शेयर बाजार में बड़े घोटाले का पर्दाफाश, फर्जी ऑर्डर से लगा रहे थे चूना, सेबी ने कसा पाटिल वेल्थ पर शिकंजा
शेयर बाजार में फर्जीवाड़े का बड़ा मामला सामने आया है, इसके तहत सेबी ने पाटिल वेल्थ एडवाइजर्स के खिलाफ शिकंजा कसा है. सेबी ने कंपनी के निदेशकों को मार्केट में कारोबार करनेसे बैन कर दिया है, साथ ही अवैध कमाई को लौटाने के निर्देश दिए हैं.

Spoofing Case: भारतीय शेयर बाजार में एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है. इस सिलसिले में सेबी ने पाटिल वेल्थ एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड (PWAPL) पर शिकंजा कस दिया है. कंपनी पर स्टॉक मार्केट में ‘स्पूफिंग’ यानी हेराफेरी के जरिए फर्जी मांग बढ़ाने का आरोप है. ऐसे में सेबी ने PWAPL को 3.22 करोड़ रुपये से ज्यादा की अवैध कमाई लौटाने का आदेश दिया है. साथ ही इसके निदेशकों पर कड़ा एक्शन लिया है. सेबी ने पाटिल वेल्थ के प्रोप्राइटरी अकाउंट से सिक्योरिटीज मार्केट में कारोबार पर रोक लगा दी है. इसके अलावा निदेशकों को भी मार्केट से बैन कर दिया है.
स्पूफिंग से देते थे धोखा
सेबी की ओर से 28 अप्रैल को जारी आदेश में बताया गया कि PWAPL ने तीन साल तक ‘स्पूफिंग’ की रणनीति अपनाई. यह एक तरह की हेराफेरी है, जिसमें बड़े फर्जी ऑर्डर दिए जाते हैं, जो बाजार मूल्य से काफी नीचे होते हैं. ये ऑर्डर एग्जीक्यूट करने के बजाय निवेशकों को गुमराह करने के लिए होते हैं. निवेशक इन्हें सही समझकर बाजार में इंवेस्ट कर लेते हैं. सेबी का आरोप है कि PWAPL ने 292 दिनों में 173 स्टॉक्स में ऐसी हेराफेरी की है. कई बार एक दिन में ज्यादा बार भी स्पूफिंग की है, लिहाजा कुल 621 स्पूफिंग के मामले सामने आए हैं. यह गतिविधि कैश और डेरिवेटिव दोनों सेगमेंट में हुई है. सेबी के मुताबिक पहली बार इस तरह का फर्जीवाड़ा सामने आया है.
कैसे काम करता है स्पूफिंग?
मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक सेबी के पूर्णकालिक सदस्य कमलेश वार्ष्णेय ने बताया कि स्पूफिंग एक तरह की धोखाधड़ी होती है, जिसमें बड़े खरीद या बिक्री ऑर्डर दिए जाते हैं, जिन्हें अमल में लाने से पहले ही रद्द कर दिया जाता है. साथ ही, ऑर्डर बुक के विपरीत साइड पर सौदे किए जाते हैं. स्पूफर बाजार में नकली मांग या आपूर्ति का भ्रम पैदा किया जाता है, जिससे दूसरे निवेशक प्रभावित होते हैं. जब शेयर की कीमत में हलचल होती है, तो स्पूफर दूसरी साइड पर ट्रेड कर मुनाफा कमाते हैं.
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पहले भी पकड़ा गया था मामला
2023 में सेबी ने नीमी एंटरप्राइजेज नाम की एक फर्म को स्पूफिंग के लिए पकड़ा था, लेकिन वह गतिविधि केवल कैश सेगमेंट तक सीमित थी और आठ महीने तक चली थी. PWAPL का मामला कहीं बड़ा और जटिल है, क्योंकि यह तीन साल तक चला और इसमें डेरिवेटिव मार्केट भी शामिल था.
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