मनरेगा में 60:40 क्या खत्म कर देगी रोजगार गारंटी! जानें क्यों उठे सवाल और सरकार के दावे में कितना दम

2009 के आम चुनावों में यूपीए-2 की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह नरेगा बन गया था. शुरुआत में मोदी सरकार इसे यूपीए की असफलता का स्मारक कहती थी. लेकिन करीब 20 साल अब योजना को नए कलेवर में पेश किया जा रहा है.

मनरेगा में बदलाव का क्यों हो रहा विरोध Image Credit: Money9live

MGNREGA vs VB-G RAM G Bill: हर हाथ को काम दो,काम का पूरा दाम दो , 20 साल पहले इसी नारे के साथ देश में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम-2005 लागू किया गया था. इस कानून से आजाद भारत के इतिहास में पहली बार देश के आम आदमी को 100 दिन की रोजगार गारंटी मिल रही थी. उस वक्त गठबंधन सरकार का दौर था और कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार में भी इस योजना को लेकर दो विचार थे. एक तरफ कांग्रेस पार्टी के अर्थशास्त्री राजनेता इसे वित्तीय बोझ मान रहे थे तो दूसरे तरह उनके गठबंधन के सहयोगी राजद नेता और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह (नरेगा के शिल्पकार) इसे गेमचेंजर मान रहे थे. लेकिन 2009 के आम चुनावों के नतीजों ने इस दुविधा को खत्म कर दिया और यूपीए-2 की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह नरेगा बन गया.

परिणामों से उत्साहित मनमोहन सिंह सरकार ने 2 अक्टूबर 2009 को नरेगा का नाम बदलकर मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम ) कर दिया. योजना के जरिए देश के उस गरीब तबके को काम का अधिकार मिला, जो उसे एक साल में 100 दिन काम की गारंटी देता है. साथ ही यह योजना अपने आप में इसलिए खास है कि इसमें मांग के आधार पर काम मिलता था. यानी एक अकुशल श्रमिक काम की मांग कर सकता था. साथ ही 15 दिनों के अंदर काम नहीं मिलने पर बेरोगारी भत्ता मिलने की सुरक्षा भी मिली. इसके अलावा काम में 33 फीसदी भागीदारी महिलाओं की अनिवार्य कर दी गई. इस सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का ही असर था कि न केवल ग्रामीण इलाके में लोगों की जीवनशैली बदली बल्कि 2008-09 के वैश्विक आर्थिक संकट और कोविड-19 के संकट के समय में भी योजना के जरिए शहरों से पलायन कर चुके श्रमिकों को अपने घर यानी गांव में रोजगार की गारंटी मिलती रही.

मोदी सरकार अब मनरेगा में बदलाव करने के लिए नया कानून ‘विकसित भारत—रोज़गार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी VB-G RAM G बिल, 2025 लेकर आई है. जिसमें उसने 100 दिन की गारंटी की जगह 125 दिन काम की गारंटी देने का प्रावधान किया है. इसके अलावा नए बिल में केंद्र और राज्यों के फंडिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव किया है. साथ ही फसलों की बुआई-कटाई के समय जब खेती के लिए श्रमिकों की जरूरत होगी उस दौरान 60 दिन के लिए योजना को रोकने का भी प्रावधान किया गया है. सरकार का दावा है कि मनरेगा गरीबी को कम करने के मकसद से चलाई गई थी लेकिन अब राज्यों में गरीबी का स्तर बहुत घट गया है इसलिए अब इसे विकसित भारत के उद्देश्य के साथ चलाया जाएगा.

मनरेगा की मौजूदा स्थितिसंख्या
कुल जिलों 741
जारी किए गए कुल जॉब कार्ड (करोड़ में)15.52
कुल श्रमिकों की संख्या (करोड़ में)26.58
सक्रिय जॉब कार्डों की संख्या (करोड़ में)8.61
सक्रिय श्रमिकों की संख्या (करोड़ में)12.16

इन 4 बदलावों से खत्म हो जाएगी रोजगार गारंटी-सामाजिक कार्यकर्ता

मोदी सरकार इस योजना में अपने कार्यकाल के करीब 11 साल बाद अहम बदलाव कर रही है. क्योंकि इसी योजना को लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल 2015 में कह चुके हैं कि मनरेगा यूपीए सरकार की नाकामियों का स्मारक है. ऐसे में एनडीए सरकार इस योजना को लेकर शुरू से ही इसकी कमियों को गिनाती रही है और अब इसमें बदलाव करने जा रही है. लेकिन उसके बदलावों पर विरोध के स्वर उठने लगे हैं. नरेगा जैसी योजना की शुरूआत से वकालत करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा रॉय और निखिल डे ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख में नए बदलावों पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि नए बदलावों को अमल में लाने का मतलब है कि रोजगार की गारंटी खत्म हो जाएगी. नई योजना का हश्र भी वैसा ही होगा जैसा कि मनरेगा से पहले चलाई जा रही रोजगार देने वाली योजनाओं का हुआ करता था. उनका तर्क है कि मनरेगा का मूल तत्व मांग आधारित काम था लेकिन नए कानून के प्रावधान ऐसे हैं कि इसमें केंद्र के पास असीमित अधिकार होंगे और राज्य उन पर पूरी तरह निर्भर होंगे.

