नए टैक्स रिजीम में क्या मिलेगा PPF और सुकन्या समृद्धि का फायदा, जानें ब्याज के नियम

सरकार ने टैक्स सिस्टम में ऐसा बदलाव किया है, जो आपकी बचत योजनाओं को प्रभावित कर सकता है. यदि आप PPF, सुकन्या समृद्धि योजना जैसी योजनाओं में निवेश कर रहे हैं, तो पहले यह नई रिपोर्ट जरूर पढ़ लें.

बचत योजनाओं पर सरकार का बड़ा फैसला! Image Credit: FreePik

अगर आप के मन में कभी ये ख्याल आया है कि कुछ बचत योजनाओं की इंटरेस्ट इनकम पर टैक्स नहीं लगता फिर भी उनमें किए गए निवेश पर छूट क्यों नहीं मिलती, तो इसका जवाब सरकार की नई टैक्स रिजीम में छिपा है. उदाहरण के तौर पर, सुकन्या समृद्धि योजना और पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) में निवेश करने पर अर्जित ब्याज पर टैक्स नहीं लगेगा, लेकिन अगर आप नए टैक्स रिजीम का सहारा लेते हैं तो इन योजनाओं में किए गए निवेश पर छूट नहीं मिलेगी. हालांकि, अगर कोई पुरानी टैक्स रिजीम को अपनाता है तो वह इन निवेशों पर प्रति वर्ष 1.5 लाख रुपये तक की छूट का लाभ उठा सकता है.

SBI रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि इस बदलाव के पीछे सरकार की क्या रणनीति है और क्यों लंबी अवधि की बचत योजनाओं को अलग तरीके से ट्रीट किया जा रहा है.

पुरानी कर व्यवस्था को फिर से देखने की जरूरत थी

एसबीआई रिसर्च की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पुरानी टैक्स सिस्टम में फाइनेंशियल एसेट पर टैक्स इनसेंटिव दिए जाने से “समानता और दक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन” हुआ. इसलिए, विभिन्न फाइनेंशियल एसेट पर अलग-अलग टैक्स इनसेंटिव की निरंतरता को फिर से जांचने की आवश्यकता थी.

अलग-अलग वित्तीय साधनों पर अलग टैक्स ट्रीटमेंट

एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि लॉन्ग टर्म निवेश साधनों के लिए नीतियां शॉर्ट टर्म और मध्यम अवधि के साधनों से भिन्न होनी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि लॉन्ग टर्म में पैसे को बचाने को और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में इन टैक्स नियमों का अहम योगदान होता है.

उदाहरण के लिए, सुकन्या समृद्धि योजना में निवेश करने वाले लोगों को नए टैक्स रिजीम के तहत इस खाते से अर्जित ब्याज पर छूट मिलती रहेगी और मैच्योरिटी पर मिली राशि भी टैक्स फ्री होगी. लेकिन, इस योजना में किया गया निवेश अब धारा 80C के तहत कर छूट के लिए योग्य नहीं होगा.

रिपोर्ट के अनुसार, इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य लंबी अवधि की बचत को प्रोत्साहित करना है ताकि लोग भविष्य की जरूरतों, जैसे रिटायरमेंट, बच्चों की शिक्षा और विवाह जैसी आवश्यकताओं के लिए पैसे जुटा सकें. सरल भाषा में कहें तो, पहले लोग टैक्स छूट पाने के लिए इन योजनाओं में निवेश करते थे, लेकिन अब सरकार चाहती है कि लोग लंबी अवधि की वित्तीय सुरक्षा के लिए निवेश करें न कि सिर्फ टैक्स बचाने के लिए. इसी वजह से निवेश पर छूट हटा दी गई है लेकिन ब्याज और परिपक्वता राशि को टैक्स-फ्री रखा गया है.

सरल टैक्स सिस्टम की ओर कदम

सरकार की ओर से नए कर ढांचे को डिफॉल्ट टैक्स रिजीम बनाए जाने का फैसला इस नीति के अनुरूप है कि टैक्स प्रक्रिया को सरल बनाया जाए. कर छूट, कर छूट योग्य निवेश और कर रिबेट – ये तीन प्रमुख कर घटक हैं, जो भारतीय कर प्रणाली को परिभाषित करते हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, अल्पकालिक और मध्यम अवधि की लॉक-इन अवधि वाले टैक्स इंसेंटिव से बचत को विशिष्ट साधनों में मोड़ा जाता है जिससे टैक्स से बचाव संभव हो जाता है. इसके विपरीत, लॉन्ग टर्म कर प्रोत्साहन बचत को भविष्य की आय में गिरावट और खर्चों में वृद्धि की ओर निर्देशित करता है, जिससे अर्थव्यवस्था में कुल वित्तीय संपत्ति और बचत में वृद्धि होती है.

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वित्त वर्ष 2025 के बजट में सरकार ने नए टैक्स स्लैब को संशोधित और फिर से संतुलित किया है, जिससे इसे टैक्सपेयर्स के लिए अधिक आकर्षक बनाया जा सके. खासतौर पर निचले स्तर के करदाताओं के लिए कर मुक्त आय की सीमा को 7 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि नए टैक्स रिजीम की ओर बढ़ना करदाताओं के लिए एक स्मार्ट कदम होगा जिससे वे अधिक सरल कर प्रक्रिया का लाभ उठा सकेंगे और उनके पास अधिक डिस्पोजेबल इनकम होगी. इसके अलावा, इसका व्यापक प्रभाव उपभोग दर को भी बढ़ाने वाला होगा, जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.