NiMo Magic: नीतीश को रिटर्न गिफ्ट, मोदी को रिफॉर्म गिफ्ट, बिहार ने बदल दिया राजनीतिक मिजाज
बिहार नतीजे के बाद विपक्ष यह सोचने पर मजबूर होगा कि उसकी कांग्रेस के साथ आने वाले विधानसभा चुनावों में रणनीति क्या होनी चाहिए? इसके अलावा कांग्रेस को अंदरूनी विरोधों का भी सामना करना पड़ेगा. ऐसे में राजनीति का मिजाज बदलना तय है.
Nitish Kumar Landslide Victory In Bihar Assembly Election: शॉकिंग..जी हां बिहार विधानसभा चुनाव ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को ही नहीं भाजपा-जद (यू) की अगुआई वाले एनडीए को भी अनुमानों से बेहद अलग नतीजे दिए है. ना तो तेजस्वी यादव ने सोचा होगा कि उनका गठबंधन हारने की स्थिति में 50 सीटों से भी नीचे सिमट जाएगा. ना ही एनडीए बेहद आशावाद में 200 प्लस की उम्मीदें लगाए बैठा थे. खुद भाजपा नेता और गृह मंत्री अमित शाह भी एनडीए के 160 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे. तो फिर ये नतीजे क्या हैं?
ये नतीजे उस नीतीश कुमार को रिटर्न गिफ्ट है, जिसे कुछ महीने पहले बीमार और मानसिक रुप से सामान्य ना होने वाला मुख्यमंत्री कहा जा रहा था. विपक्ष का सीधा आरोप था कि नीतीश अब मुख्यमंत्री पद के लायक नहीं है. लेकिन उनके आलोचक यह भूल गए थे कि अपने 20 साल के कार्यकाल में सुशासन बाबू ने एक ऐसा वोट बैंक तैयार कर लिया है जो जाति से परे हैं. वह वोट देते वक्त केवल यही जानता है कि उसके सुख-दु:ख के साथी नीतीश कुमार ही है.
यही कारण है कि जो नीतीश कुमार 2020 के नतीजों के बाद कम सीटों के साथ कमजोर हो गए थे, उन्होंने 2025 में अपनी सीटों की संख्या करीब-करीब डबल कर दी है. इन नतीजों ने एक चीजों और साफ कर दी है कि अगर चुनाव एकजुट होकर और बेहतर मैनेजमेंट से लड़ा जाए तो स्ट्राइक रेट भाजपा जैसा भी हो सकता है. जो 101 सीटों पर चुनाव लड़कर 90 से ज्यादा सीटें जीत सकती है. इसमें भाजपा की जातिगत आधार पर बनाए गए गठबंधन की वो रणनीति काम कर गई, जिसमें हर छोटे से छोटे दल को अहमियत दी गई.
इसी वजह से चिराग पासवान की लोजपा (आरवी), जीतन राम मांझी की हम (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम ने भी स्ट्राइक रेट में ऐसा कमाल किया कि भाजपा आज इस स्थिति में आ गई है कि वह बिना जद (यू) के भी सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है. लेकिन भाजपा शायद इस गुमान में नहीं रहेगी और नीतीश कुमार की अगुआई में ही आगे बढ़ेगी. क्योंकि उसे पता है कि आज जो नतीजे आए हैं, उसकी कहानी नीतीश कुमार ने बहुत पहले लिख दी थी. इसी वजह से मोदी और नीतीश की जोड़ी ने साल 2010 के विधान सभा चुनाव का कमाल दोहरा दिया है. उस वक्त भी एनडीए 200 पार कर गया था.
नीतीश ने 20 साल में ऐसे गढ़ा वोट, इसलिए मिला रिटर्न गिफ्ट
बिहार में अभी भी 70-80 फीसदी वोटर को लालू प्रसाद यादव का जंगलराज याद है. जब शाम को 6 बजते-बजते लोग अपने घरों की ओर ऐसे भागते थे, जैसे कि अगर वह घर नहीं पहुंचे तो शायद उनकी जिंदगी की वह आखिरी शाम होगी. शहरों से लेकर गांवों तक ऐसा हाल था. नीतीश ने 2005 में आने के बाद जनता के मन से उस भय को खत्म किया.
