ये हैं भारत के सबसे बड़े खेल हादसे, RCB बेंगलुरू से भी भयानक था ईडन गार्डन का मातम
कोलकाता में 1980 के एक फुटबॉल मैच के दौरान दो बड़ी टीमों ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के फैंस आपस में भिड़ गए. इस भीड़ और भगदड़ में 16 लोगों की जान चली गई थी. ठीक वैसे ही, 2025 में बेंगलुरु में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की पहली आईपीएल जीत का जश्न मातम में बदल गई.

रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की पहली आईपीएल ट्रॉफी पर जश्न का माहौल कुछ ही घंटों में मातम में बदल गया. 18 साल के लंबे इंतजार के बाद टीम की जीत देखने को मिली. विराट कोहली और टीम के स्वागत के लिए हजारों लोग एमजी रोड, ब्रिगेड रोड, कंबन पार्क और विधान सौधा के पास उमड़ पड़े थे. लेकिन यह भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई, जिसमें 11 लोगों की जान चली गई. वैसे तो खेल आमतौर पर लोगों को जोड़ता है और जश्न का जरिया बनता है, लेकिन कभी-कभी यही खुशी मातम में बदल जाती है. यह पहली बार नहीं है जब खेल प्रेमियों की भीड़ एक हादसे का रूप ले चुकी है. ठीक ऐसी ही एक दिल दहला देने वाली घटना 45 साल पहले 16 अगस्त 1980 को कोलकाता के ईडन गार्डन्स में हुई थी. चलिए जानते हैं.
जब ईडन गार्डन्स में फैला मातम
16 अगस्त 1980 कोलकाता के ईडन गार्डन्स स्टेडियम में मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के बीच बहुप्रतीक्षित डर्बी मुकाबला खेला जा रहा था. करीब 70,000 दर्शकों की भीड़ जमा थी. मैच के दौरान मोहन बागान के विंगर बिदेश बसु को ईस्ट बंगाल के डिफेंडर दिलीप पालित ने खतरनाक टैकल में गिरा दिया. पालित पहले से ही अपने आक्रामक खेल के लिए कुख्यात थे.टैकल के बाद दोनों खिलाड़ियों में हाथापाई हुई. लेकिन रेफरी सुधींद्र चटर्जी हालात काबू में नहीं रख सके. दर्शकों में गुस्सा फूट पड़ा और देखते ही देखते स्टेडियम में पत्थरबाजी शुरू हो गई. अफरा-तफरी मच गई. पुलिस भी हालात संभाल नहीं सकी. लोग जान बचाने के लिए भागने लगे.

इस भगदड़ की भयावह तस्वीरें आज भी इतिहास में दर्ज हैं. एक तस्वीर में लोग स्टेडियम की दूसरी मंजिल से लटके हुए थे ताकि नीचे की भगदड़ से बच सकें. इस भयावह घटना में 16 खेल प्रेमियों की जान चली गई. उनकी उम्र 18 से 60 साल के बीच थी. उस समय शवों को अस्पताल पहुंचाने के लिए शव वाहन भी नहीं थे. मैटाडोर में शव ले जाए गए. इस दर्दनाक घटना की याद में आज भी कोलकाता में 16 अगस्त को ‘फुटबॉल लवर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है. हालांकि उस समय कोलकाता, जिसे ‘सिटी ऑफ जॉय’ कहा जाता है, उसकी छवि पर गहरी चोट पहुंची थी.
खेल और प्रशासन की चूक
ऐसे हादसे केवल भीड़ की वजह से नहीं होते, बल्कि प्रशासन की चूक भी उतनी ही जिम्मेदार होती है. साल 2012 में कोलकाता डर्बी के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जब मोहन बागान के रहीम नबी को विपक्षी टीम से एक पत्थर माथे पर लगा. जिसके बाद मैच रद्द करना पड़ा. बाद में ईस्टर्न मेट्रोपॉलिटन बायपास पर हिंसा में करीब 40 लोग घायल हो गए. पुलिसकर्मी भी इसमें घायल हुए. वहीं साल 1969 में भी भीड़ हिंसक हुई थी. मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम और कोलकाता के ईडन गार्डन्स में अंपायरिंग से नाखुश दर्शकों ने स्टेडियम में आग लगा दी थी. हालांकि तब कोई जान नहीं गई थी.
नकली टिकट के कारण भगदड़
एक और बड़ा कारण टिकट घोटाला भी रहा है. जिसे1980 के हादसे में बताया गया कि क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने स्टेडियम की क्षमता से कहीं अधिक नकली टिकट जारी कर दिए थे. इससे स्टेडियम में 20,000 से ज्यादा लोग कैपिसिटी से अधिक पहुंच गए. जिससे भगदड़ की स्थिति बनी और हालात बेकाबू हो गए.
ऐसी ही दूसरी खेल त्रासदियां
भारत ही नहीं, दुनिया में भी खेल आयोजनों के दौरान कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जब जश्न के बीच मातम पसर गया. इसमें,
- हिल्सबरो आपदा (1989): इंग्लैंड के हिल्सबरो स्टेडियम में एफए कप सेमीफाइनल के दौरान भगदड़ में 97 लोगों की मौत हो गई थी.
- हेयसेल स्टेडियम हादसा (1985): ब्रुसेल्स में लिवरपूल और युवेंटस के बीच मैच के दौरान स्टेडियम की दीवार गिरने से 39 लोगों की मौत हो गई थी.
- लीमा स्टेडियम दंगा (1964): अर्जेंटीना और पेरू के बीच ओलंपिक क्वालीफायर के दौरान भड़की हिंसा में 300 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और करीब 1,000 घायल हुए थे.
- लुज्निकी स्टेडियम हादसा (1982):मास्को में एक यूईएफए कप मैच के दौरान भगदड़ में 66 किशोर मारे गए थे.
- हाउफुएट-बोइनी स्टांपेड (2009): कोट डीवॉयर और मलावी के बीच वर्ल्ड कप क्वालीफायर के दौरान 19 लोगों की मौत और 135 घायल हो गए थे.
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