चमकते पैनल भारत की नई एनर्जी की उम्मीद या बबल? रोशनी के खरीदारों की राह देखता सोलर उद्योग

10 साल पहले जापान की सोलर एनर्जी भारत से 34 गुना ज्यादा थी. अब, हालात बदल गए हैं और एक ऐसे देश के लिए जो कभी लगभग हर सेल, मॉड्यूल और वेफर इंपोर्ट करता था. यह बदलाव वाकई काबिले तारीफ है. लेकिन चमक को कुरेदें, तो ये फीकी पड़ने लगती है. इस चकाचौंध के पीछे एक अलग ही औद्योगिक महाकाव्य छिपा है.

भारतीय सोलर उद्योग के लिए चुनौतियां. Image Credit: AI

दशक भर पहले की बात है, भारत की सोलर एनर्जी का सपना मुंबई को मुश्किल से रोशन कर पाता था. क्षमता थी सिर्फ 4 गीगावाट (GW). आज यह 123 गीगावाट की धमाकेदार ऊर्जा क्षमता के साथ देश की आधे से अधिक रिन्यूएबल एनर्जी को शक्ति प्रदान कर रहा है और भारत को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सोलर एनर्जी नेशन बना रहा है. अब भारत सिर्फ चीन और अमेरिका से पीछे है. हालांकि, इस चकाचौंध के पीछे एक अलग ही औद्योगिक महाकाव्य छिपा है. भारत का सोलर एनर्जी प्रोडक्शन बेस तेजी से बढ़ रहा है. साल 2014 में 2.3 गीगावाट से बढ़कर मार्च 2025 तक 74 गीगावाट हो गया है और सरकार का स्वीकृत मॉडल और निर्माताओं की सूची (ALMM) के अनुसार अगस्त 2025 तक 100 गीगावाट तक पहुंचने का अनुमान है. यह क्षमता कुछ यूरोपीय देशों की कुल बिजली मांग को भी मात देने के लिए पर्याप्त है.

वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है

10 साल पहले जापान की सोलर एनर्जी भारत से 34 गुना ज्यादा थी. अब, हालात बदल गए हैं और एक ऐसे देश के लिए जो कभी लगभग हर सेल, मॉड्यूल और वेफर को इंपोर्ट करता था. यह बदलाव वाकई काबिले तारीफ है. लेकिन चमक को कुरेदें, तो ये फीकी पड़ने लगती है. ईटी के अनुसार, फैक्टरी मालिकों, इंजीनियरों या नीति-निर्माताओं से बात करें, तो एक और कहानी सामने आती है. कहानी अति-उत्साह, अति-निर्माण (ओवर-प्रोडक्शन) और अति-आत्मविश्वास की है. सोलर एनर्जी का वह उछाल जो कभी अजेय लग रहा था, शायद अब अपने पहले ग्रहण में प्रवेश कर रहा है.

खरीदारों से ज्यादा फैक्टरियां

भारतीय एनर्जी मार्केट में भारत की ऊर्जा क्रांति के नए मंदिर दिखाई दे रहे हैं. चमकते सोलर पैनल्स से भरे गोदाम खरीदारों का इंतजार कर रहे हैं. कुछ प्लांट में असेंबली लाइनें खामोश होने लगी हैं और रोबोट स्थिर खड़े हैं. पूरी रफ्तार से चलने की बजाय फैक्टरियां मुश्किल से चल रही हैं.

रूबिक्स इंडस्ट्री इनसाइट्स रिन्यूएबल एनर्जी रिपोर्ट (अक्टूबर 2025) के अनुसार, अडानी सोलर, वारी एनर्जीज और विक्रम सोलर जैसी टॉप कंपनियां 80%-85% क्षमता पर काम कर रही हैं, लेकिन छोटी कंपनियां अपनी क्षमता का बमुश्किल 25 फीसदी उपयोग कर रही हैं और हांफ रही हैं.

भारत की रिन्यूएबल एनर्जी की कुल स्थापित क्षमता का लैंडस्केप

सेगमेंटFY2015 (GW)FY2025 (GW)FY2026 (अगस्त 2025 तक) (GW)(CAGR) FY2015–FY2025FY2025 में हिस्सा (%)
सोलर एनर्जी4105.6123.139%50.70%
विंड पावर23.450.152.78%21.70%
स्मॉल हाइड्रो पावर4.15.15.12%2.10%
बायो पावर8.511.611.63%4.80%
लार्ज हाइड्रो पावर3647.750.13%20.70%
कुल (Total)76220.1242.611%100%
सोर्स: Ministry of New and Renewable Energy