इसी तरह आज भले ही शराबबंदी की कमियों की आलोचना हो लेकिन 4 करोड़ महिलाओं की उस असुरक्षा से निजात दिलाई है. जब उन्हें ना केवल घर में घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता था. बल्कि सड़कों पर चलने में यह डर सताता था कि कोई शराबी उनके साथ कही भी छेड़छाड़ कर सकता है. नीतीश ने महिलाओं के अंदर उस असुरक्षा की भावना को करीब-करीब खत्म कर दिया है.
इसके अलावा जो बिहार अपनी टूटी-फूटी सड़कों के लिए पूरी दुनिया में बदनाम था, उसकी तस्वीर भी पिछले 20 साल में बदली है. गांव-गांव तक सड़कों का जाल है. शहरों में फ्लाईओवर से लेकर स्मार्टसिटी मिशन का असर दिख रहा है. साथ ही बिहार में एक्सप्रेस वे और एयरपोर्ट भी जमीन पर दिखने लगे हैं, जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर बदल गया है और लोगों का जीवन आसान हुआ है.
इन बुनियादी बदलावों के अलावा नीतीश सरकार ने महिलाओं को एक नए वोटर में बदल दिया है. जिसने धर्म और जाति के बंधन को तोड़ दिया है. इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि संख्या के मामले में महिलाओं (2.51 करोड़) ने पुरुषों (2.47 करोड़) को पीछे छोड़ दिया है. यह राजद, कांग्रेस के ऐतिहासिक खराब प्रदर्शन से भी साबित हो जाता है. एनडीए सीमांचल यानी मुस्लिम बहुल इलाकों में भी 7-8 सीटों पर आगे हैं.
और यह महिला वोटर अगर नीतीश के साथ इतनी मजबूत से खड़ा है तो उसे केवल दस हजरिया स्कीम का केवल प्रभाव नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि बिहार में जब कोई बच्ची 10 वीं पास करती है तो उसे 10 हजार, 12 वीं पास करने पर 12 हजार और ग्रैजुएशन पास करने पर 50 हजार रुपये मिलते हैं. इसके अलावा नीतीश कुमार की साइकिल की स्कीम तो नई क्रांति की प्रतीक बन चुकी है. जिसमें 2022-23 तक 77.82 लाख लड़कियों और 74.13 लाख लड़कों को पढ़ाई के लिए साइकिल दी जा चुकी है. इसी तरह छात्रों को क्रेडिट कार्ड के रुप में 4 लाख रुपये तक एजुकेशन लोन इंटरेस्ट फ्री मिलता है.
इन 20 साल में नीतीश कुमार के लिए एक ऐसा लाभार्थी वोट बैंक बन चुका है जिसने बचपन से लेकर युवा होने तक इन सभी योजनाओं का लाभ उठाया है. ऐसे में अगर नीतीश कुमार की छवि पर सवाल उठते हैं तो वह सामने आ खड़ा होता है. इसी चुनाव में एक दिल्ली में अधिकारी के रुप में काम कर रहे बिहार के वोटर ने लेखक को बताया कि जब उन्होंने अपने पिता जी से कहा कि इस बार नीतीश को छोड़ते हैं कि वह बूढ़े हो चुके हैं तो उनके पिता ने तपाक से डांटते हुए बोला कि नीतीश ने बिहार के लिए बहुत कुछ किया है अब उसका रिटर्न गिफ्ट देने का समय है. बुजुर्ग पिता की डांट में नीतीश की जीत का राज छिपा है कि इस बार नीतीश को रिटर्न गिफ्ट मिला है.
