म्यूचुअल फंड के नियमों में होने वाला है बड़ा बदलाव, सेबी ने जारी किया ड्राफ्ट सर्कुलर; 8 अगस्त तक दे सकते हैं सुझाव
SEBI ने म्यूचुअल फंड नियमों में बड़े बदलाव का प्रस्ताव देते हुए नया ड्राफ्ट सर्कुलर जारी किया है, जिसमें 5 कैटेगरी में 20 महत्वपूर्ण सुधार सुझाए गए हैं. इसका उद्देश्य निवेशकों को स्पष्टता देना, स्कीम ओवरलैप को सीमित करना और प्रोडक्ट इनोवेशन को बढ़ावा देना है. फंड नामों में "Duration" के स्थान पर "Term" शब्द होगा और नई स्कीम लॉन्च की शर्तें सख्त की गई हैं. जनता 8 अगस्त, 2025 तक सुझाव दे सकती है.
SEBI Draft Mutual Fund Rules: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने आज म्यूचुअल फंड योजनाओं के वर्गीकरण और रेशनलाइजेशन संबंधी नियमों में बड़े बदलाव का प्रस्ताव रखा है. इस ड्राफ्ट सर्कुलर का उद्देश्य निवेशकों को अधिक स्पष्टता प्रदान करना, पोर्टफोलियो में ओवरलैप को कम करना और प्रोडक्ट इनोवेशन को बढ़ावा देना है. सेबी ने इस ड्राफ्ट पर 8 अगस्त, 2025 तक जनता से सुझाव मांगे हैं, जिन्हें इसके वेब पोर्टल के माध्यम से भेजा जा सकता है.
म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री के विस्तार के मद्देनजर बदलाव की आवश्यकता
सेबी का यह ड्राफ्ट सर्कुलर 6 अक्टूबर 2017 को जारी किए गए म्यूचुअल फंड योजनाओं के वर्गीकरण संबंधी मौजूदा दिशा-निर्देशों में संशोधन का प्रस्ताव करता है. सेबी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री ने AUM और निवेशक भागीदारी दोनों ही मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की है.
ऐसे में, इंडस्ट्री और एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर इस सर्कुलर की समीक्षा करने की आवश्यकता महसूस की गई, ताकि निवेशक सुरक्षा और योजना की स्पष्टता बनाए रखते हुए प्रोडक्ट इनोवेशन के लिए लचीलापन दिया जा सके.
5 कटेगरी में 20 बड़े बदलाव
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्यूचुअल फंड उद्योग को और अधिक पारदर्शी व निवेशक-अनुकूल बनाने के लिए एक महत्वाकांक्षी ड्राफ्ट सर्कुलर जारी किया है. इस प्रस्तावित दस्तावेज में म्यूचुअल फंड योजनाओं को पांच प्रमुख कटेगरी इक्विटी, डेट, हाइब्रिड, सल्यूशन ओरिएंटेड योजनाएं और अन्य योजनाएं में विभाजित करते हुए कुल 20 प्रमुख बदलाव सुझाए गए हैं.
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क्या है प्रस्ताव
सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि म्यूचुअल फंड्स अपने पोर्टफोलियो का वह हिस्सा, जो उनकी मुख्य निवेश श्रेणी (जैसे इक्विटी या डेट) में नहीं लगा है, उसे डेट इंस्ट्रूमेंट्स, गोल्ड, सिल्वर, REITs और InvITs में निवेश कर सकेंगे. यह निवेश नियमित सीमाओं के भीतर होगा. इसके अलावा, एक ही फंड हाउस की अलग-अलग योजनाओं का ओवरलैप 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. सेक्टोरल फंड्स के लिए भी यही सीमा लागू हो सकती है. इसकी जांच NFO के समय और हर छह महीने में की जाएगी.
साथ ही, डेट फंड्स के नामों में “Duration” की जगह “Term” शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा. “Low Duration Funds” को “Ultra Short to Short Term Funds” कहा जाएगा. योजनाओं के नाम में उनकी निवेश अवधि (जैसे 3-4 साल) भी जोड़ी जा सकती है. इसके अलावा, सेबी ने सेक्टोरल डेट फंड्स की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा है, लेकिन उनके पोर्टफोलियो का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा किसी अन्य योजना से मेल नहीं खाना चाहिए.
हाइब्रिड फंड्स और आर्बिट्राज स्कीम्स के लिए नए नियम बनाए जाएंगे. साथ ही, फंड हाउसेस को मौजूदा कटेगरी में दूसरी योजना तभी लॉन्च करने की अनुमति होगी, जब पहली योजना 5 साल पुरानी हो और उसका AUM 50,000 करोड़ रुपये से अधिक हो.