चौंकाने वाला मोड़

कुछ साल पहले तक वैश्विक मांग अंतहीन लग रही थी. भारतीय कंपनियां तेजी से बढ़ते अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों में निर्यात पर बड़ा दांव लगाते हुए, विस्तार की होड़ में थीं. फिर 2025 का एक चौंकाने वाला मोड़ आया. अमेरिका ने आयातित भारतीय मॉड्यूल पर 50 फीसदी टैरिफ लगा दिया और निर्यातकों पर 213 फीसदी से अधिक मार्जिन पर बेचने का आरोप लगाते हुए एंटी-डंपिंग जांच शुरू कर दी. अमेरिकी कॉमर्स डिपार्टमेंट ने भारतीय सोलर सेल इंपोर्ट पर 123.04% डंपिंग का आरोप लगाया, जिसमें सब्सिडी की दरें 2 फीसदी से ज्यादा थीं. इंडोनेशिया और लाओस के खिलाफ भी इसी तरह की जांच की गई.

प्रोडक्शन बढ़ा, बाजार की तलाश

रूबिक्स डेटा साइंसेज की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की सोलर मॉड्यूल मैन्युफैक्चरिंग क्षमता वित्त वर्ष 2025 में केवल एक वर्ष में 38GW से बढ़कर 74GW हो गई. यानी 36GW की वृद्धि हुई और अब यह लगभग 100GW तक पहुंच गई है. यह घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन वित्त वर्ष 2024-25 में इंस्टॉलेशन केवल 24GW थीं. मार्च 2027 तक कुल मॉड्यूल क्षमता 190GW तक पहुंचने का अनुमान है. पर जब तक कि घरेलू मांग तेजी से न बढ़े या नए निर्यात बाजार न खुल जाएं ये क्षमता जोखिम भरी हो सकती है.

यह उद्योग वित्त वर्ष 2027 के अंत या वित्त वर्ष 2028 की शुरुआत में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच सकता है, जिससे डिमांड-सप्लाई की डायानामिक्स में बदलाव आ सकते हैं.

2024 में भारत ने अमेरिका को 4.4 गीगावाट मूल्य के सोलर मॉड्यूल भेजे थे, जो कुल निर्यात का 73 फीसदी से 97 फीसदी के बीच था. 2025 तक वह बाजार लगभग सूख चुका है.

उद्योग में असमानता और बेचैनी

उद्योग सूत्रों के अनुसार, भारत के सोलर मॉड्यूल सेक्टर में क्षमता का उपयोग अत्यधिक असमान है. जहा प्रमुख कंपनियां अभी भी मजबूत घरेलू पाइपलाइन के कारण 80%-85% क्षमता पर काम कर रही हैं. वहीं छोटे और निर्यात-निर्भर मैन्युफैक्चरर मुश्किल से 25 फीसदी क्षमता पर काम कर रहे हैं. भारत के मॉड्यूल एक्सपोर्ट में गुजरात का योगदान लगभग 70 फीसदी है. इस क्षेत्र की कंपनियां विशेष रूप से अमेरिकी व्यापार कार्रवाइयों के प्रति संवेदनशील हैं. कई कंपनियों ने चेतावनी दी है कि उनके ऑर्डर बंद किए जा सकते हैं. यह बेचैनी उद्योग के बिखरते लैंडस्केप को दर्शाता है. जहां एक तरफ कुछ बड़ी कंपनियां अनुमान से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं, जबकि व्यापक क्षेत्र को कम उपयोग और संभावित अधिक क्षमता के बढ़ते जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है.

चमक के नीचे का बुलबुला

कागज पर तो आंकड़े चकाचौंध कर देने वाले हैं. मार्च 2024 और मार्च 2025 के बीच भारत की सोलर मॉड्यूल क्षमता 38GW से दोगुनी होकर 74GW हो गई, जबकि सेल निर्माण 9GW से बढ़कर 25GW हो गया, जो 2025 के मध्य तक 27 GW तक पहुंच जाएगा. सरकार अब इसे जल्द ही 40GW तक बढ़ाना चाहती है और 2028 तक पूर्ण घरेलू सेल उत्पादन हासिल करना चाहती है.

लेकिन जहां कारखाने रिकॉर्ड गति से पैनल बना रहे हैं, वहीं मांग में कोई वृद्धि नहीं हुई है. भारत की कुल रिन्यूएबल क्षमता वित्त वर्ष 2025 में 220GW और अगस्त 2025 तक 242.6GW तक पहुंच जाएगी, जिसमें सोलर एनर्जी का योगदान आधे से अधिक और विंड एनर्जी का योगदान 50GW होगा. फिर भी नए इंस्टॉलेशन, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की तेजी से पिछड़ रहे हैं. सीधे शब्दों में कहें तो, बाजार बन रहे सभी पैनलों को खपा नहीं पा रहा है.

