिस्तान के बीच तना हुआ माहौल अब सिर्फ़ सरहदों तक महदूद नहीं रहा बल्कि अब पानी भी इस टकराव का अहम हथियार बन गए हैं. भारत ने सिंधु जल संधि को सस्पेंड कर दिया है और बीते दस दिनों से लगातार सिंधु बेसिन से जुड़ी गतिविधियों पर कार्रवाई कर रहा है. सरकार की मंशा साफ है, भारत अब अपने हिस्से का अधिकतम पानी उपयोग करेगा, जिसे दशकों से पाकिस्तान को जाने दिया जाता था. इसके लिए नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को मोड़ने का काम शुरू हो चुका है, जिससे पश्चिमी नदियों का बहाव भारत की ओर डाइवर्ट किया जा सके. साथ ही भारत अपनी योजना में नए डैम बनाने की राह में भी है. अगर भारत नई परियोजनाएं और बांध बनाता है तो इसका सीधा असर पाकिस्तान की कृषि, बिजली और अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, जहां पहले ही हालात बदतर होते जा रहे हैं.

सिंधु जल संधि के तहत भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) से सिंचाई के लिए 13 लाख एकड़ भूमि का अधिकार है, लेकिन उसने अभी तक इसका केवल आधा हिस्सा ही इस्तेमाल किया है.

पाकिस्तान की खेती पर पड़ेगा सीधा असर

पाकिस्तान की खेती का बड़ा हिस्सा, तकरीबन 80 फीसदी सिंधु बेसिन के पानी पर निर्भर है. यही नहीं, कुल 1.6 करोड़ हेक्टेयर जमीन इसी बेसिन की रहमत से सींची जाती है. ऐसे में अगर भारत ने अपने हिस्से का पानी रोक लिया या ज्यादा देर तक बांधों में जमा कर लिया तो तो पाकिस्तान के किसान कपास और धान जैसी मुख्य फसलों की बुवाई भी समय पर नहीं कर पाएंगे.

कॉटन और धान जैसी अहम फसलें पानी की पहली बूंद से जिंदगी पाती हैं और अगर ये बूंदें न पहुंचीं तो कपास की पैदावार को गहरा धक्का लग सकता है. कपास प्रोडक्शन का सीधा असर देश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री पर भी पड़ेगा, जो पहले से वैश्विक प्रतिस्पर्धा और घरेलू ऊर्जा संकट से जूझ रही है. ये प्रोडक्शन इसलिए भी अहम है क्योंकि कपास पाकिस्तान के 60 फीसदी निर्यात और 8.5 फीसदी GDP का स्रोत है.

बासमती चावल का बाजार भी जाएगा हाथ से

पाकिस्तान दुनिया के बासमती चावल कारोबार में 35 फीसदी हिस्सेदारी रखता है जबकि भारत पहले से 65 फीसदी का मालिक है. अगर पाकिस्तान में फसलें मारी गईं, तो भारत इस फासले को और बढ़ा सकता है. यानी जो बाजार पाकिस्तान के हाथ में है वहां उसकी पकड़ और ढीली पड़ जाएगी.

बिजली का संकट और बढ़ेगा

पाकिस्तान बिजली आपूर्ति के लिए इस वक्त कोयले पर तो टिका है लेकिन अपनी बिजली की जरूरतें पूरी करने के लिए हाइड्रोपावर यानी बेसिन के बहाव से बनने वाली बिजली पर भी निर्भर है. पाकिस्तान अपनी 33 फीसदी ऊर्जा जरूरतें नवीकरणीय स्रोतों से पूरी करने की योजना बना रहा है, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा हाइड्रोपावर से आता है लेकिन जैसे ही बेसिन में बहाव कम होगा वैसे ही बड़े डैम, जैसे कि तरबेला, मंगला और नीलम-झेलम भी कमजोर पड़ जाएंगे.

इसका असर सिर्फ बिजली तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि फैक्ट्रियों की क्षमता कम होगी और आम लोगों के लिए बिजली महंगी हो सकती है. खासकर कपड़ा और चीनी उद्योगों को गहरा झटका लगेगा और जब बिजली महंगी हो, तो पहले से 9 अरब डॉलर के बिजली क्षेत्र के कर्ज में डूबे इस मुल्क के लिए हालात और भी संगीन हो जाएंगे.

भारत को कितना पानी बचाना होगा?

सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि हर साल औसतन 136 MAF (मिलियन एकड़ फ़ीट) पानी पाकिस्तान की तरफ बहता है. अगर भारत इस पूरे पानी को अपने पास रोकना चाहे तो उसे कम से कम 22 भाखड़ा डैम जैसे बड़े बांध बनाने होंगे. मौजूदा हालात में भारत ने अब तक सिर्फ़ आधे इलाके की सिंचाई की है लेकिन अगर वो नए कैनाल, बांध और सप्लाई सिस्टम बना लेता है तो वो कश्मीर के सेब, अखरोट और केसर की खेती में जान डाल सकता है.

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आर्थिक पतन की ओर बढ़ता पाकिस्तान

ऊर्जा संकट और कृषि पर पड़ने वाला प्रभाव पाकिस्तान की कुल अर्थव्यवस्था को झकझोर सकता है. देश का बाहरी कर्ज 130 अरब डॉलर के पार है, जबकि विदेशी मुद्रा भंडार केवल 8 अरब डॉलर पर सिमट गया है जो महज डेढ़ महीने के आयात के लिए ही पर्याप्त है. अगर बिजली उत्पादन और निर्यात प्रभावित हुए, तो पाकिस्तान को IMF और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से और कर्ज लेना पड़ सकता है जिससे उसकी आर्थिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े होंगे.