उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से हटा ‘बीमारू’ राज्य का टैग, पश्चिम बंगाल को मिला सबसे अधिक अनुदान

कंट्रोलर ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन दोनों राज्यों ने पिछले दशक में अपने खर्च से अधिक रेवेन्यू अर्जित किया है. कुल मिलाकर 16 राज्यों का रेवेन्यू कुल खर्च से ज्यादा पाया गया और इसमें उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है.

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने अपनी राज्य वित्तीय स्थिति में बड़ा बदलाव किया. Image Credit: Comptroller and Auditor General of India

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने अपनी राज्य वित्तीय स्थिति में बड़ा बदलाव किया है और लंबे समय से उन पर लगा ‘बीमारू’ का ठप्पा अब हट गया है. कंट्रोलर ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन दोनों राज्यों ने पिछले दशक में अपने खर्च से अधिक रेवेन्यू अर्जित किया है. राज्यों के वित्त पर अब तक का पहली 10-वर्षीय स्टडी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इन दोनों राज्यों के बेहतर राजकोषीय प्रबंधन और बढ़ती आर्थिक मजबूती को दर्शाती है.

बीमारू राज्य का टैग हटा

कुल मिलाकर 16 राज्यों का रेवेन्यू कुल खर्च से ज्यादा पाया गया और इसमें उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है. अक्सर ‘बीमारू’ कहे जाने वाले इस राज्य ने 2023 में 37,000 करोड़ रुपये का सरप्लस दिखाया. इसी ‘बीमारू कैटेगरी का एक और राज्य, मध्य प्रदेश भी अब रेवेन्यू सरप्लस वाले 16 राज्यों में शामिल है.

रेवेन्यू सरप्लस वाले राज्य

उत्तर प्रदेश के बाद, गुजरात ने 19,865 करोड़ रुपये, ओडिशा ने 19,456 करोड़ रुपये, झारखंड ने 13,564 करोड़ रुपये, कर्नाटक ने 13,496 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ ने 8,592 करोड़ रुपये, तेलंगाना ने 5,944 करोड़ रुपये, उत्तराखंड ने 5,310 करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश ने 4,091 करोड़ रुपये और गोवा ने 2,399 करोड़ रुपये का सरप्लस दिखाया. अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम भी रेवेन्यू सरप्लस वाले राज्यों की सूची में हैं.

रेवेन्यू लॉस वाले राज्य

CAG की रिपोर्ट से पता चला है कि 2022-23 में कम से कम 12 राज्यों ने राजस्व घाटा दर्ज किया. ये राज्य थे – आंध्र प्रदेश (-43,488 करोड़ रुपये), तमिलनाडु (-36,215 करोड़ रुपये), राजस्थान (-31,491 करोड़ रुपये), पश्चिम बंगाल (-27,295 करोड़ रुपये), पंजाब (-26,045 करोड़ रुपये), हरियाणा (-17,212 करोड़ रुपये), असम (-12,072 करोड़ रुपये), बिहार (-11,288 करोड़ रुपये), हिमाचल प्रदेश (-6,336 करोड़ रुपये), केरल (-9,226 करोड़ रुपये), महाराष्ट्र (-1,936 करोड़ रुपये) और मेघालय (-44 करोड़ रुपये).

राज्यराजस्व व्यय बनाम राजस्व प्राप्ति (%)
आंध्र प्रदेश27.56
अरुणाचल प्रदेश-23.67
असम13.45
बिहार6.54
छत्तीसगढ़-9.54
गोवा-13.59
गुजरात-7.41
हरियाणा19.30
हिमाचल प्रदेश16.63
झारखंड-9.35
कर्नाटक6.95
केरल0.48
मध्य प्रदेश-0.30
महाराष्ट्र29.73
मणिपुर-16.15
मेघालय14.86
मिजोरम-8.72
नागालैंड-15.26
ओडिशा-19.35
पंजाब-5.74
राजस्थान-11.16
सिक्किम-7.25
तमिलनाडु16.15
तेलंगाना-6.58
त्रिपुरा-8.14
उत्तर प्रदेश-12.70
उत्तराखंड-15.86
पश्चिम बंगाल13.96

किन राज्यों को मिला अनुदान

राजस्व घाटे से जूझ रहे कुछ राज्य केंद्र से मिलने वाले राजस्व घाटा अनुदान पर निर्भर हैं. इनमें पश्चिम बंगाल, केरल, हिमाचल प्रदेश और पंजाब शामिल हैं. कैग की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में पश्चिम बंगाल को अनुदान का सबसे अधिक हिस्सा 16% दिया गया ताकि वह अपने राजस्व और खर्च के बीच के अंतर को पाट सके. केरल को 15%, आंध्र प्रदेश को 12%, हिमाचल प्रदेश को 11% और पंजाब को 10% अनुदान मिला.

किन राज्यों ने खुद के इनकम सोर्स जेनरेट किए

इस बीच, कुछ राज्य टैक्स और अन्य रेवेन्यू, दोनों से अपनी आय के स्रोतों को बढ़ाने में सक्षम रहे हैं. हरियाणा इस सूची में सबसे आगे है, जहां उसके कुल राजस्व का 80% से अधिक उसके अपने संसाधनों (केंद्रीय करों और अनुदानों को छोड़कर) से आता है. तेलंगाना 79% से अधिक के साथ दूसरे स्थान पर है, फिर महाराष्ट्र 73%, गुजरात 72%, कर्नाटक और तमिलनाडु 69-69%, और गोवा 68% के साथ तीसरे स्थान पर है.

सीएजी ने कहा, ‘2022-23 में, छह राज्यों- हरियाणा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात और तमिलनाडु का राज्य का अपना टैक्स रेवेन्यू (SOTR) उनकी कुल राजस्व प्राप्तियों के 60% से अधिक था. अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा का एसओटीआर 20% से कम था.’

राज्यों के कुल राजस्व का लगभग 27% केंद्रीय करों और अनुदान सहायता से आया, और लगभग 17% केंद्रीय सहायता से आया, जिसमें वित्त आयोग के अनुदान भी शामिल हैं. कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर, राज्यों को वित्त आयोग से 1,72,849 करोड़ रुपये का अनुदान मिला, जिसमें से 86,201 करोड़ रुपये राजस्व घाटा अनुदान के रूप में दिए गए.

कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल की स्वयं की रेवेन्यू प्राप्तियां 60%-70% के बीच हैं. आंध्र प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ की 50% से 60% के बीच. झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड के लिए यह 40% से 50% के बीच है.

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