इसका मतलब है कि अगला फेज बेहद कठिन हो सकता है. बड़ी, इंटीग्रेटेड कंपनियां, जिनके पास पर्याप्त फंड, कैप्टिव सोलर पार्क और सरकारी ऑर्डर हैं, वे फल-फूल सकती हैं. कम कीमतों और ऊंची उधारी लागतों से दबी छोटी कंपनियों को बंद करना पड़ सकता है या विलय करना पड़ सकता है.

आत्मनिर्भरता या मृगतृष्णा?

भारत के नीति निर्माता इसे ‘सोलर क्रांति’ कहते हैं. प्रोडक्शन बेस्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम, इंपोर्ट ड्यूटीज, ALMM सर्टिफिकेशन सिस्टम ने वास्तव में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया है. वेफर्स से लेकर मॉड्यूल तक, चीनी निर्भरता से मुक्त एक ‘स्वदेशी’ सोलर वैल्यू चेन का निर्माण करना है.

लेकिन रूबिक्स रिपोर्ट एक गंभीर वास्तविकता की पड़ताल करती है. स्थानीय क्षमता में वृद्धि के बावजूद, चीन अभी भी भारत के सोलर इंपोर्ट में आगे है. अकेले वित्त वर्ष 2025 में सोलर मॉड्यूल इंपोर्ट में 51 फीसदी और सोलर सेल आयात में 11 फीसदी की गिरावट आई, फिर भी आयात में कमी के बावजूद चीन का हिस्सा वास्तव में बढ़ गया.

भारत के कारखाने चल रहे हैं, लेकिन उन्हें चलाने वाला कच्चा माल अभी भी मुख्यतः चीन से आता है. भारतीय निर्माता अभी भी चीनी वेफर्स और पॉलीसिलिकॉन पर निर्भर हैं, जो सोलर सेल बनाने के लिए जरूरी सामग्री हैं.

सरकार की आक्रामक नीति

सरकार की आक्रामक नीतिगत रणनीति एक वरदान और एक समय की टिक-टिक करती घड़ी, दोनों साबित हुई है. पीएलआई स्कीम घरेलू निर्माताओं को अरबों डॉलर के प्रोत्साहन प्रदान करती है. आयातित मॉड्यूल और सेल पर सीमा शुल्क, ALMM लिस्टिंग के साथ मिलकर, विदेशी इंपोर्ट को महंगा बनाते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकारी परियोजनाओं में भारतीय कारखानों को प्राथमिकता मिले.

लेकिन इस तरह का कठोर संरक्षणवाद उल्टा भी पड़ सकता है. ईटी ने डेवलपर्स के हवाले से अपनी रिपोर्ट में लिखा ‘अनिवार्य ALMM आवश्यकताओं से परियोजनाएं धीमी हो जाती हैं और लागत बढ़ जाती है. इस बीच छोटी कंपनियां अस्तित्व के लिए इन नियमों पर निर्भर हैं. इनके बिना, सस्ते चीनी पैनल फिर से बाजार में छा जाएंगे.’

सरकार अपनी स्कीम को डबल कर रही है. जून 2026 से सोल पीवी सेल भी ALMM मैंडेट के तहत शामिल हो जाएंगे, जिसका अर्थ है कि सरकार समर्थित परियोजनाओं में केवल भारत में निर्मित सेल का ही उपयोग किया जा सकेगा. अधिकारियों को उम्मीद है कि इससे स्थानीय निर्माताओं के लिए एक स्थिर मांग पाइपलाइन बनेगी और नए निवेशक आकर्षित होंगे.

दिग्गजों ने लगाया है बड़ा दांव

जहां छोटी कंपनियां संघर्ष कर रही हैं, वहीं दिग्गज कंपनियां बड़ा दांव लगा रही हैं. अडानी समूह ने 2030 तक 2.3 ट्रिलियन रुपये के निवेश की घोषणा की है, जिसके तहत वह गुजरात के खावड़ा में सोलर और विंड एनर्जी प्रोडक्शन को 30 गीगावाट तक बढ़ाएगा और मुंद्रा में दुनिया के सबसे बड़े रिन्यूएबल मैन्युफैक्चरिंग हब में से एक का निर्माण करेगा. रिलायंस न्यू एनर्जी, टाटा पावर सोलर, वारी एनर्जीज और विक्रम सोलर भी इसी राह पर चल रहे हैं. सेल और वेफर उत्पादन में भी इंटीग्रेशन कर रहे हैं.

