10 साल के रिकॉर्ड निचले स्तर पर EPFO में जमा, क्या रोजगार में कमी बड़ी वजह?
वित्तीय वर्ष 2023-24 में कर्मचारी भविष्य निधि का कुल योगदान साल दर साल 6.5% बढ़कर ₹2.6 लाख करोड़ तक पहुंच गया, लेकिन यह पिछले 10 वर्षों का सबसे निचला स्तर है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पिछले वर्षों में EPFO में 25% और 29.9% की बढ़ोतरी देखी गई.
कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा देने वाले ईपीएफओ (EPFO) में अब लोग अपनी सैलरी का कम हिस्सा जमा करने लगे हैं, क्योंकि रोजगार में कमी आई है. आंकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में कर्मचारी भविष्य निधि का कुल योगदान साल दर साल 6.5% बढ़कर ₹2.6 लाख करोड़ तक पहुंच गया, लेकिन यह पिछले 10 वर्षों का सबसे निचला स्तर है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पिछले वर्षों में EPFO में 25% और 29.9% की बढ़ोतरी देखी गई थी.
हालांकि, यह बढ़ोतरी अभी कम है, जो ईपीएफओ जमा और इसके तहत किए जाने वाले रिटर्न को प्रभावित कर सकता है. इस दौरान, वित्तीय वर्ष 2023-24 में ईपीएफओ के तहत फॉर्मल सेक्टर में पिछले साल की तुलना में रोजगार कम पैदा हुए है. जहां वित्तीय वर्ष 2023 में 13.8 मिलियन (1.38 करोड़) नई नौकरियां बनी थीं, वहीं इस साल यह आंकड़ा घटकर 13.1 मिलियन (1.31 करोड़) हो गया, जो साल दर साल 5% की गिरावट को दिखाता है.
क्या है प्रमुख वजह ?
इस गिरावट का एक प्रमुख कारण यह बताया जा रहा है कि नई नौकरियां धीमी गति से पैदा हो रही हैं और इसके साथ ही एक और कारण यह हो सकता है कि नए कर्मचारियों का ईपीएफ में योगदान इसलिए सीमित हो रहा है, क्योंकि फिलहाल अनिवार्य रूप से पीएफ जमा करने की सैलेरी लिमिट ₹15,000 प्रति माह है. सरकार के चलाए गए आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (ABRY) का समापन 31 मार्च, 2022 को हुआ, जिसका भी असर नए कर्मचारियों की भर्ती पर पड़ा है. इस योजना के तहत, सरकार ने एम्प्लायर और कर्मचारियों के योगदान का 12% फीसदी हिस्सा दो साल तक सब्सिडी के रूप में दिया था. इसके परिणामस्वरूप 6.05 मिलियन नई औपचारिक नौकरियां पैदा हुई. लेकिन अब इस योजना का खत्म हो जाना फॉर्मल सेक्टर में नए कर्मचारियों की भर्ती में गिरावट का कारण बना है.
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क्या कहते है एक्सपर्ट?
एक्सपर्ट के अनुसार नए टैक्स नियमों ने भी पीएफ (PF) योगदान पर प्रभाव डाला है. अगर कर्मचारीयों का पीएफ में योगदान ₹2.5 लाख से अधिक होता है, तो उस पर इंटरेस्ट टैक्स लगाया जाएगा. इसी तरह, नियोक्ता का योगदान ₹7.50 लाख प्रति वर्ष से अधिक होने पर भी टैक्स का प्रावधान है. इस नए टैक्स नियम से लोग पीएफ में ज्यादा योगदान करने से कतराने लगे हैं. हालांकि ईपीएफओ के योगदान में वृद्धि हुई है, लेकिन नौकरियों में कमी और नए टैक्स नियमों के प्रभाव से पीएफ में योगदान की गति धीमी हो रही है, जो भविष्य में इसके निवेश और रिटर्न को प्रभावित कर सकता है.