FPI ने जुलाई में की भारी बिकवाली, 3 महीने बाद पहली बार हुआ ऐसा; NSDL के आंकड़ों में खुलासा
जुलाई 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने भारतीय शेयर बाजार से 17,741 करोड़ रुपये की भारी निकासी की, जिससे इस साल कुल निकासी 1.01 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई. NSDL के आंकड़ों के अनुसार, यह तीन महीने की लगातार खरीदारी के बाद पहली बड़ी बिकवाली है. अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक अनिश्चितताओं के चलते निवेशकों का रुख नकारात्मक हुआ है.

FPI July Outflow: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी टैरिफ सहित पेनाल्टी लगाने की बात कही है. यह 2 अगस्त से लागू होने वाला था, हालांकि इसे एक सप्ताह के लिए टाल दिया गया है. इस खबर का असर विदेशी निवेशकों पर भी देखने को मिल रहा है. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने जुलाई में भारतीय शेयर बाजार से 17,741 करोड़ रुपये की निकासी की है. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) के आंकड़ों के अनुसार, यह पहला ऐसा महीना रहा जब अप्रैल, मई और जून में लगातार सकारात्मक निवेश के बाद उनका रुख नकारात्मक हुआ है.
जुलाई के आखिरी सप्ताह में भारी बिकवाली
जुलाई में FPIs की निकासी का मुख्य कारण महीने के अंतिम सप्ताह (28 जुलाई से 1 अगस्त) में हुई भारी बिकवाली रही. इस अवधि में विदेशी निवेशकों ने 17,390.6 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिसके कारण पूरे महीने का निवेश नकारात्मक हो गया.
अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक आर्थिक चिंताएं
इस बिकवाली का प्रमुख कारण अमेरिका द्वारा लगाए गए नए रेसिप्रोकल टैरिफ हैं, जिनका असर भारत समेत कई देशों पर पड़ा है. इन टैरिफ ने वैश्विक व्यापार में अस्थिरता और निवेशकों के मनोबल को प्रभावित किया है, जिसके चलते FPIs ने अपने निवेश को पुनर्गठित करना शुरू कर दिया है.
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2025 में FPIs का अब तक का प्रदर्शन
जनवरी: साल के पहले महीने में FPIs ने 78,027 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड बिकवाली की थी.
फरवरी: इस महीने भी 34,574 करोड़ रुपये की निकासी हुई.
मार्च: निवेशकों ने 3,973 करोड़ रुपये के शेयर बेचे.
अप्रैल-जून: इन तीन महीनों में FPIs ने क्रमशः सकारात्मक निवेश किया, जिसमें मई सबसे बेहतर महीना रहा (19,860 करोड़ रुपये का निवेश).
जुलाई: इस महीने 17,741 करोड़ रुपये की निकासी हुई, जिससे 2025 में कुल निकासी 1,01,795 करोड़ रुपये तक पहुंच गई.
भारतीय बाजार पर प्रभाव
FPIs की यह निकासी भारतीय शेयर बाजार के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि पिछले कुछ महीनों में विदेशी निवेशकों ने बाजार को मजबूत समर्थन दिया था. हालांकि, अमेरिका-रूस के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और अमेरिकी टैरिफ जैसे कारणों के चलते FPIs का रुख आने वाले समय में भी अनिश्चित बना रह सकता है.
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