कॉपर के बाजार में खतरा या मौका? Goldman Sachs ने सामने रख दिया पूरा कैलकुलेशन, निवेश से पहले पढ़ें ये रिपोर्ट

कॉपर की कीमतों ने हाल के महीनों में निवेशकों का ध्यान खींचा है, लेकिन आगे का रास्ता उतना सीधा नहीं दिख रहा. वैश्विक संकेत, नीतिगत फैसले और बदलती मांग के बीच इस धातु को लेकर कुछ अहम इशारे सामने आए हैं, जो आने वाले समय की दिशा तय कर सकते हैं.

Copper Price Image Credit: Money9 Live

Copper price forecast 2026: वैश्विक कमोडिटी बाजार में कॉपर एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है. हाल के महीनों में रिकॉर्ड स्तर छूने के बाद अब इसके आगे की दिशा को लेकर निवेशकों, उद्योगों और नीति-निर्माताओं की नजरें बड़ी ब्रोकरेज फर्मों के अनुमानों पर टिकी हैं. गोल्डमैन सैक्स रिसर्च की ताजा रिपोर्ट यही संकेत देती है कि कॉपर की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है. 2026 में भले ही कीमतों में थोड़ी नरमी दिखे, लेकिन लंबी अवधि में यह धातु फिर से मजबूती के रास्ते पर लौट सकती है. इसकी वजह सिर्फ मांग और सप्लाई नहीं, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिफेंस और पावर इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी बड़ी वैश्विक जरूरतें हैं.

2025 में रिकॉर्ड, 2026 में ठहराव का संकेत

गोल्डमैन सैक्स रिसर्च के मुताबिक दिसंबर 2025 की शुरुआत में कॉपर की कीमतें 11,771 डॉलर प्रति टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थीं. इसके पीछे कई कारण रहे. ब्याज दरों में नरमी, अमेरिकी डॉलर की कमजोरी और चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीदों ने इंडस्ट्रियल मेटल्स को सपोर्ट दिया. इसके अलावा सप्लाई में रुकावटें, नीतिगत बदलाव और AI सेक्टर में भारी निवेश ने भी कीमतों को ऊपर धकेला.

हालांकि, रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2026 में कॉपर की कीमतें लगातार 11,000 डॉलर प्रति टन से ऊपर टिके रहने की संभावना कम है. इसकी सबसे बड़ी वजह वैश्विक स्तर पर सप्लाई का सरप्लस रहना है. गोल्डमैन का मानना है कि 2026 में भी बाजार में कॉपर की उपलब्धता मांग से थोड़ी ज्यादा बनी रह सकती है.

गोल्डमैन सैक्स रिसर्च का अनुमान है कि 2026 में लंदन मेटल एक्सचेंज पर कॉपर की कीमतें 10,000 से 11,000 डॉलर प्रति टन के दायरे में बनी रहेंगी. रिपोर्ट के मुताबिक, पावर ग्रिड और ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर से आने वाली मजबूत वैश्विक मांग कीमतों को 10,000 डॉलर से नीचे गिरने नहीं देगी.

फर्म का अनुमान है कि 2026 की पहली छमाही में कॉपर की औसत कीमत करीब 10,710 डॉलर प्रति टन रह सकती है. यानी गिरावट सीमित होगी और बाजार में एक तरह का संतुलन देखने को मिलेगा.

चीन की मांग में आई सुस्ती

कॉपर बाजार की दिशा तय करने में चीन की भूमिका हमेशा अहम रही है. रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की चौथी तिमाही में चीन में रिफाइंड कॉपर की मांग साल-दर-साल आधार पर करीब 8 प्रतिशत घट गई. साल की शुरुआत में सरकारी प्रोत्साहन और टैरिफ से जुड़ी जल्दबाजी के चलते मांग में जो तेजी आई थी, वह अब कमजोर पड़ती दिख रही है.

