अनिल अंबानी की कंपनी के पूर्व कर्मचारी की बड़ी जीत, पत्नी ने मांगा था गुजारा भत्ता, कोर्ट ने साफ कर दिया मना

यह भी रिकॉर्ड में लाया गया है कि प्रतिवादी (पति) इससे पहले 2017 तक रिलायंस कम्युनिकेशन में कार्यरत था. रिकॉर्ड से पता चलता है कि अपीलकर्ता (पत्नी) तीन दशकों से अपनी इच्छा से अलग रह रही है और इस लंबी अवधि के दौरान, उसे कभी भी अदालतों से कोई राहत या सहायता लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई

कोर्ट ने आरकॉम के पूर्व कर्मचारी के पक्ष में दिया फैसला. Image Credit: AI/ सांकेतिक तस्वीर

4 अगस्त 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट ने नई दिल्ली के एक प्रतिष्ठित माध्यमिक विद्यालय में वरिष्ठ शिक्षिका के रूप में कार्यरत एक पत्नी की 60,000 रुपये मासिक भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) की मांग को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि वह अपने पति से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती, क्योंकि यह साबित हो चुका है कि उसके पास आय का स्रोत है, जबकि उसके पति की आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक स्थिति स्पष्ट रूप से तनावपूर्ण थी. इसके अलावा दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि पत्नी ने यह भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) का मामला तभी दायर किया, जब उसे अपने अलग हुए पति की दूसरी शादी और उसकी संपत्ति की बिक्री के बारे में पता चला.

जांच में क्या पता चला?

रिकॉर्ड से पता चलता है कि अपीलकर्ता (पत्नी) तीन दशकों से अपनी इच्छा से अलग रह रही है और इस लंबी अवधि के दौरान, उसे कभी भी अदालतों से कोई राहत या सहायता लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई. वास्तव में, जैसा कि दलीलों से स्पष्ट है. ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता (पत्नी) ने पति की दूसरी शादी और संपत्ति की बिक्री से संबंधित लेन-देन की जानकारी मिलने पर यह कार्रवाई की है. दिल्ली हाई कोर्ट ने पत्नी के और भी झूठ उजागर किए.

कब क्या हुआ?

  • 22 मार्च, 1978: विवाह संपन्न हुआ.
  • 24 नवंबर, 1986: पहले बेटे का जन्म हुआ.
  • 11 मई, 1986: दूसरे बेटे का जन्म हुआ.
  • 1987: पत्नी अपने दो बेटों के साथ अपने पति से अलग रहने लगी.
  • 2003: दोनों ने तलाक के लिए ज्वाइंट याचिका दायर की.
  • जुलाई 2014: पत्नी अपनी स्कूल अध्यापन की नौकरी से रिटायर हुई.
  • 2017: पति अपनी नौकरी से रिटायर हुआ.
  • 24 फरवरी 2021: पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय में एक याचिका दायर की.
  • 8 फरवरी 2023: पारिवारिक न्यायालय ने धारा 24 के तहत पत्नी की 60,000 रुपये प्रति माह के अंतरिम भरण-पोषण और 1,00,000 रुपये के मुकदमेबाजी खर्च की अर्जी खारिज कर दी. इसके बाद पत्नी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील दायर की.

दोनों बेटों की इनकम

कोर्ट ने कहा कि यह रिकॉर्ड में दर्ज है कि अपीलकर्ता (पत्नी) के नाम पर मैच्योर एलआईसी पॉलिसियां हैं. अपीलकर्ता (पत्नी) अपने दो बेटों के साथ भी रह रही है और दोनों ही नौकरी करते प्रतीत होते हैं. हालांकि, वर्ष 2020 और 2021 के कुछ व्हाट्सएप चैट दिखाई देते हैं जहां एक बेटा पैसे मांग रहा था, अपीलकर्ता के आय हलफनामे से पता चलता है कि दोनों बेटों की स्वतंत्र आय है.

कोर्ट का फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता (पत्नी) का यह दावा कि वह अपने पूर्व छात्रों से मिले दान पर अपना जीवन यापन कर रही है, किसी भी साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं प्रतीत होता है. यह तथ्य कि विभिन्न राशियां असंबंधित व्यक्तियों द्वारा, बिना किसी आवश्यक प्रमाण के, जमा की गईं, किसी भी पक्ष के पक्ष में नहीं है. हालांकि, इससे हम स्पष्ट रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अपीलकर्ता (पत्नी) के पास आय का कोई न कोई स्रोत है जिससे वह अपना भरण-पोषण कर सकती है.

रिलायंस कम्युनिकेशन में काम करता था पति

यह भी रिकॉर्ड में लाया गया है कि प्रतिवादी (पति) इससे पहले 2017 तक रिलायंस कम्युनिकेशन में कार्यरत था. हालांकि, कंपनी के वित्तीय पतन और उसके बाद की दिवालियापन कार्यवाही के कारण, उसे पेंशन और फाइनल सेटलमेंट बकाया सहित सभी रिटायरमेंट बेनिफिट से वंचित कर दिया गया था.

आर्थिक संकट से गुजर रहा पति

इसके अतिरिक्त, जैसा कि प्रतिवादी (पति) द्वारा इस न्यायालय में दायर अपील के उत्तर से स्पष्ट है, यह सामने आता है कि प्रतिवादी को अपने जीवन-यापन के खर्चों को पूरा करने के लिए अपने भाई से 10,00,000 रुपये और एक मित्र से 13,00,000 रुपये की बड़ी रकम उधार लेनी पड़ी है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में, यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी की वित्तीय कमजोरी, उसकी बढ़ती उम्र और रिटायरमेंट के बाद के अधिकारों के नुकसान के कारण, उस पर कोई और वित्तीय दायित्व थोपने के खिलाफ है.

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