सिंधु नहीं है ब्रह्मपुत्र, जो चीन दिखा पाए घुड़की, जानें कितनी लंबी और क्यों 100 बार सोचेगा ड्रैगन
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को सस्पेंड करने के बाद पाकिस्तान की ओर से यह आशंका जताई गई कि चीन, ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोककर भारत को जवाब दे सकता है. लेकिन यह दावा भ्रामक है. ब्रह्मपुत्र एक ऐसी नदी है जो भारत में और ताकतवर होती है. इसकी कुल लंबाई लगभग 2,900 किमी है और 70 फीसदी से अधिक जल प्रवाह भारत और भूटान से आता है. इस पूरे मामले को विस्तार से समझें.

Brahmaputra River and Indus Treaty like threat by Pakistan: भारत द्वारा सिंधु नदी जल संधि सस्पेंड करने से पाकिस्तान बौखला गया है. ऐसे में वह चीन के भरोसे भारत को घुड़की देने की कोशिश कर रहा है. पाकिस्तान जल संकट को लेकर भारत को डराने की कोशिश कर रहा है. उसका कहना है कि अगर भारत सिंधु समझौते को बहाल नहीं करता है, तो चीन भी ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भारत को रोक देगा. हालांकि हमेशा से नादान पाकिस्तान इस बात को समझ नहीं पा रहा है कि ब्रह्मपुत्र कोई सिंधु नदी जैसी नहीं है, जिस पर चीन को नापाक हरकत पाए. बल्कि ऐसी हिमाकत करने से पहले उसे 100 बार सोचना होगा. आइए जानते हैं कि ऐसा हम क्यों कर रहे हैं और ब्रह्मपुत्र क्यों सिंधु नदी जैसी नहीं है…
ब्रह्मपुत्र की लंबाई और ताकत
दरअसल, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के विशेष सलाहकार ने दावा किया है कि अगर भारत सिंधु समझौते को बहाल नहीं करता, तो चीन ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोककर भारत को सबक सिखा सकता है. इस बयान के बाद से ही सिंधु और ब्रह्मपुत्र की बात ने तूल पकड़ ली है. खैर, असल मुद्दे में जाने से पहले ये जान लेना अहम है कि जिस नदी की हम बात कर रहे हैं, असल में वह कितना ताकतवर है. ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लंबाई लगभग 2,900 किलोमीटर है. हालांकि भारत में ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लंबाई 916 किमी है. ये गंगा (2525 किमी) के बाद भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है.
यह तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो के रूप में जन्म लेती है और अरुणाचल प्रदेश के पास भारत में प्रवेश करती है. इसके बाद असम से होते हुए बांग्लादेश में जमुना बनकर पद्मा नदी में मिल जाती है. इस बीच अरुणाचल प्रदेश में इसे सियांग या दिहांग के नाम से जाना जाता है. इस नदी की खास बात ये है कि जैसे-जैसे यह भारत में आगे बढ़ती है, इसकी ताकत भी बढ़ती है. असम और अरुणाचल प्रदेश में भारी मानसून के कारण यह नदी कई गुना ताकतवर हो जाती है. यानी ब्रह्मपुत्र कोई ऐसी नदी नहीं है जो केवल चीन से बहती हो और भारत उस पर निर्भर हो. इसकी असली ऊर्जा भारत में उत्पन्न होती है.
भारत में बढ़ती नदी, चीन की सीमित हिस्सेदारी
इस नदी का तिब्बती हिस्सा पूरे बहाव का केवल 30 प्रतिशत हिस्सा बनाता है. इसका मतलब यह हुआ कि नदी के लगभग दो-तिहाई हिस्से का पानी भारत और भूटान में आने वाले सहायक नदियों और मानसून के कारण बनता है. भारत के पूर्वोत्तर राज्य जैसे असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मेघालय में मानसून के दौरान भारी बारिश होती है, जिससे ब्रह्मपुत्र का बहाव कई गुना बढ़ जाता है. गुवाहाटी में मानसून के मौसम में नदी का प्रवाह 15,000 से 20,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड तक पहुंच जाता है, जबकि तिब्बत में यह मात्र 2,000 से 3,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड होता है.