चीन में निर्माण, रियल एस्टेट और कुछ औद्योगिक सेक्टर में धीमी रफ्तार का असर सीधे तौर पर कॉपर की खपत पर पड़ा है. यही वजह है कि 2026 में कीमतों पर दबाव बना रह सकता है.

सप्लाई और मांग का संतुलन

गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक 2025 के अंत तक वैश्विक कॉपर बाजार में करीब 5 लाख टन का सरप्लस रह सकता है, जो पहले के अनुमान से ज्यादा है. हालांकि 2026 में यह सरप्लस घटकर करीब 1.6 लाख टन रह जाने की उम्मीद है.

इसका मतलब यह है कि बाजार धीरे-धीरे संतुलन की ओर बढ़ेगा, लेकिन निकट भविष्य में किसी बड़ी कमी की स्थिति बनने की संभावना नहीं है. खदानों से सप्लाई में सीमित बढ़ोतरी और पावर इंफ्रास्ट्रक्चर से बढ़ती मांग इस संतुलन की मुख्य वजह होंगी.

अमेरिकी टैरिफ से बढ़ सकती है हलचल

2026 में कॉपर बाजार को प्रभावित करने वाला एक बड़ा फैक्टर अमेरिका की ट्रेड पॉलिसी हो सकती है. रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका रिफाइंड कॉपर के आयात पर कम से कम 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने पर विचार कर सकता है. अमेरिकी वाणिज्य सचिव से जून 2026 तक इस पर सिफारिश आने की उम्मीद है.

अगर ऐसा होता है, तो टैरिफ लागू होने से पहले अमेरिका में कॉपर का आयात तेजी से बढ़ सकता है. कंपनियां टैक्स से बचने के लिए पहले ही स्टॉक जमा कर सकती हैं. इससे 2026 में कुछ समय के लिए मांग बढ़ेगी, लेकिन टैरिफ लागू होने के बाद कीमतों में हल्की गिरावट आ सकती है, जिसके बाद फिर से धीरे-धीरे तेजी लौटने की संभावना है.

2026 के बाद क्यों मजबूत है तस्वीर?

गोल्डमैन सैक्स रिसर्च लंबी अवधि को लेकर कॉपर पर काफी बुलिश है. रिपोर्ट के मुताबिक 2029 के बाद कॉपर की मांग सप्लाई से आगे निकल सकती है. इससे कीमतों पर ऊपर की ओर दबाव बनेगा और नई सप्लाई को बढ़ावा मिलेगा.

एआई, डिफेंस और पावर ग्रिड में भारी निवेश के चलते आने वाले वर्षों में कॉपर की जरूरत तेजी से बढ़ने वाली है. अनुमान है कि 2030 तक कॉपर की मांग में जो ग्रोथ होगी, उसमें 60 प्रतिशत से ज्यादा योगदान सिर्फ ग्रिड और पावर इंफ्रास्ट्रक्चर का होगा. यह मांग लगभग एक नए अमेरिका जितनी होगी.

चीन, अमेरिका और यूरोप की भूमिका

रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक कॉपर की अतिरिक्त मांग का करीब आधा हिस्सा चीन से आएगा. हालांकि अमेरिका और यूरोप भी अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ा रहे हैं, खासकर ऊर्जा सुरक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश के चलते. हालांकि कुछ सेक्टर में कॉपर की जगह एल्युमिनियम का इस्तेमाल बढ़ सकता है, जिससे मांग पर थोड़ा असर पड़ेगा. फिर भी कुल मिलाकर तस्वीर यही है कि कॉपर आने वाले दशक में एक अहम रणनीतिक धातु बना रहेगा.

गोल्डमैन सैक्स रिसर्च ने 2035 के लिए कॉपर की कीमत 15,000 डॉलर प्रति टन रहने का अनुमान लगाया है, जो मौजूदा बाजार सहमति से काफी ज्यादा है. यह साफ संकेत है कि भले ही 2026 में कीमतें थोड़ी थमी रहें, लेकिन लंबी दौड़ में कॉपर की चमक बरकरार रहने वाली है.

डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल स्टॉक्स की जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.

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