बीमा कंपनी ने साइकिल चालक के परिजन से मांगा ड्राइविंग लाइसेंस, अब ब्याज के साथ चुकाना पड़ेगा पैसा
Insurance Policy Rule: साइकिल चलाने के दौरान एक व्यक्ति की मौत मोटरसाइकिल से टक्कर लगने के कारण हो गई थी. बीमा कंपनी ने क्लेम देने के लिए परिजन से ड्राइविंग लाइसेंस की मांगा था. क्लेम खारिज होने के बाद परिजन ने उपभोक्ता आयोग का रुख किया, तब जाकर मामला सुलझा.

Insurance Policy Rule: इंश्योरेंस कंपनियां क्लेम सेटलमेंट के लिए ग्राहकों से कई तरह के डॉक्यूमेंट्स मांगती हैं. कई ऐसे मामले में भी सामने आए हैं, जिसमें ग्राहकों को अपना क्लेम लेने के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ी. बीमा कंपनियां कई बार ऐसे डॉक्यूमेंट मांग लेती है, जिससे सुनकर सभी हैरान हो जाते हैं. ऐसा ही एक मामला नागपुर के उपभोक्ता आयोग के सामने आया. दरअसल, साइकिल चलाने के दौरान एक व्यक्ति की मौत मोटरसाइकिल से टक्कर लगने के कारण हो गई थी. बीमा कंपनी ने व्यक्ति के ड्राइविंग लाइसेंस की मांग करते हुए परिजन का क्लेम खारिज कर दिया था.
इलाज के दौरान हुई थी मौत
जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 25 मार्च को पारित अपने आदेश में कहा कि बीमा कंपनी द्वारा की गई ऐसी मांग ‘अनुचित’ और ‘गैरकानूनी’ थी. उसने बीमा कंपनी को 9 फीसदी ब्याज अदा करने को भी कहा है. नागपुर निवासी विजय ढोबले एक अक्टूबर 2012 को गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जब उनकी साइकिल को एक मोटरसाइकिल ने टक्कर मार दी. बाद में चोटों के चलते उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई.
ड्राइविंग लाइसेंस की मांग
ढोबले ने इंश्योरेंस कंपनी से तीन लाख रुपये का बीमा कराया था. ढोबले की मौत के बाद उसकी पत्नी प्रमिला ने बीमा कंपनी से संपर्क किया. लेकिन दावा खारिज कर दिया गया जिसके चलते उसने आयोग का रुख किया. आयोग ने अपने आदेश में जिक्र किया कि बीमा कंपनी ने प्रमिला का दावा यह कहते हुए खारिज किया था कि उसने अपने पति का दोपहिया वाहन ड्राइविंग लाइसेंस, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और कुछ अन्य दस्तावेज जमा नहीं किए.
सुनवाई के दौरान, महिला के वकील ने हैरानगी जताई कि कंपनी ढोबले का ड्राइविंग लाइसेंस कैसे मांग सकती है, जबकि वह दुर्घटना के वक्त साइकिल चला रहा था. वकील ने आयोग को यह भी बताया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पुलिस के पास थी.
ब्याज के साथ क्लेम देने का निर्देश
आयोग के प्रमुख सचिन शिम्पी और सदस्य बी.बी. चौधरी ने कहा कि ड्राइविंग लाइसेंस नहीं सौंपने के आधार पर क्लेम खारिज किया जाना अनुचित और गैरकानूनी है. उन्होंने बीमा कंपनी को मृतक की पत्नी को तीन लाख रुपये अदा करने और दावे से जुड़े दस्तावेज प्राप्त करने की तारीख 30 जनवरी 2014 से 9 फीसदी ब्याज देने का निर्देश दिया.
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