यानी पाकिस्तान जिस चीन की शक्ति का अंदाजा भारत को डराने के लिए लगा रहा है उसमें बिल्कुल दम नहीं है. असल में चीन का सहयोग ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर इतना है ही नहीं जितने को लेकर वह डर का माहौल बना रहा है. भारत में बड़ी सहायक नदियां जैसे सियांग, डिबांग, लोहित, सुबनसिरी, मानस, धंसिरी, जिया-भराली और कोपिली नदी ब्रह्मपुत्र की ताकत बढ़ाती है. इसके अलावा भूटान भी लगभग 21 प्रतिशत जल बहाव में योगदान देता है.
चीन की जल शक्ति और सीमाएं
चीन की जल शक्ति तिब्बती पठार की जियोग्राफिकल पॉइन्ट और मौसम की वजह से काफी सीमित है. तिब्बत एक ऊंचाई वाला, ठंडा और सूखा क्षेत्र है जहां हर साल औसत बारिश मात्र 300-400 मिमी होती है. इस क्षेत्र में नदियों का पानी मुख्य रूप से ग्लेशियरों के पिघलने से आता है जो सीमित नहीं होता. हालांकि चीन कभी ब्रह्मपुत्र पर कोई बांध बनाए जैसा कि फिलहाल प्रस्तावित मोटुओ डैम है, तब भी वह केवल मौसमी प्रवाह को ही थोड़ा-बहुत प्रभावित कर पाएगा. बड़े स्तर पर ब्रह्मपुत्र का पानी रोकना या नियंत्रण करना चीन के लिए भौगोलिक और हाइड्रोलॉजिकल रूप से काफी मुश्किल है.
सिंधु और ब्रह्मपुत्र की तुलना क्यों गलत है?
अब मुख्य बात कि सिंधु और ब्रह्मपुत्र की तुलना क्या वाकई निराधार है. सिंधु नदी का बहाव भारत से पाकिस्तान की ओर जाता है और भारत के पास उसकी कई सहायक नदियों पर बड़ा कंट्रोल है. भारत ने 1960 में सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को नदी के पानी का 80 फीसदी हिस्सा देने पर सहमति जताई थी. लेकिन अपनी सहमति पर भारत पुनर्विचार कर रहा है. पाकिस्तान इस बात से नाखुश है और इसे अपनी रणनीतिक कमजोरी मानता है.
इसलिए वह भारत को धौंस दिखाने और चीन के साथ अपनी कथित मजबूत दोस्ती को दिखाने के लिए ड्रैगन की मदद लेने की कोशिश कर रहा है. लेकिन ब्रह्मपुत्र का मामला सिंधु से काफी अलग है. चीन के पास न तो कोई संधि है न ही वह इस नदी पर कंट्रोल कर सकता है जैसा भारत सिंधु पर करता है. यानी चीन पानी रोककर भारत को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है.
अगर चीन पानी रोक दे तो भारत पर क्या होगा असर
लेकिन, अगर चीन भारत में आने वाले ब्रह्मपुत्र नदी की पानी को रोकता है तब. दरअसल भौगोलिक और हाइड्रोलॉजिकल तथ्यों के मुताबिक, चीन ब्रह्मपुत्र का पानी रोक भी दे तो वह कुल पानी का केवल 30 प्रतिशत तक ही होगा. पानी का ये हिस्सा भारत और भूटान से आने वाले बाकी पानी के सामने काफी कम है. भारत की मानसून आधारित सहायक नदियां इस नदी की ताकत को बढ़ाती हैं. इसके अलावा, ब्रह्मपुत्र के बहाव को नियंत्रित करना इतना आसान नहीं है कि चीन किसी बड़ी जल असुरक्षा का कारण बन सके.
पानी रोकने से भारत को हो सकता है फायदा
इससे उलट, चीन अगर आगे चलकर अपने सीमित हिस्से के पानी का कंट्रोल दिखाते हुए पानी को रोकता है, तब भारत को ही उसका फायदा भी होगा. दरअसल असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस संबंध में पोस्ट करते हुए लिखा कि चीन अगर पानी रोकता है तो उसका फायदा भारत को ही होगा. उन्होंने लिखा, “चीन की ओर से सीमित पानी रोकने से भारत को असम में हर साल आने वाली भयानक बाढ़ से राहत मिल सकती है, जो लाखों लोगों के जीवन और खेती को प्रभावित करती है.”
इस पूरे खींचतान में भूटान की भूमिका काफी अहम है. भूटान ने ब्रह्मपुत्र नदी के पानी में 21 फीसदी योगदान दिया है, जो उसके छोटे भू-भाग की तुलना में बहुत बड़ा है. यह क्षेत्र की ऊंची पर्वतीय और बारिश से भरा इलाका है. इस तथ्य को नजरअंदाज करना ब्रह्मपुत्र पर भारत-चीन जल संघर्ष को समझने में बड़ी भूल होगी.
ये भी पढ़ें- डॉक्टर-एमआर Nexus पर सरकार का एक्शन, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के सरकारी हॉस्पिटल में प्रवेश पर रोक
Latest Stories

महुआ मोइत्रा से 50 गुना अमीर हैं उनके पति पिनाकी मिश्रा, जानें क्या करते हैं काम?

अब ट्रेन से करिए श्रीनगर का सफर, मोदी दिखाएंगे हरी झंडी, जानें टाइमिंग से लेकर दूसरी डिटेल

15 साल बाद जनगणना, सरकार को चाहिए आपकी रसोई, बाथरूम, मोबाइल की कुंडली; जानें कितना होगा खर्च