उनका तर्क है कि बिल की धारा 4(5) कहती है कि केंद्र सरकार प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए राज्य-वार मानक आवंटन उन तय मानकों के आधार पर निर्धारित करेगी, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा. ऐसे में मनरेगा एक आवंटन-आधारित योजना में बदल जाएगी, जिसमें केंद्र सरकार और उसकी नौकरशाही को आवंटन की मात्रा तय करने और बदलने की पूरी छूट होगी.

100 दिन नहीं मिल रहा रोजगार (टेबल में देखें)

औसत दिन2025-20262024-20252023-20242022-20232021-20222020-2021
प्रति परिवार को कितने दिन मिला औसत रोजगार35.7450.2452.0847.8350.0751.52

इसी तरह धारा 5(1)से योजना केवल उन्हीं क्षेत्रों में लागू होगी, जिन्हें केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी. इसी तरह धारा 4(6) कहती है कि यदि राज्य सरकारें ग्रामीण बेरोजगारी और संकट कम करने के लिए अपने संसाधनों से कोई अधिक व्यापक और मजबूत रोजगार योजना चलाना चाहें, तो उनके द्वारा खर्च की गई हर राशि भी केंद्र द्वारा तय मानकों के अधीन होगी. इसके अलावा किसी राज्य द्वारा अपने मानक आवंटन से अधिक किया गया कोई भी खर्च, उस प्रकार और उस प्रक्रिया के अनुसार राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा. यानी राज्यों का पैसा भी केंद्र के नियमों के अनुसार खर्च होगा.

वही धारा 22(2)में कहा गया है कि योजना के खर्च के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच साझेदारी का अनुपात 60:40 होगा.इसमें पूर्वोत्तर राज्यों, पहाड़ी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए यह अनुपात 90:10 होगा. जबकि पहले मनरेगा की धारा 22 के तहत, श्रम लागत का 100 प्रतिशत और निर्माण लागत का 75 प्रतिशत केंद्र सरकार वहन करती थी. यानी कुल खर्च का कम से कम 90 प्रतिशत केंद्र देता था. इसके अलावा बेरोजगारी भत्ता तथा मज़दूरी भुगतान में देरी के मुआवज़े की जिम्मेदारी भी केंद्र सरकार के ऊपर थी.

राशि करोड़ में2025-20262024-20252023-20242022-20232021-20222020-2021
केंद्रीय द्वारा जारी राशि 68,806.9685,640.5588,217.2988,290.4396,812.251,09,810.68
कुल उपलब्ध राशि75,551.5396,222.861,02,324.681,04,430.821,07,968.481,18,887.86

सरकार का क्या है तर्क

नए बदलावों पर सबसे ज्यादा विरोध फंड आवंटन के तरीकों पर है. जिसमें योजना के खर्च के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच साझेदारी का अनुपात 60:40 करने का प्रावधान है. लेकिन इसके पीछे सरकार का तर्क है कि पहले भी निर्माण सामग्री और प्रशासनिक लागत राज्यों के हिस्से में थी. पहले से तय फंडिंग से बजट बनाना आसान होगा. आपदाओं के दौरान अतिरिक्त सहायता दी जा सकेगी और बेहतर निगरानी से लंबी अवधि के नुकसान घटेंगे.

इसी तरह योजना में मांग-आधारित से मानक (नॉर्मेटिव) फंडिंग में बदलाव की बात कही गई है. सरकार का दावा है कि सरकार की अधिकांश योजनाओं में नॉर्मेटिव फंडिंग का यूज किया जा सकता है. इससे मांग-आधारित फंडिंग में देखी जाने वाली अनिश्चित आवंटन की समस्या नहीं होती है. इसके अलावा ऑब्जेक्टिव स्टैण्डर्ड बनाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा उसका दावा है कि पात्र श्रमिकों को काम या बेरोजगारी भत्ते की 125 दिन की गारंटी भी मिलेगी.

सरकार का तर्क है कि VB-G RaM G में चार स्पष्ट और परिभाषित क्षेत्रों पर काम को केंद्रित किया गया है. इससे जल सुरक्षा, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर, आजीविका और जलवायु अनुकूलन को समर्थन देने वाले टिकाऊ एसेट का निर्माण होगा. इसी तरह डिजिटल उपस्थिति और पेमेंट से लीकेज पर नियंत्रण होगा. बुवाई और कटाई के दौरान श्रमिकों की किल्लत ना हो इसके लिए राज्यों को 60 दिनों तक सार्वजनिक कार्यों को रोकने का अधिकार मिलेगा. इसका फायदा यह भी होगा कि श्रमिकों की उपलब्धता रहने से मजदूरी रेट नहीं बढ़ेंगे और खेती की लागत में भी इजाफा नहीं होगा.

नई स्कीम के पक्ष और विपक्ष के तर्क को देखा जाय तो स्थिति अभी अस्पष्ट है. क्योंकि एक तरफ सरकार यह कह रही है कि मनरेगा गरीबी को कम करने के मकसद से चलाई जा रही थी लेकिन राज्यों में गरीबी का स्तर बहुत कम हो गया है. इसलिए अब इस योजना को नये कलेवर के साथ लाने की जरूरत है. जबकि विरोध करने वालों का कहना है कि नए प्रावधान रोजगार के गारंटी के अधिकार को कम करेंगे. ऐसे में योजना के फाइनल कलेवर में लागू होने का इंतजार करिए.

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