मोदी को रिफॉर्म गिफ्ट
अब बात भाजपा के नंबर वन पार्टी बनने की करते हैं.. एनडीए की आंधी में भाजपा ने जैसा स्ट्राइक रेट दिखाया है, उससे लोग यही पूछ रहे हैं कि वह 10 अनलकी उम्मीदवार कौन है जो नहीं जीत पाए. नहीं तो भाजपा से जो भी चुनाव लड़ा वह जीत गया. भाजपा की इस बंपर जीत में नीतीश फैक्टर के साथ मोदी फैक्टर भी शामिल है क्योंकि जिस तरह नीतीश ने बिहार अपना खास वोट बैंक क्रिएट किया है, वैसा ही वोट बैंक नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में तैयार किया है जो लाभार्थी कहलाता है. उसे राशन फ्री से लेकर घर, इलाज और शौचालय की सुविधा पिछले 11 साल से लगातार मिलती आ रही है.
उसे बिहार में यह अहसास हो गया कि बहुत दिनों बाद नीतीश और मोदी की जोड़ी पूरे रंग में काम कर रही है क्योंकि पिछले 20 साल में नीतीश के मोदी से रिश्ते बीते 2-3 साल में सबसे अच्छे रहे हैं. तो उसका फायदा वोटर को उठाना चाहिए. वोटर को लगता है कि चूंकि मोदी को केंद्र में नीतीश के समर्थन की जरूरत है ऐसे में उसकी बारगेनिंग पावर अच्छी है. ऐसे में बिहार में काम जमीन पर दिखेगा.
बिहार नतीजों से साफ हो गया कि नीतीश की जद (यू) के साथ मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा भी राज्य में मजबूत हुई है. इसका सीधा फायदा केंद्र सरकार के फैसलों में दिख सकता है. यानी मोदी सरकार अब कहीं बड़े आर्थिक सुधार कर सकती है. जिसमें भूमि सुधार, कृषिगत सुधार, श्रम सुधार से लेकर बैंक मर्जर सहित कई साहसिक फैसले लिए जा सकते हैं. जिससे भारत में इकोनॉमिक रिफॉर्म के अगले चरण की शुरूआत हो सके.
विपक्ष में कांग्रेस होगी कमजोर, दिखेंगे नए समीकरण
बिहार चुनाव के नतीजों से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होने वाला है. क्योंकि जिस तरह से वह दहाई अंकों में भी नहीं पहुंच पाई है. उससे साफ है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी का वोट चोरी का नारा फुस्स हो गया है. यही नहीं अंदरूनी कहानी तो यह भी है कि खुद कांग्रेस के लोग ऐन वक्त अखिलेश प्रसाद सिंह को अध्यक्ष पद से हटाए जाने और कृष्णा अल्लावरु को प्रभारी बनाए जाने से नाराज थे. कांग्रेस का मिस मैनेजमेंट ऐसा था कि उसके 3 उम्मीदवारों का नामांकन भी रद्द हो गया. जिस मोल-भाव की वजह से वह तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं घोषित कर रही थी. उसका भी सीट बंटवारे में असर नहीं दिखा. उल्टे राजद और तेजस्वी को इसका स्पष्ट रुप से नुकसान चुनावों में दिख रहा है.
बिहार नतीजे के बाद विपक्ष यह सोचने पर मजबूर होगा कि उसकी कांग्रेस के साथ, आगे विधानसभा चुनावों की रणनीति क्या होगी? क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों के उत्साहित नतीजों के बाद कांग्रेस के साथ खड़े राजनीतिक दलों को महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और बिहार में बुरी हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में इन झटकों का असर बंगाल, यूपी सहित दूसरे विधानसभा चुनावों पर दिख सकता है. इसके अलावा कांग्रेस को अंदरूनी विरोधों का भी सामना करना पड़ेगा. इसका सबसे पहला असर कर्नाटक सरकार पर दिख सकता है. उसके उलट भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का कुनबा मजबूत होता दिखेगा. साथ ही बिहार को तेजस्वी के बाद नए रूप में युवा चिराग पासवान मिलेगा.ऐसे में राजनीति का मिजाज बदलना तय है. इसमें फ्यूचर का बिहार भी शामिल होगा.