डॉलर की तेजी के तूफान में उड़े जा रहा रुपया, एशिया में सबसे ज्यादा कमजोर, क्या अब होगा 90 का लेवल पार?
डॉलर की तेजी के तूफान में रुपया लगातार फिसल रहा है और एशिया में सबसे ज्यादा कमजोर मुद्राओं में शामिल हो गया है. रुपये ने नया रिकॉर्ड लो छुआ और 90 का स्तर अब बेहद करीब नजर आ रहा है. ट्रेड डेफिसिट, विदेशी बिकवाली और ग्लोबल डॉलर स्ट्रेंथ ने दबाव बढ़ाया है. जानें आगे क्या संकेत दे रहे हैं एक्सपर्ट्स.
सोमवार को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार चौथे सत्र में कमजोर होकर 8 पैसे गिरकर 89.53 पर बंद हुआ. इंटरबैंक फॉरेक्स मार्केट में रुपये की शुरुआत 89.45 पर हुई थी, लेकिन दिनभर की ट्रेडिंग में डॉलर की मजबूत मांग और सीमित सप्लाई के चलते करंसी फिसलकर इंट्राडे में 89.79 के रिकॉर्ड लो तक पहुंच गई.
यह स्तर 34 पैसे की बड़ी गिरावट दर्शाता है और 21 नवंबर को छुए 89.66 के पिछले लो को भी पीछे छोड़ देता है. मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रेड डेफिसिट में बढ़ोतरी, इंडिया-US ट्रेड डील में देरी और RBI के सीमित इंटरवेंशन ने रुपये की कमजोरी को लगातार गहराया है.
दबाव फिलहाल बना रहेगा
HDFC Securities के सीनियर रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार के मुताबिक, डॉलर की डिमांड और सप्लाई के बीच असंतुलन अभी जल्द सुधरता नहीं दिख रहा है, जिससे रुपये पर दबाव कुछ और दिनों तक बना रह सकता है. परमार का कहना है कि स्पॉट USD-INR के लिए 89.95 एक अहम रेजिस्टेंस बना हुआ है, जबकि 89.30 पर सपोर्ट दिखता है. उनके अनुसार, जब तक फंडामेंटल फैक्टर्स में सुधार नहीं आता, रुपये की रिकवरी सीमित रहेगी.
90 अहम मनोवैज्ञानिक स्तर
वहीं Kotak Securities के करेंसी रिसर्च हेड अनिंद्य बनर्जी ने कहा कि USDINR ने सोमवार को 89.79 का नया ऑल-टाइम हाई छूने के बाद थोड़ी नरमी दिखाई, जिसकी एक वजह RBI का संभावित दखल भी हो सकता है. उन्होंने बताया कि NDF एक्सपायरी की डिमांड, आयातकों की मजबूत खरीद और इंडिया-यूएस ट्रेड तनावों ने रुपये को नई गिरावट की ओर धकेला है.
बनर्जी का मानना है कि 90 का स्तर एक अहम मनोवैज्ञानिक मार्क है, जहां RBI की सक्रियता और बढ़ सकती है. हालांकि, वे यह भी बताते हैं कि जब तक USD-INR लगातार 88.80 के नीचे नहीं जाता, तब तक गिरावट का अंत नहीं माना जा सकता. 90 के ऊपर ब्रेक होने की स्थिति में अगला स्तर 91.5 तक खुल सकता है.
वैश्विक संकेत कमजोर
डॉलर इंडेक्स सोमवार को 0.17 फीसदी बढ़कर 99.28 पर पहुंच गया, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की करंसियों पर दबाव और बढ़ा. वहीं ब्रेंट क्रूड 1.86 फीसदी की बढ़त के साथ 63.55 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड हुआ, जो भारत जैसे आयातक देशों के लिए चिंता बढ़ाने वाला फैक्टर है.
घरेलू बाजार में भी सेंटीमेंट कमजोर रहा. सेंसेक्स 64.77 अंक गिरकर 85,641.90 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 27.20 अंकों की गिरावट के साथ 26,175.75 पर आ गया. विदेशी निवेशकों ने सोमवार को 1,171.31 करोड़ रुपये की बिकवाली की, जिससे रुपये पर अतिरिक्त दबाव बना.
अर्थव्यवस्था के ताजा संकेत
निर्माण क्षेत्र की गतिविधि नवंबर में सुस्त हुई, जहां HSBC India Manufacturing PMI नौ महीने के निचले स्तर 56.6 पर फिसल गया. औद्योगिक उत्पादन भी अक्टूबर में सिर्फ 0.4 फीसदी बढ़ा, जो एक साल से अधिक का निचला स्तर है. हालांकि, इसी दौरान FDI प्रवाह अप्रैल-सितंबर के दौरान 18 फीसदी बढ़कर 35.18 अरब डॉलर पर पहुंच गया और US से इनफ्लो दोगुना होकर 6.62 अरब डॉलर पर पहुंचा. GST कलेक्शन नवंबर में घटकर 1.70 लाख करोड़ रुपये पर आया, जो एक साल का लो है.
90 का स्तर फोकस में
एक्सपर्ट्स की आम राय है कि रुपये पर दबाव अभी कुछ समय तक बरकरार रह सकता है. ग्लोबल डॉलर स्ट्रेंथ, कच्चे तेल की कीमतें, घरेलू कमजोर आंकड़े और ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता निकट अवधि में राहत नहीं दे रही. ऐसे में मार्केट की पूरी नजरें 90 के मनोवैज्ञानिक स्तर और RBI की अगली चाल पर टिकी रहेंगी.
एशिया में सबसे कमजोर
ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2025 में भारतीय रुपये ने डॉलर के मुकाबले लगभग 4.3% की गिरावट दर्ज की है, जो इसे एशिया की सबसे कमजोर मुद्राओं में शामिल करता है. कई प्रमुख एशियाई करेंसियों, जैसे युआन, रुपिया, बाट और वोन में सीमित उतार-चढ़ाव देखने को मिला, जबकि रुपये की निरंतर गिरावट अलग ट्रेंड दिखाती है. यही वजह है कि विश्लेषक इसे इस साल एशिया में सबसे ज्यादा कमजोर करंसी के तौर पर देख रहे हैं.