अन्य कंपनियां भी विदेशी साझेदारियों का विस्तार कर रही हैं. वारी एनर्जीज अपनी विंड एनर्जी पोर्टफोलियो को बढ़ावा देने के लिए एनेल ग्रीन पावर इंडिया का 79,200 लाख रुपये में अधिग्रहण किया. एलएंडटी एनर्जी ग्रीनटेक, आईओसीएल की पानीपत रिफाइनरी में भारत का सबसे बड़ा ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट स्थापित कर रही है. रिन्यू एनर्जी ग्लोबल पीएलसी ने आंध्र प्रदेश में 2.8 गीगावाट की हाइब्रिड सोलर-विंड परियोजना के लिए 22,000 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता जताई है.

पुरानी गलतियों से सबक

भारत ने यह फिल्म पहले भी देखी है. 2000 के दशक में, स्टील उत्पादकों ने कमोडिटी बूम के दौरान अंधाधुंध विस्तार किया था, लेकिन ग्लोबल ओवर सप्लाई और कीमतों में गिरावट के कारण कुचल दिए गए. 2010 के दशक में टेलीकॉम कंपनियों ने एक भीषण प्राइस वॉर लड़ा, जिसमें आधी कंपनियां खत्म हो गईं.

अब सोलर एनर्जी सेक्टर उन्हीं गलतियों को दोहराने का जोखिम उठा रहा है. जब क्षमता मांग से आगे निकल जाती है, तो कीमतें गिर जाती हैं, मार्जिन गायब हो जाता है, और फिर कंसोलिडेशन होता है. उद्योग के अंदरूनी सूत्र पहले से ही विलय की संभावना के बारे में कानाफूसी कर रहे हैं.

सोलर इंडस्ट्रीज की असली परीक्षा

भारत के सौर ऊर्जा उद्योग की असली परीक्षा यह नहीं है कि वह कितना निर्माण कर सकता है, बल्कि यह है कि वह कितनी चतुराई से बिक्री कर सकता है, इनोवेशन कर सकता है और मुनाफा कमा सकता है. वो भी बिना सब्सिडी पर निर्भर हुए.

इस बीच, सरकार एक कठिन राह पर चल रही है. उसे 2030 तक 500 गीगावाट नॉन-फोजिल फ्यूल क्षमता के लक्ष्य को पूरा करने और भारत के जलवायु नेतृत्व को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स में उछाल इतनी अधिकता में न बदल जाए कि छोटी कंपनियां दिवालिया हो जाएं.

प्रोडक्शन और बाजार में संतुलन

जानकारों का कहना है कि भारत को अपने सोलर प्रोडक्शन को खपाने के लिए वैकल्पिक निर्यात बाजारों, जर्मनी, जापान, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में अपनी उपस्थिति का विस्तार करना होगा. प्राइस प्रतिस्पर्धा में सुधार करना होगा, साथ ही अपने बढ़ते मैन्युफैक्चरिंग बेस का लाभ उठाने के लिए मजबूत घरेलू मांग को भी बढ़ावा देना होगा.

रोशनी के खरीदार की तलाश

अगर भारत यह प्रोडक्शन और डिमांड के बीच संतुलन बनाने में सफल हो जाता है, तो फिर एक ग्लोबल सोलर एनर्जी हब के रूप में उभर सकता है. अगर ऐसा नहीं होता है, तो इसके रेगिस्तानों और छतों को ढंकने वाले चमचमाते काले पैनल एक और अति उत्साही औद्योगिक सपने का स्मारक बन सकते हैं. सवाल अब सिर्फ रोशनी का नहीं है, बल्कि नई रोशनी के खरीदार का है, जिसकी तलाश भारत के तेजी से उभरते उद्योग को है.

Latest Stories

LIC ने अडानी ग्रुप में निवेश पर दी सफाई, कहा निर्णय स्वतंत्र और ड्यू डिलिजेंस के तहत; ईमेज खराब करने की कोशिश

पैरासिटामोल से लेकर खांसी की दवा तक, CDSCO की रिपोर्ट में 112 दवाओं में पाया गया मानक का उल्लंघन

मुकेश अंबानी और जुकरबर्ग ने भारत में AI के लिए मिलाया हाथ; रिलायंस-मेटा के JV पर खर्च होंगे ₹855 करोड़

त्योहारों में बदला गोल्ड मार्केट का ट्रेंड, पुराने गहनों के एक्सचेंज से बढ़ी बिक्री, नई खरीदारी में आई कमी; जानें वजह

टैरिफ वार के बीच भी भारतीय इकोनॉमी रहेगी वर्ल्ड लीडर, 6.6 फीसदी रहेगी ग्रोथ रेट, चीन 4.8 फीसदी के साथ रहेगा पीछे- IMF

वैश्विक दबाव के बीच सोने में उतार-चढ़ाव जारी, दिल्ली में 24 कैरेट सोना ₹1.25 लाख के करीब; अंतरराष्ट्रीय बाजार में दिखी मंदी